671
मैं मर नहीं सकता
क्योंकि मैं विचार हूं
मारते रहे हो तुम मुझे उस
समय से
अमीर-ओ-गरीब का निज़ाम बना
जबसे
लेकिन मैं तो कभी मरा नहीं
वैसे ही जैसे कभी डरा नहीं
न भगवान से और न भूत से
डरते तो तुम हो
मेरे खौफ की बौखलाहट में
तुम बार बार कत्ल करते हो
मुझे
लेकिन मैं हूं कि मरता ही
नहीं
क्योंकि मैं विचार हूं.
मारते रहे हो तुम मुझे
जब से मैंने होश संभाला
लेकिन मैं हूं कि मरता ही
नहीं
क्योंकि मैं विचार हूं
जब मैं सुकरात था
हो खौफ़जदा मुझसे तुमने
फैलाया धर्मोंमाद
और कत्ल कर दिया मुझे
पिलाकर जहर
जैसे मार रहे हो आज
हिंदुस्तान के किसानों को
लेकिन मैं तो मरा ही नहीं
क्योंकि मैं विचार हूं
मर नहीं सकता
ज़िंदा हूं धरती के करोड़ों
इंसानों में
सुनते हैं जो सुकरात की तरह
विवेक की आवाज़
और ज्ञान को सद्गुण मानते
हैं
लगा देते हैं जान की बाजी
सत्य के लिए
इसीलिये तुम डरते हो मुझसे
क्योंकि तुम डरते हो इतिहास
से
बार बार कत्ल करते हो मुझे
सत्ता के हथियारों से
लेकिन मैं मरता नहीं, कभी न मरा कभी न मरूंगा
क्योंकि मैं विचार हूं
बन मंसूर जब मैंने उठाया
इंसाफ की
मैं मरा नहीं और जारी है
जंग-ए-इंसाफ
मैं मरूंगा भी नहीं
मैं विचार हूं
था जब गैलीलियो और किया
शौर्यमंडल की सच्चाई की बयान
कत्ल कर दिया मुझे टांगकर
गिलोटिन पर
लेकिन मैं तो मरा ही नहीं, मरूंगा भी नहीं
मैं तो विचार हूं
लंबी है फेहरिस्त तुम्हारी
कातिली की
और मेरे न मरने की
जब बन भगत सिंह ललकारा लूट
के निज़ाम
ले सहारा अदालत-ए-नाइंसाफी
मार दिया था फांसी पर
लटकाकर
हाहाकार मच गया अंग्रेजी
साम्राज्य में
ओर मैं तो मरा नहीं
क्योंकि मैं विचार हूं
ग्राम्सी और चे के साथ भी
तुमने यही किया
विचारों का सिलसिला बढ़ता
गया
सीखते नहीं तुम कुछ इतिहास
से
मारते जा रहे हो मुझे
लगातार
बढ़ता ही जा रहा है मेरा
आकार
क्योंकि मैं मरता ही नहीं
मरूंगा भी नहीं
मैं तो विचार हूं
अजर और अमर
अनादि ओर अनंत
(ईमिः 14.05.2015)
672
लिखना है ख़ौफ़ के खात्मे
की कविता
निर्भय हो साहस से लड़ने की
कविता
ऐसे वक़्त में जब हो रहा हो
सोच पर प्रहार
सुरक्षा के लिए खतरा घोषित
हों जायें विचार
सुननी ही होगी मुक्तिबोध की
आतुर पुकार
उठाने ही होंगे अभिव्यक्ति
के खतरे लगातार
(ईमिः14.05.2015)
673
ये जो
नन्ही सी गुड़िया है
अनंत
संभावनाओं की पुड़िया है
भरेगी
आहिस्ता-आहिस्ता नई उड़ान
गढ़ेगी
निरंतर नये नये आसमान
बनेगी
अनोखी विप्लवी जहीन
ओझल न
होगी आंखों से मगर जमीन
उतारेगी
मन में ग़म-ए-जहां की पीड़ा
होगा
इंकिलाब इस कन्या की क्रीड़ा
बढ़ती-पढ़ती-कढ़ती-लड़ती
