Saturday, December 28, 2013

क्षणिकाएं 3 (101-150)

101
इश्क की आंधी में बरसता ही है दिल-ए-आशिक
सरोबार हो जाता है हो इक नयी दुनिया से वाकिफ
[ईमि/२८.०१.२०१३]
102
अपने को ही छल रही हैं मान कर मर्दवादी रवायत
बनकर फरियादी और करके इबादत
आशिक को देती है आप खुदाई की आदत
इश्क है माशूक-ओ-आशिक के बराबरी के जज़्बात
[ईमि/३१.०१.२०१३]
103
सुख और मुगालता
इबादत और मोहब्बत में है छत्तीस का विरोधाभास
इधर खुदाई का गुमां है उधर पारस्परिकता का आभास
मान  लेता है इंसानी  मोहब्बत को जो रूहानी इबादत
झेलता है तह-ए-उम्र वर्चस्व और गर्दिश-ए- इश्क की सांसत
इसी लिये ऐ आशिक-दिल इंसानों सीखो मुहब्बत का मूल-मन्त्र
बुनियाद हो संबंधों का समताबोध और पारस्परिक जनतंत्र
होंगे अगर रिश्ते भगवान और भक्त के खानों में विभक्त
न होगा सुखी भगवान न ही होगा संतुष्ट अभागा भक्त
सुख का सार है पारदर्शीरिश्ते की जनतांत्रिक पारस्परिकता
शक्ति-समीकरण के संबंधों में होता है सिर्फ सुख का मुगालता
[ईमि/०१.०२.२०१३]
104
क्यों लगे बेबाक जुबान पर कोई लगाम हमारी
कठमुल्ले कर सकें जिससे जहालत के फतवे जारी
देता हूँ खुली चुनौती जो हैं  खुदा-पैगम्बरों के पैरोकार
दम है खुदाई में तो ले मेरा एक बाल  भी उखाड़
[ईमि/०४.०२.१३]
105
उठ नहीं पाते जो जीववैज्ञानिक दुर्घटना की पहचान से
करते हैं इज़हार-ए-जहालत अपनी  वहम-ओ-गुमान से
करते हैं वे अपमान तहजीब-ए-सलीका-ए- इंशानियत का
कहते कौमी ईमान और खेलते खेल बर्बर हैवानियत का
नास्तिक हैं हम डरते नहीं किसी भी भूत और भगवान से
डरेंगे क्यों हम अवाम के दुश्मन फिरकापरस्त हैवान से
खुद्दारी ऐसी कि बुलंद हैं इरादे परे इस आसमान से
यकीं खुद पर तो मांगे क्यों दुआ किसी राम-रहमान से
[ईमि/०५.०२.२०१३]
106
क्या सोच कर तुम मेरा कलम तोड़ रहे हो,
इस तरह तो कुछ और निखर जायेगी आवाज़
मौजूदा  मौन को मेरी शिकस्त न समझो
फिर उट्ठेगीहिंदुकुश पार कर जायेगी आवाज
हमारी दावेदारी का यह साज़ चुप है टूटा नहीं
मुफ्तियों की मौत का पैगाम बन जायेगी आवाज़
आगाज ने ही कर दी हराम नीद खुदा के खिद्मद्गारों की
फतवों के ज़ुल्म से अब  दब सकेगी ये आवाज
बाज आओ फतवेबाजी की जहालत से
दबाओगे तो और भी बुलंद होगी आवाज़
[ईमि/०६.०२.२०१३]
107
कोलाहलपूर्ण सुकून
ईश मिश्र
हमारी सोहबत में इतना कोलाहलपूर्ण सुकून था
कि खलती रही है कमी एक दूजे की छूटा जब से साथ
लेकिन सच हैनिर्वात नहीं रहता
पहले हम साथ थे अब मधुर यादें   हैं पास
अच्छे तो लगे और भी लोग
तुम्हारी अच्छाई थी कुछ खास
