521
तानाशाह 1
तानाशाह हर बात
से डरता है
अपने पाप से
डरता है, अपने आप से डरता है
हमारे गीतों से
डरता है, अपने भीतों से डरता है
कायर कुत्तों की
तरह झुंड में शेर हो जाता है
पत्थर उठाने के
नाटक से ही दुम दबाकर भाग
जाता है
(ईमि/तारीख याद नहीं)
522
डर डर कर नहीं
जियी जाती ज़िंदगी
डर डर कर नहीं
जियी जाती ज़िंदगी
डर में जीने
वाले लोग जीने मे मरते हैं
बार बार धीरे धीरे मंद गति से
किसी पुरानी
रुमानी फिल्म के निराश नायक की तरह.
नामुमकिन की ही
तरह डर भी एक सैद्धांतिक अवधारणा है
शासन का
मूलमंत्र है vkSj शासित के शोषण की साधना है
जब से आयk पूंजी की दुनिया में भूमंडलीकरण का दौर
डर बन गया आवारा
पूंजी का स्थायी ठौर
डर मौत का ही
नहीं मौत के बाद का भी
बीमाओं के
निगमों में बंद हो जाते हैं जीवन
मौत ही इकलौता
अंतिम सत्य है मगर वक़्त अनिश्चित
ज़िंदगी इक
सुंदर ज़िंदा सच्चाई है
मक्सद है जीना
इक खूबसूरत ज़िदगी
जी जा सकती है
जो हो निडर
डर डर कर जियी नहीं
जाती ज़िंदगी
खिंचती है वह
मौत के इंजार में.
(ईमिः31.08.2014)
523
तानाशाह 2
वह निकलता नहीं
बाहर
हथियार बंद बंद
मानव मशीनों के सुरक्षा कवच से
वह डरता है इस
बात से कि मशीनें सोचने न लगें
अौर बदल जाय
बंदूक की नली का रुख़
डरता है ज्ञान
की शक्ति से
जला देता है
लाइब्रेरी
वह डरता है
इतिहास से
विकृत करता है
उसे गल्प-पुराणों के महिमा मंडन से
वंचित करता है
नई पीढ़ियों को उनके इतिहास से
लेकिन हर अगली
पीढ़ी तेजतर होती है
तोड़ देती है
तानाशाह की कुचेष्टा का मकड़जाल
इन विघ्नों के
बावजूद नया इतिहास रचती है
तानाशाह का मर्शिया
लिखती है
डरता है तानाशाह
नई पीढ़ियों से
निर्बल बनाता है
उन्हें कुशिक्षा और कुज्ञान से
लेकिन हर अगली
पीढ़ी तेजतर होती है, आगे ही निकलती है
तोड़कर कुज्ञान और
कुशिक्षा के सारे ब्यूह
मटियामेट हो
जाता है तानाशाह
जागता है जब और
जागता ही है आवाम का ज़मीर
(ईमिः30.08.2014)
524
दंभ में बैठ
जाता है मुडेर पर कहता है उसे जब कोई यस सर
चरणों में लेट
जाता है कहता है वह जब किसी को यस सर
[ईमि/०६.०९.२०१४]
525
सुना था होता है
मुंह काला दलाली में कोयले की
कर लिया मुंह
काला खरीद-फरोख्त में घोड़ों की
उन घोड़ों में
कुछ चतुर-चालाक लोमड़ियाँ भी थीं
छुपे कैमरों से
मोल-भाव की बोलती तस्वीरें ले लीं
युवराज के भांट
ने किया खबरनवीशों से संवाद
बताया तस्वीर को
विपक्षी चाल और बेबुनियाद
युवराज ने लगाया
आक्रामक शैली में प्रतिआरोप
दुश्मन के दिमाग पर छाया
है बादल का घटाटोप
दिया है
मैक्यावाली ने सियासतदानों का पैगाम
सियासत में
सदाचार और नैतिकता का क्या काम
है गर धोखा-धडी
खून-खराबे से कोइ भी परहेज
छोड़ कर
तख़्त-ओ-ताज अपनाये सन्यासी भेष
हों कितनी भी