जायेगी
मानवत-मुक्ति
को मक्सद बनायेगी
ऊंघते
आवाम को गीतों से जगायेगी
ले साथ
उसे नया विहान लायेगी
फैलायेगी
जंग-ए-आज़ादी का पैगाम
इतिहास
में जोड़ेगी नया आयाम
आज की
तुकबंदी इस बेटी के नाम
करेगी जो
ज़ुल्मत का काम तमाम
(ईमिः16.05.2015)
This tender little doll
the epitome of infinite
potentialities
would take a new flight slowly and slowly
would continually create newer skies
and shall acquire the unique revolutionary
wisdom
in her flight beyond the skies
shall never lose the sight of the ground
shall imbibe the agonies of the human
miseries
and shall excel in the sport of the
revolution
shall march on with revolutionary zeal
growing with the dictum of study and
struggle
shall make the human emancipation the goal
of life
shall awaken the masses from their slumber
with her songs
and along with them shall usher into a new
dawn
shall ubiquitously spread the message of
human emancipation
this poem is dedicated to this little one
who shall end the era of injustice and
oppression
(IM/16.05.2015)
674
बंद करो किस्मत का रुदन और बेसहारगी का इज़हार
हिम्मत से उतारोे कस्ती और मजबूती से पकड़ो पतवार
है ग़र मंजिल का संकल्प सहेली बन जाता मझधार
साहस की शक्ति हो तो कर जाओगे भवसागर भी पार
(ईमिः18.05.2015)
675
भरमाते रहे हैं वे पहले भी
भरमाते रहेंगे आगे भी
चाहते हैं ग़र आप निरंतर भटकाव से मुक्ति
जुटानी होगी संघर्षशील एकता की शक्ति
छोड़नी होगी मगर गॉडफादरों की भक्ति
भक्तों की खोज में तब भटकेंगे गॉडफादर
फट जायेगी उनके देवत्व की चादर
न बचेगा कोई भक्त न कोई गॉडफादर
होता नहीं जब तक गॉडफादरी परंपरा का अंत
चलती रहेगी ऐसे ही भरमाने की क्रीड़ा अनंत
(ईमिः20.05.2015)
676
भांति
भांति के राम अौर भांति-भांति के हनुमान
कुछ हैं
हिटलरी हनुमान तो कुछ अंबेडकरी हनुमान
कुछ
मददगार बनते सीटियाबाजी में साहब की
करवा
देते फर्जी मुठभेड़ों में कितनों के काम तमाम
छोड़ते
जो वज़ारत करते राम जब कत्ल मुसलमान
चिराग
जलाने घर का बन जाते अंबेडकरी हनुमान
हिंदू
धर्म को लात मार बने थे राम से जो उदितराज
लालच में
अमृत के बने वे भी अारक्षणी हनुमान
अाया
जमाना ऐसा है जिधर देखो उधर हनुमान
कांग्रेसी
हनुमान संघी हनुमान समादवादी हनुमान
स्देवशी
हनिुमान विदेशी हनुमान निवेशी हनुमान
जय जय जय
जय जय जय जय जय जय हनुमान
(ईमिः 19.05. 2015)
677
हनुमान
पुराण में अभी काफी कुछ छूटा हुआ है.
