कब तक छली जाती रहेगी अहल्या देवराज के कपट से
बनाती रहेफी पत्थर किसी मर्दवादी ऋषि के अभिशाप
से
और मोहताज रहेगी कब तक किसी अवतार के स्पर्श की
?
कब तक देती रहेगी सीता अग्नि परिक्षा अपनी
सुचिता की ?
बच न पाई वह फिर भी भोगती रही पीड़ा
निष्काशन की
कब तक करेगी ईर्ष्या अहिल्या से और रखेगी इच्छा
पत्थर बनने की?
अब कोइ अहल्या न छली जायेगी न ही सहेगी कोइ शाप
कोइ भी सीता नहीं देगी कोइ अग्नि-परीक्षा किया
नही कोइ पाप
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