एक ग्रुप में सरकार समर्थक एक सज्जन ने लिखा श्रद्धानंद सरस्वती के हत्यारे, राशिद को गांधी जी ने बचा लिया था, गांधी की इस बात का मैं समर्थन करता हूं कि विरोध? उस पर:
श्रद्धानंद के हत्यारे राशिद को गांधी ने बचा लिया था, गांधी तो इस सवाल का जवाब देने के लिए हैं नहीं। राशिद से ही एक नरपिशाच ने उनकी हत्या कर दी थी। मैं गांधी का प्रवक्ता तो हूं नहीं, गांधी का मूल्यांकन उन्ही के मानदंडों पर करता हूं। गांधी की सोच में गड़बड़ी द्वंद्वात्मकता के अभाव के चलते है। गांधी पाप से घृणा करते थे पापी से नहीं, यदि वे गोडसे की गोली लगने के बावजूद बच जाते तो उसे भी बचाते। हत्यारे के नाम राशिद की जगह अरविंद राय होता तब भी गांधी वही स्टैंड लेते। हर बात ब्लैक एंड व्हाइट नहीं होती, मैं न गांधी के समर्थन में हूं न विरोध में, न ही 94-95 साल बाद उसके समर्थन-विरोध से कोई फर्क पड़ता है। संयोग से स्वामी श्रद्धानंद का हत्यारा राशिद था रामनारायण भी हो सकता था, क्योंकि कर्मकांडी ब्राह्मणवाद आर्यसमाज को अपना उतना ही दुश्मन मानता था, जितना इस्लामी कट्टरपंथ। यदि हत्यारा रामनारायण होता तो आप यह सवाल न पूछते। गांधी का हत्यारा नाथूराम की बजाय अरशद होता तो क्या होता? गांधी की हत्या के बाद ब्रह्मणों या चितपावन ब्राह्मणों पर कोई हमला नहीं हुआ? इंदिरा गांधी का हत्यारा अगर बिना पगड़ी वाला होता तो क्या जातीय नरसंहार होता? यह सामुदायिक अस्मिता की प्रवृत्ति निर्धारण हमारे दिमागों में जातीय-मजहबी पूर्वाग्रह इस कदर भर देता है कि हम विवेकशील इंसान की तरह सोच ही नहीं पाते। बाकी दूसरों का जानबूझकर समय नष्ट करने की बजाय पूर्वाग्रह-दुराग्रहों से ऊपर उठकर, हिंदू-मुसलमान से इंसान बनकर अपने सवालों का जवाब कुध खोजेंगे तो बेहतर जवाब तो मिलेगा ही, सुकून भी मिलेगा। मेरे बड़े भाई को मुसलमान शब्द से आपसी हीचिढ़ है, उनसे मैंने पूछा कि हम कितने भाई हैं? एक ही मां-बाप के दो बेटे जब एक जैसे नहीं होते तो करोड़ों बिहारियों, मुसलमानों या जाटों की समरस कोटियां कैसे बन सकती हैं। सादर।