ऩाम है
नकवी मुख्तार अब्बास कहलाता इलाहाबादी
हनुमानत्व
से जिसके जलती हनुमानों की सारी अाबादी
है एक
अकबर यमजे होता था पहले कांग्रेसी इंसान
पाने को
जगह दरबार-ए-राम में बन गया वह भी हनुमान
कई
प्रोफेसर भी खुदा की खुदाई में मानते हैं खुद को भगवान
पालते
हैं कई दड़बों में कई कोटियों के लक्ष्मण-ओ-हनुमान
जय
हनुमान चरण-रज सागर जय कपीश चहुं ओर उजागर
मक्खन-श्रोत
कपट के माहिर शहर जलाने में जगजाहिर
करेगा न
जो राम भक्ति खत्म कर देगी बजरंगी शक्ति
हर हर
हनुमान बड़हर हनुमान छोटहर हनुमान मोटहर
जिहरै
देखो वोहरै हनुमान जय हनुमान जय हनुमान
(ईमिः 19.05.2015)
678
बहुत ऊंची हैं उनके जेल की दीवारें
मगर हमारे इरादों से कमतर
माना अभी मझधार में हूं
और इस धुप अंधेरे समय में
तूफान की भयानकता मुसोलिनी सी है
सच पर सड़ अड़ाने की जिद की ताकत
पतवार पर पकड़ ढीली नहीं होने देती
ज़ुल्म से ज़ंग के ज़ज़्बे का दुस्साहस
हवा को पीठ देने नहीं देता
भविष्य की पीढ़ियों की जीवंतता में यकीन
टूटने नहीं देता अंततः सचमुच के सत्यमेव जयते का सपना
होता नहीं साश्वत कोई अंधेरा
भोर की अवश्यंभाव्यता रात से कभी डरने नहीं देती
और वैसे भी डर डर कर जी नहीं जाती ज़िंदगी
खींची जाती है आहिस्ता आहिस्ता मौत की तरफ
(ईमिः 19.05.2015)
679
मैं अपनी मां की बेटी
हूं
नहीं परिंदा बेपर
न ही पराया धन
उड़ती हूं गगन में रमता जहां मेरा मन
बंद कर दिया जाना किसी पराये घर
बनाती हूं बसेरा अपनाी मेहनत की ईंट गारे से
झुक जाती ऊपर उठती उंगलियां
मेरी आंख के इक हल्के से इशारे से
देती नहीं बाप को वर खोजने की चिंता
मिल जाता है हमसफर सफर-ए-जिंदगी की राह में
होते दोनों इक दूजे की सख्सियत चाह में
चलते हैं साथ रहते जब तक हममंजिल
अलविदा कर पकड़ते अपनी अलग राहें
अलहदा हो जायें ग़र मंजिल-ए-दिल
दर-असल सारे रिश्ते ही हमसफरी ही हैं
तय करते हैं साथ साथ कुछ दूरियां
मिलते हैं दुबारा ऐतिहासिक संयोग से
साथ रहती हैं मगर यादें हमसफरी की
इस ज़िदगी की आख़िरी सांस तक
जी मैं पंख वाला परिंदा हूं
किसी की खेती नहीं
अपनी मां की बेटी हूं
(ईमिः20.05.2015)
680
Shining India was a prelude to ACHCHHE
DIN
That old patriarch who made India
shining
though a bachelor and a born
Swayamsevak like me
lagged behind in deception and
treachery
also was far behind in dissemble
affability
a mask himself
was unable to further mask himself
while unmasking others
Though excellent in demagoguery
but would at times gave thought to his
words
In attempt to create a global
credibility
took his words of friendship seriously
with Pakistan
a disaster to our stock of food and
fuel
God bless Musharraf who helped creating
Kargil
to scuttle the POTA-LOTA uproar on the
roads
Shining did not bring about good days
The weaponry of riots has not dried as
yet
the ACHCHHE DIN shall continue to
AANEWALE
for the next 5 years
There shall be no kisan and no dukan
no fear no tear
and before 5 years end
Pakistan shall commit the blunder of
attacking our Rashtra
that shall awaken and rise and shall
crush this tiny neighbor
Some philosopher had said it centuries
ago
patriotism is last resort of scoundrels
and war patriotism guarantee to retain
the throne
BEHTAR DIN shall continue to AANEWALA
for the next five years
but i fear the people might come to
know the truth
and throw me in the dustbin of history
I shall burn the books of history
(Ish
Mishra: 20.05.2015)
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