Friday, April 26, 2013

लल्ला पुराण ८१

यह धर्म पर एक पोस्ट पर मेरे कमेंट्स हैं:


मित्रों, यह आभासी दुनिया है जिसमे हमारा संवाद शब्दों से होता है और वही शब्द हमारी आभासी अस्मिता का निर्माण करते हैं. कोइ भी फेक इस लिए नहीं है कि हमारे स्क्रीन पर जो शब्द दीखते हैं वे किन्ही वास्तविक उँगलियों से कीबोर्ड पर टैप होते हैं. आम तौर पर जब तर्क नहीं होता या बातें चाहे कितनी भी विवेक-सम्मत क्यों न हो अपने पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों पर चोट करते हैं तो हम फेक फेक चिल्लाने लगते हैं मैं इस मंच पर शायद ही किसे को वास्तविक दुनिया में जानता हूँ तो मेरे लिए सभी फेक हैं और मैं सबके लिए. मैंने जीवन के अति महत्त्वपूर्ण संक्रमण-कालीन हिस्सा इलाहाबाद (आपातकाल के कुछ दिनों नैनी प्रवास समेत) में बिताये हैं और वे यादें निश्चय ही मोहक हैं, लेकिन इलाबादियों में, अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है की स्वस्थ विमर्श का अभाव खल्कता है. एक बहुत सक्रिय मंच लल्ला का चौराहा इस लिए लगभग समाप्त हो गया कि कुछ लोगों के कुतर्कों को दो लड़कियों ने ध्वस्त करना शुरू किया तो उन्हें लोग फेक कहने लगे. यही हाल एक और कुटुंब का हुआ. उन दो लड़कियों में से एक बहादुर और विद्वान लडकीको मैं खुद जानता हूँ वह जे.एन.यु. की एक्टिविस्ट थी. अरे भाई आगे कोइ बकवास कर रहा/रही है तो लोग उसे खुद ख़ारिज कर देंगे. अगर कोइ लडकी कोई  ऐसी बात कहती है जो   लोगों के दिमाग में बसी लडकी की छवि को तोड़ती हो तो लोगों को लगता है, "बाप रे लडकी होकर....." लडकी लडकी के पहले एक सम्पूर्ण इंसान होती है जैसे की पुरुष. इलाहाब्दियों में अपरिवर्तन का रोग तगादा होता है. बहुत से लोग जिन संस्कारों और सोच के साथ विवि में आते हैं परिवर्तन के गतिविज्ञान को धता बताते हुए उन्हें आजीवन संरक्षित रखते हैं. आइये परिवर्तन के गतिविज्ञान को समझें और स्वस्थ विमर्श करें.
Vikas Singh मैंने पहले भी आप जैसे विवेक-वंचित सर्वग्य विद्वानों से बहस में असमर्थता जाहिर किया है, आप तो ऐसे बात कर रहे हैं जैसे इलाहाबाद आपके पिटा जी की जागीर हो. हम इलाहाबाद में तब थे जब आप शायद शिशु स्वयंसेवक के रूप में शाखा में बिना समझे तोते की तरह नमस्ते सदा वत्सले... रत रहे होंगे, मैं क्या कर वरहा था वह आप मुरली जोशी और रामकिशोर शास्त्री आदि संघियों से पूंछ सकते हैं. आप तो मुझे अज्ञान की कुंठा से ग्रस्त लगते हैं जिसके ऊपर वामपंथ का भूत सवार रहता है जिसे पुस्तकों से इतनी दुश्मनी है की कम्युनिस्ट शब्द की स्पेलिंग जाने बिना फतवे देता रहता है. इलाहाबाद की बात इसलिए कर रहा हूँ की यह इलाहाबाद का मंच ह. वैसे आप लोगों के मन की बातें जान लेते हैं आपको तो बाबा रामदेव की तराह आश्रम खोल लेना चाहिए धन्धा अच्छा आपकी शिष्ट भाषा आपके संघी प्रशिक्षण के बिलकुल अनुकूल है. संघियों के संस्कार ऐसे ही बेहूदे होते हैं आपका कोइ दोष नहीं. इसके पहले भी इलाहाबाद को  आप अपनी जागीर समझ कर नास्तेजिया शब्द का अर्थ शब्दकोष में देखने के बजाय बेहूदी गाली गलौच पर उतर आये थे. एक अंगरेजी की कहावत है खतरा न लेते हुए हिन्दी में जिसका मतलब है सूरज पर थूकोगे तो अपने ही मुह पर गिरेगा.