अलग-अलग खास होती है हर अच्छाई
[ईमि/०८.०२.२०१३]
108
पक्का रंग है प्यार का चढ़े न दूजा रंग
खुद को खोजता हर शख्स प्रेयशी के संग
[ईमि/१४.०२.२०१३]
109
कहा अमीर खुसरो ने
उल्टी दरिया प्यार की
जो डूबे सो पार
डूबा हूँ दरिया में प्यार की
दिखता नहीं कोई ओर-छोर
पाने को सुगंध माटी की
तरसे मनवा मोर
वेलेंटाइन दिवस मुबारक
प्यार-मुहब्बत जिंदाबाद
[ईमि/१४.०२.२०१३]
110
प्यार खोजने के नाम पर खोजते रहे खुद का दिल
जानते हुए कि खोजने से नहीं मिलता  प्यार
उसी तरह जैसे खोजने से नहीं मिलती खुशी
भटकते रहे दर-दर अन्वेषण के भ्रम में
समानान्तर चल रहा था अपना दिल-ए-यार
मिलने को उससे बस कर लो जहाँ से प्यार
[ईमि/१५.०२.२०१३]
111
ज़िंदगी में छिपी हैं संभावनाएं अनंत
धुवें से सिगरेट के होता नहीं उनका अंत
संभाल कर रखो इस जिनगी को अमानत है आवाम की
अंगार छिपे इसमें बनेगी आग इन्किलाब की
[ईमि/१५.०२.२०१३]
112
हमने तो जहमत ही नहीं उठाई
आंसुओं का जलाशय बनाने की
हिफ़ाज़त की जरूरत हो जिनकी
ऐसे साज-ओ-सामान जुटाने की
[ईमि/२५.०२.२०१३]
113
कायरतापूर्ण पलायन है खुदकुशी
नकली जहर पीते हैं  नाकाम आशिक
सहानुभूति की की उम्मीद में
कहते हैं जहर था अमृत माफिक
न जी पाते हैं न मरते ऐसे डरपोक
होते नहीं ये अभागे ज़िंदगी के सुख से वाकिफ
[ईमि/२८.०२.२०१३]
114
बीते लम्हों की आती हैं जब मधुर यादें
गम-ए-जुदाई की भूल जाती हैं सब बातें
[ईमि/०८.०३.२०१३]
115
है हर लम्हे का बीत जाना कुदरती फितरत
देता है जीने वाला उन लम्हों को सोहरत
कसक छोड़ जाते हैं वे बीते लम्हे
बला की खूबसूरती होती है जिनमें
मिलता है जब कभी फिर ऐसा साथ
बहुत याद आती है उन लम्हों की बात
[ईमि/०८.०३.२०१३]
116
छोड़ चुका था मयनोशी/
ज़िंदगी से कोई शिकायत न थी/
बरसा के चंद कतरे मय के/
तुमने दिल की प्यास बढ़ा दी,
[ईमि/१७.०३.२०१३]
117
हर प्यार होता है इतना अनोखा/
लगता है अनदेखा पहले सा/
जब भी हो जाता है/ देता है अनुभूति/
सघनतम पारस्परिकता की/
लगता है कुछ भी नहीं रहा है ऐसा/
पहले प्यार के सिवा.
[ईमि/१३.०३.२०१३]
118
क्यों खुश है इतनी यह लड़की
लिये आँखों में जज्बात अंतरिक्ष के उड़ान की
कामयाबी की उम्मीद है राज इस मुस्कान की
चाहती है लांघना सीमाएं आसमान की
लगते हैं इरादे इसके असदंदिग्ध पक्के
रोक नहीं सकते अब रास्ता चोर ओर उचक्के
[ईमि/२२.०३.२०१३]
119
टूट जाते हैं सभी हाथ हमारे गिरेबान तक आते आते
माफ कर कमजर्फ हाथों को हैं हम खुदा से बड़े हो जाते .
[ईमि/२९.०३
120
किसी ने कहा
माना कि बुरा है ज़र का निजाम
मगर और रास्ता क्या है?
