हमारे इलके में एक माफिया जमींदार था, जगदंबा सिंह। जमींदारी खत्म होने के बाद अपने को तिघरा नरेश कहलवाता था। गोविं साहब मेले में इसके कैंप का कूपन लेकर इसके कारिंदे मुफ्त सरकस देखते, खाते-पीते थे। बाजारों में वसूली करता था। 1952 से 1969 तक एमएलए का चुनाव बकैती से जीतता रहा, कभी स्वतंत्र पार्टी से फिर इंडेपेंडेंट। 1974 में सीपीयम के भगवती सिंह इसके खिलाफ लड़े। सैकड़ों छात्र-शिक्षक भाले में लाल झंडों के साथ साइकिल पर उनके प्रचार में निकल पड़े। बकैत सब बिल में घुस गए। चुनाव हारने के एक या दो दिन बाद उसकी मौत हो गयी। खोई कहता था सांप काटने से मरा कोई कहता था सदमें से। इसकी भी ऐसी ही हाल होगी।
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