Wednesday, April 24, 2013

मशालें


मशालें
ईश मिश्र
ले मशालें  हाथ में पढ़ते चलो दीवार पर लिखे नारे
मिटाते चलो जहालत की इबारतें, लिखो नए नारे
पुकारता महाज से हमें,  साथी कोई
अंधेरों से डरने की जरूरत अब नहीं
कर लिया मैंने उसे मिटाने का इंतज़ाम
लगेगी आग, जलेंगे महलों के खँडहर तमाम
बनेंगे उनपर सुन्दर-सुन्दर मकान
होगा नहीं जहां कभी सूर्यावसान
[मार्च-जून २०११]

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