ग्रीन-हंटी जेहाद
ईश मिश्र
[यह कविता परम मित्र
उपेंद्र को समर्पित है जिनके सवाल के बिना यह जवाब नही आता.]
जेहाद जहालत का नहीं
चतुर-चालाक जुल्म का खेल है
कुतर्कपूर्ण विश्वास
और लूट का सनातन उन्मादी मेल है
ग्रीन-हंट के नाम पर
छेड़ा है जेहाद यह कार्पोरेटी कमीना
गुलामी खरीदते वक्त
चिल्ला रहा था जो टीना-टीना
टीना नहीं है किसी
कमसिन लड़की का नाम
देएर इज़ नो
अल्टरनेटिव का अँगरेजी पैग़ाम
जिंदादिल-जिंदा कौमे
होती नही कभी विकल्पहीन
यह तो निशानी मुर्दा
कौमो की जो है सत्ता-नसीन
खोला खाता स्विस
बैंक में बन गया हथिआनसीन
बीच दिया
देसी-विदेशी सेठो को जल-जंगल-जमीन
खाया है नमक कर नही
सकता वायदाखिलाफी
नक्सलवाद के नाम पर
मांगता रहता है माफी
माफीनामे से नही
होता सेठ बहुत ज्यादा आश्वस्त
दिखनी चाहिए उसे
तैयारी और ठोस बंदोबस्त
मजबूर हैं, नही हैं बिकुल भी ये नमकहराम
आका को दिलाशा देने
को किया ग्रीन-हंट ऐलान
कहने लगे ज्ञानी-जन
इसे जेहादी उन्माद का जज्बात
कुफ्र क्या सबसे
बड़ा? कहा उन्होंने नक्सलवाद
मुकम्मल है इनके पास
काफिरों की एक लंबी सूची
कुछ सनकी वुद्धिजीवी
बाकी नंगे-भूखे किसान-आदिवासी
किसान-आदिवासी ने भी
लिया है अब ठान
चलने नहीं देंगे यह
दानवी अभियान
बंद कर दिया डरना
उन्होंने अब मौत से
लड़ता है तीर उनका
दुश्मन की तोप से
शहादते दिलाती हैं
जीत का यकीन
अडिग हैं कि जान
देंगे, देंगे नही जमीन
जनता अब अपने हक
पहचान गई है
ग्रीन-हंटी जेहाद की
हक़ीक़त जान गई है
मनन कर रही है वह
इंक़िलाबी विकल्पों पर
मुक्ति-अभियान के
भावी संकल्पों पर
[२०१०]
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