एक ही रास्ता है निजाम-ए-आवाम
होती नहीं कभी ज़िंदा कौमें विकल्पहीन
विकल्पहीनता मुर्दा कौमों की निशानी है
डालना है विप्लवी जान इन ज़िंदा लाशों में
हाथ लहराते हुए हर लाश तब आगे बढ़ेगी
तरासेंगी की नया विकल्प आगामी पीढिया
इतिहास की गाड़ी में बैक गियर नहीं होता
खत्म तो होगा ही ज़र का निजाम भी
इतिहास में कुछ भी अजर-अमर नहीं होता
[ईमि/३०.०३.२०१३]
121
क्या राज है इस अर्थ्पोर्ण मुस्कान का
दर्शाती इरादे किसी ऊंची उड़ान का
दिखता नहीं भय किसी आंधी तूफ़ान का
संकल्पशील भाव है चेहरे पर स्वाभिमान का
नापेगी जब यह अंतरिक्ष की दूरी
आसमान की सीमा लगेगी अधूरी
इरादे हैं इसके अब बुलंद और प्रखर
पूर्वाग्रह और पाखण्ड नहीं कर पायेंगे कुंद इसकी धार
चल पडा है जो कारवाँ रुकेगा नहीं अब अभियान
बिघ्न-बाधाओं के मिट जायेंगे नाम-ओ-निशान
122
कोई दोस्त इतना अजीज
जब करते हैं बेचैन कुछ शब्द
हो जाता हूँ बिलकुल निःशब्द
करने को तारीफ़ उत्साह भरी आँखों की
दिखती जो अलग भीड़ में लाखों की
रोक नहीं सकता जिन्हें कोई महाकाल
पड़ जाता  है शब्दों का भीषण अकाल
करने को वर्णन यह बुलंद इरादों की मुस्कान
अन्वेषण में शब्दों के लग जाती थकान
चेहरे पर झलकते जज्बात और ताजगी के भाव
दर्शाते हैं पक्के इरादे और प्यार भरा स्वभाव
दोस्ती का होता मन पार कर उम्र की दहलीज
मिल जाए गर कोई दोस्त इतना अजीज
[ईमि/03.04.2013]
123
बोझ बन जाये जब कोई रिश्ता
किसी को भी सकूँ नहीं मिलता
तर्कहीन है ढोना अनायास बोझ
दिखलाता है बेहद बचकानी सोच
ढोते रहना उसे लिहाज में
पुराने दिनों की याद में
जज्बातों के ऊंचे परवाज में
असंभव उम्मीदों के आगाज में
होगा गिरना गहरे अवसाद में
बोझ की थकान पैदा ही करेगी कटुता
कैसी भी क्यों न हो वाक्पटुता
[ईमि/०४.०४.२०१३]
124
पहले जैसा कभी कुछ नहीं होता
पहले जैसा कभी कुछ नहीं होता
पार करते हो जब दुबारा जब नदी एक
वह वही नहीं होती होती है दूसरी नदी
कुछ भी साश्वत नहीं है दुनिया में परिवर्तन के सिवा
[ईमि/१०.०४.२०१३]
125
सुख होगा जितना सघन संयोग का
उतनी ही सघन वियोग की पीड़ा
[ईमि/११.०४.२०११]
126
ऐसा नहीं कि भर गए जख्म-ए-दिल एकदम से
127
नई की बेचैन चाह छोड़े बिना मोह  पुरानी का
करता हूँ मिशाल पेश अव्यवहारिक अज्ञानी का
अनजान बनता हूँ जानते हुए इतिहास की रीत
होती रही है हमेशा नए की पुरानी पर जीत
[ईमि/१५.०४.२०१३०]
128
खूबसूरती ही सद्गुण है औरत का
पुरुषार्थ के आयाम अनेक
अरस्तूमनु और सारे ज्ञानी-मानी
दे गए हैं विचार ऐसे नेक
ढोती आयी है औरत बोझ अब तक
सुन्दरता के आभूषण के
खुश होती आई है वह अब तक
हुस्न के पिंजरे में अपने शासन से
अब वक़्त आ गया है
सर से बोझ उतार फेंकने का
आज़ादी की खातिर
