Monday, May 18, 2015

बहुत ऊंची हैं उनके जेल की दीवारें

बहुत ऊंची हैं उनके जेल की दीवारें
मगर हमारे इरादों से कमतर
माना अभी मझधार में हूं
और इस धुप अंधेरे समय में
तूफान की भयानकता मुसोलिनी सी है
सच पर सड़ अड़ाने की जिद की ताकत
पतवार पर पकड़ ढीली नहीं होने देती
ज़ुल्म से ज़ंग के ज़ज़्बे का दुस्साहस
हवा को पीठ देने नहीं देता
भविष्य की पीढ़ियों की जीवंतता में यकीन
टूटने नहीं देता अंततः सचमुच के सत्यमेव जयते का सपना
होता नहीं साश्वत कोई अंधेरा
भोर की अवश्यंभाव्यता रात से कभी डरने नहीं देती
और वैसे भी डर डर कर जी नहीं जाती ज़िंदगी
खींची जाती है आहिस्ता आहिस्ता मौत की तरफ
(ईमिः 19.05.2015)

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