मशालें
ईश मिश्र
ले मशालें हाथ में पढ़ते चलो दीवार पर लिखे नारे
मिटाते चलो जहालत
की इबारतें, लिखो नए नारे
पुकारता महाज से
हमें,
साथी कोई
अंधेरों से डरने
की जरूरत अब नहीं
कर लिया मैंने उसे
मिटाने का इंतज़ाम
लगेगी आग, जलेंगे महलों के खँडहर तमाम
बनेंगे उनपर सुन्दर-सुन्दर
मकान
होगा नहीं जहां
कभी सूर्यावसान
[मार्च-जून २०११]
bahut inspiring creation.
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thanks
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