क्रांति का नशा
ईश मिश्र
बेहतर है क्रांति का नशा भ्रांति के नशे
से
चुनना ही है गर कोई एक इन दोनों में से
एक देता है गगनचुंबी उड़ान, तब्दीली के खयालो को
दूजा ढकेलता है रसातल में निराशा के
छोड़ कर पीछे सारे विप्लवी सवालों को
एक देखता है इंक़िलाबी ख्वाब आर-पार की लड़ाई से
दूजा देखता है इंक़िलाब गठजोड़ में
सरमायेदारी से
[फरवरी २०११]
No comments:
Post a Comment