Wednesday, May 13, 2015

ज़ालिम पर ख़ौफ़ ढाती है कविता

"Until eighteen years old everyone writes poems. After that only two categories of people continue to do so: the poets and the idiots."
-----------------Benedetto CROCE
18 के बाद वाली का पता नहीं, पहले वाली बात तो गलत है, हम सब जानते हैं, मुश्किल से 1 फीसदी युवा ही तुकबंदी पर हाथ आजमाते होंगे, बहरहाल 18 के बाद वाली दूसरी कोटि का एक फौरी नमूना --

अकवि को चिढ़ाने के लिए लिखता हूं कविता
दिल बहलाने के लिए लिखता हूं कविता
दिल जलाने के लिए लिखता हूं कविता
ग़म मिटाने के लिए लिखता हूं कविता
ज़ुल्म से लड़ने के लिए लिखता हूं कविता
नए जमाने के लिए लिखता हूं कविता
इतिहास पढ़ाने के लिए लिखता हूं कविता
ज़ुल्म मिटाने के लिए लिखता हूं कविता

जब बालक था तो सोचता था कविता
होते हुये किशोर सुनने लगा कविता
बिता दी जवानी पढ़ते हुये कविता
आवारागर्दी में बुढ़ापे की लिखता हूं कविता
सुनते नहीं गुनी जन जब कोई कविता
फेसबुक पर चेंप देता हूं कई कविता
छापते नहीं संपादक जब मेरी कविता
दीवारों पर लिखता हूं कविता ही कविता
कहता आलोचक जब नारा है मेरी कविता
शुक्र अदा करने को लिखता हूं कविता
सोचता हूं जब न लिखने की कविता
लिखता हूं जो भी हो जाती कविता
भगाने को चोर भौंकती है कविता
बच्चे को लोरी सुनाती है कविता
हिटलरी स्वास्तिक मिटाती है कविता
चंगेजों के खंजर तोड़ती ये कविता
मुफलिस की आवाज़ बनती ये कविता
रोजी का औजार होती है कविता
मज़लूम का हथियार होती है कविता
ज़ालिम पर ख़ौफ़ ढाती है कविता
इंक़िलाब के नारे लगाती है कविता

लेख का समय खा गयी ये कविता
मगर मुतमइन कर गई ये कविता
(हा हा दूसरी कोटि का ज्वलंत, स्वस्फूर्त उदाहरण)
(ईमिः 14.05.2015)

No comments:

Post a Comment