Saturday, April 27, 2013

लल्ला पुराण ८२

मित्र मैंने आपसे पहले ही आग्रह किया है कि बेहूदी भाषा से ही बात में दम नहें आ जाता है. आप किस साहित्य को दो कौड़ी का कह रहे हैं? फतवेनुमा समीक्षा के पहले कम से कम भूमिका पढ़ लें. तथ्यों-तर्कों की बात यहीं आती है. आपने बताया नहीं कि किस साहित्य की बात कार रहे हैं, और उसमें कौन सी बात दो कौड़ी की है? यही जहालत कहलाती है. यदि पता चले कि आप किस साहित्य की बात कर रहे हैं और क्यों आप उसे दो कौड़ी का कह रहे हैं तो विमर्श हो सकता है, हवाई बातों पर नहीं.  इन एन.जी.ओ. को इन यात्राओं का पैसा खान से मिलता है? आप में तर्क क्या कुतर्क करने की क्षमता ही नहें हाई क्योंकि पढने-लिखने में आपकी रूचि नहें है. आपने कभी भी किसी पोस्ट पर कोइ विषय से सम्बंधित कोइ टिप्पणी नहीं किया,बस आपके सर पर वामपंथ का भूत सवार है स्पेलिंग तो मालुम नहीं. किसी ओझा के मदद लीजिये. मैं बिलकुल नहीं चाहता की आप मेरी बात पढ़ें और मानें, बल्कि प्रतिवाद करे. यह पोस्ट फेक आईडी पर थी. लेकिन मेरा नाम देखते ही आपके सर पर मार्क्सवाद का भूत सवार हो जाता है. फिर प्रतिवाद नहीं कुतर्क हो जाता है. जो छात्र दिमाग पर टाला लगा लें उन्हें कैसे पढ़ाया जाय, फिर तो भैंस के आगे बीन बजाना ही रह जाता है. और ऐसे लोगों का क्या कहें जो पक्ष-विपक्ष सभी पर लाइक बटन दबाते रहते हैं.

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