जनपक्षीय कवि, लेखक, पत्रकार सुरेश सलिल की 80वीं वर्षगांठ
ईश मिश्र
हिंदी, साहित्य और पत्रकारिता में अमूल्य योगदान
करने वाले 19 जून 1942 को जन्मे जनपक्षीय कवि, लेखक सुरेश सलिल
आज 80वां साल गिरह है।1980 के दशक के मध्य के वर्षों में युवकधारा में सलिल जी के
संपादकत्व में पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार चंद्र
प्रकाश झा (सीपी) उन्हें, आदि विद्रोही की तर्ज पर आदि संपादक कहते हैं।1960 के
दशक से कवि कर्म तथा लेखन में तल्लीन, “हवाएं क्या-क्या हैं” समेत कई कविता संकलन
तथा अन्य कालजयी रचनाएं छप चुकी हैं।
भारतेंदु हरिश्चंद्र से तब तक लगभग 150 साल के
हिंदी कविता एवं कवियों के सर्वेक्षण को समेटे ‘कविता सदी’ शीर्षक से 2018
में राजपाल एंड संस से छपा ग्रंथ, हिंदी साहित्य का अनमोल खजाना है। यह ग्रंथ
हिंदी कविता के 150 साल के विभिन्न आंदोलनों, प्रवृत्तियों और शैलियों के सजीव
चित्रण का दस्तावेज है। इसमें नवजागरण काल की कविताएं प्रतिध्वनित होती हैं तो
छायावाद का स्वर भी सुनाई देता है; हिंदी कविता के प्रगतिशील आंदोलन की झलक मिलती
है और प्रयोगवाद तथा नई कविता की विशिष्टता की भी। इसमें दलित और स्त्री अस्मिता
की कविताएं हैं तथा प्रमुख समकालीन कवियों की भी चर्चा है।
सलिल जी
ने 6 मौलिक कविता संग्रहों के अलावा कई काव्य अनुवाद प्रकाशित किए हैं, जिसमें ‘बीसवीं
सदी की विश्व कविता का वृहत् संचयन: रोशनी की खिड़कियां’ प्रमुख है। हाल में
ही उनकी संपादित ‘कारवाने गजल’ (800 वर्षों की गजलों का सफरनामा) सराहनीय
है। 1920 के दशक में औपनिवेशिक शासन द्वारा
प्रतिबंधित चांद का फांसी अंक भी सलिल जी ने ही संग्रहित संपादित,
पुनर्प्रकाशित किया था। स्वतंत्रता सांग्राम के महानतम हिंदी पत्रकार ‘गणेश
शंकर विद्यार्धी संचयन’; ‘पाब्लो नेरूदा: प्रेम कविताएं’; इकबाल की जिंदगी और
शायरी’ भी उल्लेखनीय रचनाएं हैं।
कल सीपी (सुमन) से बातचीत में हम लोगों को लगा कि
सलिल जी के 80वें जन्मदिन पर उनका सार्वजनिक अभिनंदन होना चाहिए। कोरोना काल के
बाद हम लोग सलिल जी के सम्मान में सार्वजनिक अभिनंदन आयोजित करने की कोशिस करेंगे।
छात्र जीवन में हम लोग एक चुटकुला सुनते-सुनाते थे कि किसी ने किसी कवि या लेखक से
पूछा “क्या करते हो”? “कवि/लेखक हूं”। “वह तो ठीक है, लेकिन करते क्या हो”? कार्ल
मार्क्स आजीवन गर्दिश में रहे। सलिल जी भी इस उम्र में लगभग गुमनामी में लगभग
गर्दिश की जिंदगी जी रहे हैं। मेरा सलिल जी से 1985 में, विलिंगटन क्रिसेंट के युवकधारा
के दफ्तर परिचय हुआ। जिसे कल राजेश जोशी की सलिल जी के 80वें जन्मदिन की बधाई की
पोस्ट पर कमेंट में लिखा था, इस लेख का समापन उसी को संपादित कर जोड़कर करना
अनुचित नहीं होगा।
सुमन की ही तरह मैंने भी युवकधारा से ही पत्रकारिता
शुरू किया था। विलिंगटन क्रेसेंट स्थित सांसद, तारिक अनवर की कोठी के पिछवाड़े के