@विकास सिंह : मित्र मैंने न तो आप को गरियाया न आपके पिताजी को, मैं शिक्षक हूँ गाली-गलौच करता नहीं. आप मेरे इलाहाबाद के बारे में बोलने पर ऐसे आपत्ति कर रहे हैं जैसे उस पर आपका एकछत्र अधिकार हो, जैसे की पिताजी की जागीर के रूप में आप को विरासत में मिला हो. आपकी समझ से लगता है की आप जरूर मेरी तरह वहां विज्ञान के विद्यार्थी रहे होंगे. मित्र आप साहित्य नहीं पढ़ते, मुहावरों का शदशः अर्थ नहीं होता. मैंने अपने हास्टल के विद्यार्थियों पर एक संधर्भ में कहा था. गधे को रगड़ कर घोड़ा न्ब्नाना एक कहावत है. यही तो आपने एक बार nostalgia का अर्थ शब्द कोष में देखने की बजाय उसे गाली समझ गाली गलौच पर उतर आये थे. याद है. आपको कुछ महिला सदयों ने शब्द का अर्थ समझाया था.

Shashank Shekhar मित्र  कुछ वक्तव्य मिट गए हैं अविचल के. इओ बचे हैं उनमें इनकी भाषा देखो. शिक्षा के कमेन्ट से परेशान हो कर उल-जलूल बातें करने लगे. मैं तो किसी को  भी कभी भी तब तक ब्लाक नहें करता जब तक निराश न हो जाऊँ. वह बिना तथ्यों तर्कों के सिर्फ फतवे जारी कर रहे थे. कुछ लोगों की हाल यह है कि बहस किसी मुद्दे पर हो वे वामपंथ की स्पेलिंग जाने बिना वामपंथ पर फत्वेनुमा गाली-गलौच करने लगते हैं. जब तर्क नहीं होता तो आरोप लगाने लगते हैं एसी सुविधाओं में आदर्श झाड़ने का. मेरे घर में कोइ एसी नहीं है और मैं तो घर के पीछे झोपडी डालकर रहता हूँ, जिसमें गर्मी आने पर कल एक पंखा खरीद कर लाया हूँ आज लगवाऊंगा.आंदोलनों औरकिसानों मजदूरों के कार्यक्रमों में स्लीपर क्लास और कभी बिना रिजर्वेसन के भी चलता हूँ भले एसी में चलने की क्षमता क्यों  न हो. सार्वजनिक जीवन के लिए आवश्यक है कि निजी सुख-सुविधाओं का मोह छोड़ना पडेगा. अविचल जैसे बंद-बुद्धि लोगों पर समय को जाया करूँ. ऐसे लोगों को ब्लाक करने का मातलब सच्चाई से मुह मोड़ना नहें बल्कि सच्चाई को स्वीकार करना है. अगर तुम सुनिश्चित करो कि वे भाषा की तमीज के साथ बहस करेंगे  तो उन्हें अन्ब्लाक कर दूंगा. मेरे लिए यह अहम् का मामला नहीं है. एक बार कुटुंब में नृपेन्द्र/शैलेन्द्र/सीमा चंदेल ने ज्योति मिश्र आदि को अन्ब्लाक करने का आग्रह किया मैंने मान लिया और अगले ही दिन इन लोगों ने फी से गाली गलौच शुरू कर दिया और मुझे ग्रुप छोड़ना पडा और अंततः ग्रुप लगभग बिखर गया. हाँ इन्हें अन्ब्लाक करके भी नज़र अंदाज़ करूँ तो कोइ फायदा नहीं है. शिक्षा एक स्वंतंत्र व्यक्ति है हमारी आपकी तरह उसके व्यक्तित्व को बार बार मेरी चेली के रूप में सीमित करना न सिर्फ उसका अपमान है बल्कि मेरा भी. वह तो तकनीकी रूप से मेरी स्टूडेंट भी नहीं रही. यदि आस्तिक भगवान पर अटूट आस्था रखते हैं तो नास्तिकों भी हक है धाम और भगवान् की आलोचना कर सकें. इसके पक्ष और विपक्ष में तर्क स्वागत योग्य हैं किन्तु कुतर्क नहीं. 

6 comments:

  1. Aaap kisi ko kuch bolna hai bolo but y r u commenting such words on "sangh". This is not fair. And yes baba ramdev has done wonderful job. my notion !!

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  2. Sangh is an anti-people; anti-women communal irganization that seeks to divide the society on religious ground to conceal its pro-imperialist policies.

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  3. Sangh is a unique organization which teach us discipline and great glory of hinduism. And who told its anti people and anti women. just ur illusion sir. Respect hindu and respect other religion its mantra...

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    1. Dear shhalu,
      Your anxieties are well taken, and thanks for yur opinions, but my young friend, your opinions are formed not by any understanding or research but on hearsay. I have been in RSS and was known to high up as a Secretariat member of ABVP in a prominent University before I started critical application of mind and developing my own voice instead of just an echo. I have done substantial work on Communalism befor I had computer. I will get scan and upload an article published in 1987, "Women's Question ND communal ideologies: a STUDY INTO THE ideologies OFRSS AND jAMAT-E-iSLAMI" that is a comparative anlysis of the ideoogical texts of these 2 organizations.

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  4. well den i need to search something to support my point .... u need some data and text.?? no issue.!!

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  5. I will post my 1987 article today ad will post another (1992, in hindi) in a couple of days. I always have wondered how can a woman be supporter of any obscurantist or communal organization that are so explicitly anti-feminist.

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