युग चेतना का उत्तम उदाहरण -- कि यही सर्वोचित व्यवस्था है हर कोई को योग्यता-श्रम के अनुसार पुरस्कृत दंडित होता है. क्या घिसी-पिटी उपमा है. परीक्षा के अकों का समान वितरण. समानता और न्याय के विचारों के विरुद्ध कामचोरी का यह कुतर्क अादिकाल से ही चला आ रहा है, चौथी सदी पूर्व अरस्तू सामूहिक संपत्ति के सिद्धांतों को नकारने के लिये वे सारे मुहावरे-किंवदंतियों का सहारा लिया. कौन नहीं काम करना चाहेगा. प्रैक्सिस मार्क्सवाद की प्रमुख अवधारणाओं में है. मार्क्सवाद श्रम को जीवन की आत्मा मानता है. मुष्य एलीनेटेड श्रम नहीं करना चाहता जिस पर किसी और का नियंत्रण हो. साम्यवाद में एलीनेसन न होगा. सब की साझी समझ यह होगी कि निजी हित सामूहिकता में ही सर्वाधिक सुरक्षित हैं.
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