Sunday, April 14, 2013

बोझ सुन्दरता के आभूषण के


खूबसूरती ही सद्गुण है औरत का
पुरुषार्थ के आयाम अनेक
अरस्तू, मनु और सारे ज्ञानी-मानी
दे गए हैं विचार ऐसे नेक
ढोती आयी है औरत बोझ अब तक
सुन्दरता के आभूषण के
खुश होती आई है वह अब तक
हुस्न के पिंजरे में अपने शासन से
अब वक़्त आ गया है
सर से बोझ उतार फेंकने का
आज़ादी की खातिर
सभी पिंजरों की सलाखों को तोड़ देने का
[ईमि/१५.०४.२०१३]

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