बेतुकी-बेहूदी मजहबी रवायतें
कट्टर मुल्ले से
पढो कुरआन की आयतें
मज़हब है सियासत
का कामयाब औज़ार
अलग-अलग रूपों
में आजमाओ बार बार
हो जब मुल्क के
किसी मसले का सवाल
मचा दो सारे
मुल्क में मजहबी बवाल
हो गर कभी आवाम
के हक का विवाद
हिचको मत
फैलाने में धार्मिक उन्माद
वायदा करो देने
का सारा आकाश
गर पड़े जरूरत कर
दो सत्यानाश
देता है युवराज
को और भी नायाब सलाह
"प्रिंस" है सियासी
मशविरों का भण्डार अथाह
चुनते हुए जीवंत
मिशाल पडा नहीं दुविधा में
रोड्रिगो
बोर्जिया को चुन लिया था सुविधा से
छलता था लोगों
को चमात्कारिक निपुणता से
पा जाता था अवसर
काफी प्रचुरता में
उसकी अपनी थीं
जेलें जल्लाद जहरनवीश
करता था
कारिंदों की बारीकी से तफशीश
किया इस
कार्डिनल ने कुछ अद्भुत तिकड़म
बन गया आसानी से
पोप अलेक्जेंडर षष्टम
चुनना हो गर
जीवंत मिसाल मैक्यावाली को आज
बहुत दुविधा में
पड़ जाएगा उसका सियासी अंदाज़
दुनिया की छोड़ो
होंगे हिन्दुस्तान से ही अनेकों दावेदार
नहीं रहेगा किसी
से पीछे अपना राष्ट्रभक्त सूबेदार
समझेगा ग़र वह
भूमंडलीय सियासत का मिजाज़
लाजिम है चुनेगा
हिन्दुस्तान से मिसाल-ए-युवराज
(इमि/०९.०९.२०१४)
526
बन्दूक नहीं है
वाजिब हथियार अभी
जनवादी जनचेना
की दरकार अभी
(इमि/०९.०९.२०१४)
527
पाश के जन्म दिन
को याद करता विप्लवी आवाम
कामरेड पाश को
लाल सलाम लाल लाल सलाम
भूल जायेंगे लोग
सुरेन्द्र शर्मा की कवितायें
क्योंकि वे एक
लडकी से प्रेम की कवितायें हैं
लेकिन याद
रखेंगे पाश की कवितायें
क्योंकि वे जहान
से प्यार की कवितायेँ हैं
शामिल है जिसमें
माशूक का भी प्यार
काम्ररेड
पाश को लाल सलाम
याद रखेगा तुमको साथी
दुनिया का
इन्किलाबी आवाम
लाल लाल लाल
सलाम
देखकर धार
तुम्हारी कविता की
उसमें बहती
निर्मल सरिता की
दहशत खा गए
हुक्मरान
हो गए थे
दहशतगर्द हैरान
असुरक्षित कायर
होता है फासीवादी
विचारों में
देखता है अपनी बर्बादी
नहीं सह पाता वह
विचारों की धार
घबराहट में करता
है विचारक पर वार
ऐसा ही किया था
उसने गैलेलियो के साथ
नहीं थे भगत
सिंह इपाश सके अपवाद
रोकना चाहा
ग्राम्सी के विप्लवी विचार
बंद कर जेल में
किया भीषण अत्याचार
ऊंची थीं
मुसोलिनी के जेल की दीवारें
उससे भी ऊंचे थे
बुलंद इरादे ग्राम्सी के
रुका नहीं कलम
कभी ग्राम्सी का
सिद्धांत दिया
वर्चस्व की त्रासदी का
चे को भी उसने
इसे कायरता से मारा
प्रेरित होता
रहेगा उनके विचारों से सर्वहारा
शहीदों की
श्रृंखला की एक कड़ी हैं पाश
होने नहीं देंगे
उनके सपनों को उदास
नहीं मरने देंगे
हम पाश के सपनों को
जोड़ेंगे साथ सभी
मेहनतकश अपनों को
लड़ेंगे साथी
क्योंकि लड़ने की जरूरत है
लाल सलाम साथी
पाश! लाल लाल सलाम
फैलाती रहेंगी
अगली पीढियां तुम्हारा पैगाम.
