Friday, May 8, 2015

पूछने से ही पता चलती है हक़ीकत

पूछने से ही पता चलती है हक़ीकत
लोग कहते कुछ और करते कुछ और हैं
थे जब वो कतवाल पकड़ सकते थे मुज़रिम
तब शह की मुसाहिदी का मसला कुछ और था
वर्दी की वफादारी में ज़ुर्म किया आवाम से
नौकरी के बाद की लफ्फाजी का मामला कुछ अौर है
होती है निष्ठा विचारधारा का
खून के रिश्ते की नज़ाकत का सिलसिला कुछ और है
हैं आप इंकिलाब के पुजारी
हो अगर जालिम अपना ही सहोदर
ज़ुल्म का पैमाना तब कुछ और हेै
पूछने से ही पता चलता है
अगले के दिमाग का फितूर क्या है
पूछो खुद से सवाल बवाल करने वाले
तुम्हारे दिल की दहशत क्या है.
(ईमिः 07.05.2015)

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