हावर्ड फास्ट के कालजयी उपन्यास स्पार्टकस का हिंदी अनुवाद अमृत राय ने आदिविद्रोही शीर्षक से किया है. मैं इसे अनुवाद को मानक मानता हूं. अच्छा अनुवाद वह है जो मौलिक सा ही मौलिक लगे. यह दास प्रथा पर आधारित रोमन सभ्यता के विरुद्ध, ग्लौडिएटर स्पार्टकस के नेतृत्व में प्रथम शताब्दी ईशापूर्व दास विद्रोह की कहानी है जिसे फ्रास्ट के कथाशिल्प ने मुक्ति के मौजूदा संघर्षों के लिये प्रासंगिक ही नहीं प्रेरणादायी भी बना दिया, है . स्पार्टकस के नेतृत्व में अनुमानतः 70, 000-100,000 भागे हुए गुलामों की सेना 4 साल तक रोम की सैन्यशक्ति को आतंकित किये हुये थी. रोम की कई शक्तिशाली टुकड़ियों को खत्म करके दक्षिण इटली को मुक्त करके रोम की मुक्ति के खतरों से हरामखोर नेता-व्यापारी-कुलीन त्राहि-त्राहि कर रहे थे. रोम की सैन्यशक्ति ने यद्यपि स्पार्टकस की सेना को अंततः परास्त कर दिया लेकिन उसने रोम की चूलें हिला दी.
इतिहास की पुस्तकों से स्पार्टकस के बारे में उड़ती-उड़ती जानकारियां ही मिलती हैं. इनके समकालीनों के नोट्स से टुकड़ों में जानकारियों को जोड़ कर खाका तैयार किया जा सकता है. यनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में रोम तथा उसके शासकों की फेहरिस्त पर 100,000 शब्दों की प्रस्तुति में स्पार्टकस के बारे में 3 वाक्य से काम चला लिया गया है. स्कूल-क़लेज की इतिहास की किताबों से यह विद्रोह नदारत है. यूरो-अमेरिकी लेखन में जो ज़िक्र मिलता भी है वह अत्यंत निंदात्मक है.इसे "सिफिरे, गुलामों", "बटमारों", "भगोड़ों" और "बदहाल किसानों" का परिस्थितिजन्य उभार के रूप में चित्रित किया गया है.
जिस रोमन जनरल के लशकर को स्पार्टकस की
सेना पराजित किया था हावर्ड फ्रास्ट के उपन्यास में वह, कुलीन, सलरिया विल्ला में युद्ध
के अनुभवों को याद करते हुये बताता है कि किस तरह सेनेट के आदेश पर उसने क्रांतिकारी
गुलामों द्वारा विसुइयस की ढलान पर ज्वालामुखी के पथ्थरों से बनी अनूठी कलाकृतियों
को नष्ट किया. “पूरी तरह नष्ट करने के बाद हमने उन्हे मिट्टी में मिला दिया- अब
उसका कोई अवशेष नहीं बचा है. तो क्या हमने स्पार्टकस तथा उसकी सेना को खत्म कर
दिया. थोडा और समय लगेगा – और निश्चित ही हम उन सारी यादगारों को मिटा देंगे जिससे
पता चले कि उसने क्या और कैसे किया”
स्पार्टकस की कहानी
तो 2000 साल से अधिक पुरानी है. लेकिन हर रचना समकालिक होती है, महान रचनाएं कालजयी
या सर्वकालिक बन जाती हैं. फ्रास्ट की यह रचना भी समकालीन अंतरविरोधों की
अभिव्यक्ति है. रोम के पतनशील, ऐयाश शासक वर्गों की अमानवीयता और गुलामों की सहजता
और जीवट का जीवंत चित्रण मौजूदा वर्ग शत्रुओं और अंतरविरोधों की भी व्याख्या है.
रोम के राजनीतिज्ञों में व्याप्त भ्रष्टाचार, यौनिक दुराचार, औरतों की अवमानना,
युवाओं की लंपटता नवउदारवादी युग के धनपशुओं के आचरण से आसानी से मेल खाता वर्णन लगता
है. उपन्यास में एक तरफ ग्लैडियेटरों के खूनी जंग के तमाशे से परसंतापी सुख से
मुदित होने वाले तरफ शासक वर्ग और उनके चाटुकारों का “राज्य के शत्रुओं” को
सामूहिक फांसी का उंमाद है; सार्वजनिक स्नानागारों की भव्यता तथा महलों की विलासिता तथा शाही पकवानों
की विकराल सूची है और दूसरी तरफ अमानवीय उत्पीड़न के शिकार गुलाम हैं तथा जानलेवा
गरीबी से त्रस्त शहरी गरीब हैं.
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