(इमि/०९.०९.२०१४; 8.52 PM)
528
जातिवाद का एक
ही जवाब इन्किलाब जिंदाबाद
नहीं टूटेगी
जाति प्रतिजातिवाद से
टूटेगी वह
वर्गचेतना के आगाज़ से
शासकवर्गों की
है यह पुरानी चाल
फैलाते हैं
मिथ्याचेतना का जाल
अंत:कलह को
बताते सामजिक अनार्विरोध
कुंद करने को
धार आवाम से अंतर्विरोध की
और रोकने को लूट
का कोई सशक्त प्रतिरोध
है एक बात
काबिल-ए-गौर
वर्ण भी वर्ग है
नहीं कुछ और
शासक वर्ण ही था
शासक वर्ग
मनुवादी कहते
जिसे धरती का स्वर्ग
करना है उजागर
गर हकीकत वर्णाश्रमी स्वर्ग की
सजग हो कीजिये
शिनाख्त अपने वर्ग की
लम्बे बहुआयामी
वर्गसंघर्षों के बाद
बनेगा ही अंतत:
जब वर्गहीन समाज
न रहेगा कोइ
राजा न ही कोइ राज
छूमंतर हो जाएगा
खुद-ब-खुद जातिवाद
(इमि/१०.०९.२०१४)
529
नहीं है जरूरत
बदलाव के लिए खून बहाने की
जरूरत है
जनचेतना को जनवादी बनाने की
(इमि/१०.०९.२०१४)
530
कितना सरल है
लीक पर चलना
और रहना भगवान
भरोसे के छलावे में
लेकिन आनंद है
अद्भुत उन जोखिमों में
उठाने पड़ते है
जो बनाने में नए रास्ते
और उन दुस्साहसी
इरादों में
देते हैं जो
शक्ति बढ़ते रहने के आगे
नकारते हुए खुदा
की सल्तनत
और ललकारते हुए
उसकी खुदाई
कराती है जो
रक्तपात
और नफ़रत की
उत्पात
अपने मजहबी चोलों
में
(इमि/१०.०९.२०१४)
531
चे को क्या
जरूरत थी
मंत्रिपद छोड़
बोलीविया जाने की
दुनिया में
इन्किलाबी जूनून जगाने की
और सीआईए का
शिकार होने की ?
लिखते रहते
मर्शिया पूंजीवाद का क्रिस्टोफर काड्वेल
बैठ लन्दन की
लाइब्रेरी में करते और फर्दर स्टडीज
क्या जरूरत थी
जाकर स्पेन में
फासीवाद से जंग
में शहीद होने की?
जैसा फरमाया
श्रीमन् ने उस दिन
लालकिले की
प्राचीर से
करते हुए संवाद
मुल्क की तकदीर से
और भी रास्ते थे
जीने के
तख़्त-नशीं होने
के
क्या जरूरत थे
भगत सिंह को
हंसते हुए चूमने
की फांसी का फंदा?
पूछते हैं हैं जो
ऐसे सवाल
होता नहीं
जिन्हें दुर्बुद्धि का मलाल
नहीं जानते वे
इतिहास का मर्म
और इन्किलाब का
मतलब.
(इमि/१४.०९.२०१४)
532
जागेगा जब मजदूर
किसान
होगा लामबंद साथ
छात्र नवजवान
लिखेगा तब धरती
पर नया विधान
होगा जो मानवता
का नया संविधान
बदल देगा इतिहास
का जारी प्रावधान
होगा बहमत का
अल्पमत पर शासन
मनाने को उसे
समानता का अनुशासन
भोगेंगे मिल साथ
समता का सुख अनूठा
न कोइ होगा भूखा
न कोइ किसी से रूठा.
