ये तो
शायराना विमर्श हो गया
प्रेरणा
को परामर्श मान लिया
बात थी
बचने की ग़ुमराह करने वालों से
चलने लगी
बात नई राहों के तलाश की
राह
भटकाना है जिनकी फितरत
वे
अनजाने में ही आत्मघात करते हैं
हो गर
साहस आजाद़ मिजाजी का
ये दुम
दबाकर भाग जाते हैं
जाल
कितना भी बिछायें ये कुज्ञान का
इंसान चिंतनशील
बन ही जाते हैं
समझ जाते
हैं इनके मंसूबों की हक़ीकत
जंग-ए-आजादी
के ज़ज्बे तराश ही लेते हैं
पिलायें
घुट्टी कितनी ही तोतागीरी की
लोग
फितरत-ए-बेबाक बयानी तलाश ही लेते हैं
कविता है बौद्धिक आवारागी
जिसमें
जरूरी काम हम छोड़ ही दते हैं
(हा हा)(ईमिः07.05.2015)
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