सच कहती हो सिर्फ मांस नहीं हो तुम
यद्यपि जन्म से ही तुम्हे यही बताया गया है
उसी सार्वभौमिक झूठ की तरह
कि किसी ईश्वर ने दुनिया बनाया है
या जनतंत्र थैलीशाहों का नहीं जनता का शासन है
तुम सिर्फ मांस नहीं बल्कि एक मुकम्मल इंसान हो
शस्त्र उठाओ प्रज्ञा का
बेपर्दा कर दो इस मुकम्मल मर्दवादी झूठ को
ध्वस्त करके मर्दवाद का वैचारिक दुर्ग
प्रतिवर्चस्व के लिये नहीं
मानवमुक्ति के लिये
(ईमिः 04.07.2015)
No comments:
Post a Comment