Sunday, December 29, 2013

एक तस्वीर

कुछ खास कहती है यह तस्वीर हो बेबाक
काली जुल्फों से से मिलकर काली पोशाक
लगती है  उजियारे सावन की मोहक घटा
गोरा मुखड़ा बिखेरता पूर्णिमा के चांद की छटा
आंखों पर काला चश्मा लगता चांद पर पतली घन रेखा
ऐसी विरली सुंदरता था पहले नहीं देखा
थोड़ी वक्र है काया उन्नत उरोजों से
आलस्य है चाल में सुंदर नितंवों से
हाथों का उनपर वक्र सहारा
पेश करता किसी पेंटिंग का नज़ारा
चेहरे के भावों का दृढ़ संकल्प
ढूढ़ने का जीवन में एक नया विकल्प
[ईमिः30.12.2013]

3 comments: