Sunday, May 24, 2015

वह सुबह कभी तो आयेगी



कब से तो हम गा रहे हैं
वह सुबह कभी तो आयेगी
खुशियों की बयारें लायेगी
धरती आज़ादी के नग़्में गायेगी 
पर रात भयानक होती जायेगी
वह देरी जितना लगायेगी
है उस सुबह का बेसब्र इंतजार
अपना इतिहास लिखेगा जब खुद ख़ाकसार
होंगे नहीं शेरों के जब तक खुद के इतिहासकार
इतिहास करता रहेगा शिकारी की महिमा का प्रचार
और मांगता रहेगा हलवाहा वेद पढ़ने का अधिकार
आयेगी ही वह सुबह जब रौशन होगा सारा संसार
करेगा हलवाहा तब वैकल्पिक वेद रचने का विचार
इतिहास करता है सबसे एक सलूक एकसमान
खात्मा निश्चित है सबका है जो भी विद्यमान
नहीं रहेगा सदा कायम ये ज़ुल्म का निज़ाम 
होगा ही इसका भी जल्द ही काम तमाम
(ईमिः24.05.2015)

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