Thursday, May 21, 2015

विजयी सैनिक

विजयी सैनिक
40 साल पहले मिला था वह विजयी सैनिक
जो अचानक फिर मिल गया
लंबा समय होता है 40 साल
लेकिन मुझे याद है ऐसे जैसे कल की बात हो
ओत-प्रोत हो गया था मुझ किशोर का मन
अपने ही जिले के उस योद्धा से
जिसके बारे में रेडियो में सुना था
जिसने मार दिये थे सैकड़ों दुश्मन
अपनी सूझ-बूझ और युद्ध-कौशल से
आज भी सीने से चिपका था वही तमगा
लेकिन अब याद नहीं उसे  
कि यह तमगा किस चक्र का है
परम, महा या महज वीर का
वह जीवन से दुखी तो नहीं था
थोड़ा परेशान था
 बहू की विधवा पेंशन की दौड़-भाग में
उसके सैनिक बेटे की पत्नी
जो शहीद हो गया बिना किसी जंग के
लद्दाख के बर्फीले तूफानों से लड़ते हुये
उस बेटे की पत्नी
जो सैनिक बना चलने के लिये
पिता के पदचिन्हों पर
यही तो चाहता है एक औसत बाप
अब उसे लगता है
ऐसा नहीं चाहना चाहिये
बच्चों को खुद रास्ता बनाने देना चाहिये
उस बेटे की पत्नी 
जिसके बच्चों को गुमान है बाप की शहादत का
मगर पेट की भूख तोड़ देती है वीरता का गुमान
मनाते हैं देवी-देवता मानते हैं मनौती
मांगते हैं मां की विधवा पेंशन का वरदान
फिर भी पेंशन से विजयी सैनिक के
 चल जाता है घर का काम
समय काटना भी कोई समस्या नहीं
इस विजयी सैनिक की
याद करता रहता है उन दुश्मनों की शकलें
जिन्हे बिरहमी से हलाक किया था
इस विजयी सैनिक ने
जिनसे उसकी कोई दुश्मनी नहीं थी
लेकिन साहब ने बताया उन्हें देश का दुश्मन
और होता नहीं दुश्मन का कोई मानवाधिकार
सैनिक के पास होता नहीं
हुक़्मनातालीमी का अधिकार
करना दुश्मन की परिभाषा और पहचान
नहीं है काम सैनिक का
फल है सर्वज्ञ आलाकमान के
शत्रुविज्ञान के प्रखर ज्ञान का
शुरू किया बात विजय की इस बार
जब इस विजयी सैनिक ने
अदृश्य हो चुकी थी गर्व की रेखायें
या दब गयीं थी
गहन अपराध-बोध की झुर्रियों तले
उसकी वीरता के शिकार दुश्मन भी
 इंसान लग रहे थे
बोला आचार्यत्व के भाव में
अब क्या फायदा कहने का
कि नहीं मारना चाहिये उन दुश्मनों को
जिनसे कोई दुश्मनी न हो
हां वह उस सैनिक बेटे के बच्चों को
जरूर बतायोगा बात
उस बेटे के बच्चों को
जो बिना जंग के शहीद हो गया
और जिसके विधवा की पेंशन अटकी हुई है
यह भी कि सैनिक कभी विजयी नहीं होता
जब तक वह हाक़िम के बताये दुश्मन को
अपना दुश्मन मानता रहता है
वह तभी विजयी होगा
जब दुश्मन की पहचान खुद करेगा
(ईमिः22.05.2015)





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