Tuesday, June 1, 2021

लल्ला पुराण 382(ज्ञान)

एक प्रिय मित्र ने कहा कि जो मुसलमान-ईसाई न हो वह हिंदू होता है और जो बाइबिल-कुरान में न हो, वह वेदों में है। उस पर :

जो ईशाई और मुसलमान नहीं है वह बौद्ध हो सकता है, नास्तिक हो सकता है, यह तो बहुत नकारात्मक और कुतर्की परिभाषा हुई। वैसे बाभन हिंदू होता है कि अहिर? दोनों हिंदू हैं तो बवाल क्यों? यदि आरक्षण को भीख और खैरात मानने वाले भी औऱ आरक्षण के संवैधानिक अधिकार वाले भी हिंदू हैं तो इतना आपसी विद्वेष क्यों? वेद तो बाइबिल और कुरान से हजारों साल पहले लिखे गए तो यह कैसे हुआ जो बाइबिल-कुरान से छूट गया वह समय से पीछे जाकर वेदों में लिखा गया? वैसे भी हमारे समतामूलक, प्रकृतिपूजक वैदिक पूर्वजों के हजारों साल बाद भौगोलिक इकाई के रूप में हिंदू शब्द की उत्पत्ति हुई। वेद की ऋचाओं में किसी ब्रह्मा-वि्ुष्णु किस्म के देवी-देवता का जिक्र नहीं है, राम-कृष्ण किस्म के पौराणिक चरित्रों का तो सवाल ही नहीं उठता। यूं ही कुछ भी लिख देने की आपसे उम्मीद नहीं थी। बाकी बुढ़ापे के नजदीक तो आप भी पहुंच ही रही हैं। बचपन और बुढ़ापे में ही नहीं जवानी में भी जानने के लिए लगातार हर बात पर सवाल करता रहा हूं परिणाम स्वरूप नास्तिक हो गया। मैं अपने छात्रों को पहली ही क्लास में बताता हूं, "Key to any knowledge is questioning, question anything and everything, beginning with your own mind set." पहला सवाल होता था कक्षा में खड़े होने को लेकर। किसी के पास संतोषजनक जवाब नहीं होता था, इसलिए मेरी क्लास में कोई खड़ा नहीं होता था। बिना खड़े हुए ही सभी सम्मान करते थे। इज्जत दान-दहेज में नहीं मिलती, कमाई जाती है और पारस्परिक होती है। दूसरी बात उन्हें बताता था कि "Learning is only one aspect of knowledge process, another more important aspect is unlearning. Question and unlearn the socially acquired values independent of your conscious self and replace them with rationally acquired ones with your conscious will." Unlearning की प्रक्रिया की शुरुआत लड़की-लड़के की थोपी हुई सामाजिक परिभाषा से होती थी। मेरी छात्राएं, मेरी बेटियों की तरह बेटा की शाबासी लेने से इंकार कर देती हैं। मेरी एक युवा मित्र ने आंटा गूथते हुए अपनी 4 साल की बेटी का वीडियो शेयर किया था। मैंने फोन करके उनसे ऐसा फिर न करने का आग्रह किया और वे मान गयीं। बच्चे तो कुछ भी नया करने में उत्साहित होते हैं, लेकिन इससे गलत संदेश जाता है कि आंटा गूंथना लड़कियों का काम है। बेटे की तस्वीर कोई आंटा गूंथते हुए नहीं शेयर करता। लगभग 15 साल पहले मेरी छोटी बेटी कक्षा 10 में रही होगी। पड़ोस में रहने वाली मेरी एक पत्रकार मित्र ने सलाह दिया कि बेटियों को किचेन का कुछ काम सिखा देना चाहिए। मेरी बेटी से एक महीने बड़ा उसका बेटा है, मैंने पूछा उसने उसे (अपने बेटे को) सिखा दिया क्या? तत्कालिक रूप से उसे यह बात बुरी लगी थी, लेकिन बाद में उसने इसकी तारीफ की। आप भी बच्चों को ज्ञानी बनाना चाहती हैं तो उन्हें हर बात पर सवाल करना सिखाइए। ज्यादातर मां-बाप और शिक्षक ज्ञान के भ्रम (कुज्ञान) के प्रभाव में बच्चों को लगातार सवाल करने के लिए प्रोत्साहित करने की बजाय हतोत्साहित करके कूप-मंडूकता की तरफ ढकेलते हैं। सादर।

1 comment:

  1. यह क्या महज संयोग है कि बाभन अहिर को सपासमर्थक मान लेता है और अहिर बाभन को भाजपा समर्थक। इस ग्रुप में मैंने नोटिस किया है जैसे ही कोई यादव (महेंद्र सिंह की तरह जो यादव नहीं लिखता उसका अन्वेषण कर लिया जाता है) कुछ असहमति जताता है उससे अखिलेश यादव या सपा के कुकर्मों का हिसाब मांगा जाता है। यह महज संयोग भी हो सकता है।

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