सर्वेंट्स क्वार्टर्स में स्थित युवकधारा के उसी दफ्तर से। 1985 में डीपीएस से निकाले जाने के बाद तय कर लिया कि
अब जब तक भूखे मरने की नौबत न आए तो रोजी-रोटी के लिए गणित का इस्तेमाल नहीं
करूंगा। मंडी हाउस की एक दिन की अड्डेबाजी में पंकज भाई (दिवंगत जनकवि पंकज सिंह)
ने पूछा कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर लिख सकता हूं क्या? न कहने की अपनी आदत नहीं थी। श्रीराम सेंटर के बाहर बाबूलाल की दुकान से चाय पीने के
बाद ऑटो से युवकधारा के दफ्तर पहुंचे। वहां सलिल जी (संपादक) के साथ अमिताभ, सुमन (जेएनयू के सहपाठी) तथा राजेश वर्मा
(युवकधारा से निकलकर सुमन और राजेश यूनीवार्ता ज्वाइन कर लिए और अमिताभ दिनमान)
वहां उपसंपादक थे। अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर 'विश्व परिक्रमा' कॉलम लिखने का मौखिक अनुबंध हुआ। तब तक लिखने का
अनुभव सीमित था। अपने लेखन की गुणवत्ता पर अविश्वास इतना था कि 1983-84 में जनसत्ता में 'खोज
खबर-खास खबर' पेज पर शिक्षा
व्यवस्था पर पहला लेख छद्म नाम से लिखा। छपने के बाद लोगों की तारीफ से अपने लेखन
की गुणवत्ता पर यकीन हुआ। जेएनयू से निकाले जाने से फेलोशिप बंद हो गयी थी, डीपीएस से निकाले जाने पर वेतन। गणित से धनार्जन
के आसान रास्ते पर न चलने का फैसला कर लिया था। ऐसे में 300 रुपए मासिक (150 रु. प्रति लेख) की
आश्वस्ति भी ठीक थी। लिंक में जेएनयू के सहपाठी, प्रद्योत लाल (दिवंगत) ने सुधीर पंत
से मिलवाया और फिर लिंक में लगभग हर हफ्ते तथा किसी अंक में दो लेख लिखने लगा।
लिंक से भी प्रति लेख 150 रुपया मिलता था।
युवकधाराके लेख के लिए कभी कभी जेएनयू की लाइब्रेरी में बैठता था लेकिन प्रायः
उसके दफ्तर में ही। सलिल जी टॉपिक का चयन कर रिफरेंस मैटेरियल दे देते थे और बाहर
धूप में बैठकर लिखता था। छपने के बाद अंक लेने जाता तो अमिताभ और राजेश कहते कि
सबसे पहले यह अपना लेख
पढ़ेगा, जो सही था। छपने के बाद अपना लेख पढ़ने की बाल
सुलभ उत्सुकता होती थी। राजेश, अमिताभ और सुमन के
वहां निकलने के बाद, मेरा लिखना भी बंद
हो गया। कुछ लेख अभी भी मेरे पास कहीं होंगे। 2-3 टाइप कराकर किसी
फाइल में सेव किया है।
खैर बात सलिल जी
की करनी थी और अपनी करने लगा। सलिल जी ने मुझे लिखना सिखाया। शब्द गिनने का तरीका
बताया। सलिल जी की कविताएं अद्भुत थी। सलिल जी के माध्यम से बहुत से
अंतर्राष्ट्रीय कवियों की कविताओं से परिचय हुआ। अदम गोंडवी और सलभ श्रीराम सिंह
से पहली बार इन्हीं के साथ मुलाकात हुई थी। सलिल जी मंडी हाउस की साहित्यिक
अड्डेबाजी के स्थाई सदस्य थे। सलिलजी, पंकज सिंह, पंकज विष्ट, असगर वजाहत, आनंद स्वरूप वर्मा, कभी
कभी ब्रजमोमोहन और सलभ श्रीराम सिंह आदि की संगति बहुत ज्ञानवर्धक होती थी। सलिल
जी की कविताओं एवं अन्य लेखन की समीक्षा फिर कभी लिखूंगा। अभी उनकी सक्रिय और
स्वस्थ दार्घायु की शुभकामनाओं के साथ यह लेख यहीं खत्म करता हूं।
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