(इमि/१४.०९.२०१४)
533
एक पुलिस अधिकारी मित्र ने पोस्ट डाला कि अच्छे काम करने पर भी बदनाम होते हैं और मौत के शाये में जीते है, उस पर मेरा कमेन्ट:
करते रहोगे गर काम नेक
करते हुए इस्तेमाल दिमाग का
मिलेंगी दुवाएं अनेक
होगा भला गर आवाम का
माना नहीं हो वर्दीधारी गुंड़ा
यह भी माना की वर्दीधारी शेर हो
समझ नहीं पाता
कि कौन ज्यादा खतरनाक है
मानवता के लिए, शेर या गुंडा?
नहीं समझ पाता हूँ और भी एक बात
होता क्यों नहीं वर्दीधारी भी साधारण इंसान
मिले जिसे तालीम न महज हुक्म तामील करने की
बल्कि विवेक का भी इस्तेमाल करने की
और सुनने की आवाज़ अंतरात्मा की?
उसी तरह जैसे समझ नहीं पाता
कि क्यों नहीं समझता शिक्षक
शिक्षक होने की अहमियत?
मौत के खौफ में नहीं जी जा सकती सार्थक ज़िंदगी
मौत के खौफ में धीरे धीरे मरता है इंसान
मौत माना कि है अंतिम सत्य मगर अनिश्चित है
ज़िंदगी सुन्दर सजीव और सुनिश्चित है
जीना है वाकई गर एक मानिंद जिन्दगी
डालनी पड़ेगी आदत बेखौफ़ जीने की
सादर
(इमि/१४.०९.२०१४)
534
अगर दुनिया से
ख़त्म हो जाए पुलिसतंत्र
हो जाएगा किसान
और मजदूर स्वतंत्र
करता है जो
क़ानून व्यवस्था का कोरा प्रपंच
हिफाज़त करता है मुल्क के
के थैलेशाहों की
और जरायमपेशा
सियासतदां आकाओं की
वर्दी के नाम
मचता है आवाम में कोहराम
यह बात और है
देता है वही इस वर्दी का दाम
हो जाए अगर धरती
से पुलिस की जमात ख़तम
दुनिया में
लहराएगा अमन-चैन का परचम
किसानों के पैसे
से खरीदता है बन्दूक और गोली
टाटा के आदेश से
खेलता उन्ही के खून से होली
चाहिए टाटा को
कलिंगनगर के किसानों की जमीन
किसानों ने कहा
देंगे जान पर देंगे नहीं अपनी जमीन
हुई नहें टाटा
को आदिवासियों की यह बात बर्दास्त
जमशेद नगर बनाने
में नहीं हुई थी ऐसी कोइ बात
हुए थे उस वक़्त
हजारों आदिवासी बेघर
उनके वंशज रखे
है आस में अब तक सबर
जमीन न देने की
आदिवासियों की मजाल
कायम होगी इससे
एक बहुत बुरी मिसाल
किया टाटा ने
बीजू पटनायक के बेटे को तलब
कहा उससे
आदिवासियों को सिखाने को सबब
भेज दिया उसने
कलेक्टर और पुलिस कप्तान
हुक्म दिया
मारने को अदिवासी किसान
मार दिया उनने
कितने ही मासूम इंसान
सिखाया जाता है
पुलिसियों को मानना आदेश
हो जाए चाहे
विवेक और जमीर का भदेश
पुलिसियों में
होते हैं कई बेहतर इंसान भी
फ़र्ज़ अदायगी में
खतरे में डालते हैं वे ज़िंदगी
ऐसे लोग अपनी
जमात में अपवाद होते हैं
अपवादों
से नियम ही सत्यापित होते हैं
होगा जब कभी ऐसे
दिन का आगाज़
वर्दियां
सुनेंगीं अंतरात्मा की आवाज़
सुनेंगीं आवाम
का इन्किलाबी सन्देश
मानेंगीं
नहीं हाकिम का अनर्गल आदेश
बदल देंगी दिशा
बन्दूक की नली का
हाकिम दिखेगा
गुंडा पतली गली का
मारेंगी नहीं तब
वे मजदूर किसान
बंदूकों पर होगा
उनके लाल निशान
(इमि/16.०९.२०१४)