सभी पिंजरों की सलाखों को तोड़ देने का
[ईमि/१५.०४.२०१३]
129
इश्क-ए-महबूब है बौद्धिक टानिक अजीब
बढते हैं दोनों आगे आते जैसे जैसे करीब
यदि है इसमें होता कोइ लोचा
वह इश्क नहींहै समझौता
व्याहारिक बन जाते हैं समझ्दार लोग
स्वार्थ में सरोकारों का गला देते घोंट
[ईमि/21.04.2013]
130
इकबाल
ईश मिश्र
इश्क-ए-महबूब ने कर दिया कुंद इश्क-ए-जहां की धार
गम-ए-जुदाई ने कर दिया गम-ए-जहां को तार तार
खो गए गम-ए-दिल में और कटते गए गम-ए-जहां से
फिर भी मिलती रहीं दुआएं इज्जत और प्यार से
झुक कर दुहरा हो गया हूँ दुआ-ओ-प्यार के बोझ से
बौना सा दिखने लगा दबकर अपने अपराधबोध से
खुश थे बहुत मिलने से पहले इस बेवफा यार से
पुलकित होते थे पूरी दुनिया से अपने प्यार से
लिखते थे एक नई दुनिया के ख़्वाबों के तराने
लिखने लगा एक लड़की से मुहब्बत-ओ-जुदाई के अफ़साने
मरने लगे सपने एक सुन्दर समाज के
कुंद होने लगे थे नारे इन्किलाब जिंदाबाद के
पड़ा जब पीठ पर बेवफा  रुसवाई की लात
याद आयी फिर मकसद-ए-ज़िंदगी की बात
गर दिमाग पर भारी पडेगा दिल का सन्देश
लिजलिजा हो जाएगा कविता का परिवेश
बनेगी गज़ल अब हिरावल दस्ते की हरकारा
मेहनतकश के साथ लगायेगी इन्किलाबी नारा
भूल जायेगा भविष्य नगमे एक लड़की से प्यार के
याद रखेगा गज़लें गम-ए-जहां के इजहार के
[Wednesday, April 17, 2013/11:28 PM]
131
क्यों इतरा रहे हो अपने  नरभक्षी ड्रोन पर बराक ओबामा
कायराना क़त्ल को कहते हो आतंक-विरोधी इमामा
कर रहे हो जिन जरदारों  की चाकरी में कत्ले आम
तुम्हारे पूर्वजों को जंजीरों में जकडे घुमाते थे सरे आम
कहाँ गए हिटलरहलाकू नादिरशाह और  चंगेज
जागेगा जब आवाम कर देगा तुम्हे हैरत अंगेज
बने हो हिटलर के शागिर्द तो जो आज
भूल जाते हो उनकी कुत्तों सी मौत बेताज
बाज आओ अपनी नरभक्षी आदतों के परसंताप से
भष्म हो जाओगे जनसैलाब के ज्वालामुखी के ताप से
दूर नहीं वो वक़्त जब कब्र से उठेंगी लाशें मासूमों की
इन्किलाब की ज्वाला बनेगी आह इन मजलूमों की
उमड़ेगा  जब झूमकर युवा उमंगो का समंदर
डूब जायेंगे तोप-टैंक और सारे ड्रोन उसके अंदर
..... जारी[ईमि/२२.०४ २०१३]
132
ये जो खानदानी जनतांत्रिक नवाब हैं हमारे
सिराज्जुद्दौला के भेष में मेरे जाफर हैं सारे
ओबामा के जार-खरीद गुलाम हैं बेचारे
विश्व बैंक के टुकड़ों पर फिरते हैं मारे मारे
ओबामा खुद भी तो गुलाम है जरदारों का
क्या करें इन गुलामों के गुलाम बेचारों का
सो रहा है मिथ्या चेतना में जब तक आवाम
कर देंगे ये गुलाम मुल्क का काम तमाम
मुझको तो है जनता की शक्ति में यकीन
बना देगी एक दिन जर के गुलामों को खाकनशीन

[ईमि/२२.०४.२०१३]
133
शाम के धुंधलके में सिर्फ साये नज़र आते हैं
फिर भी चाहने वाले अलग दिख जाते हैं.
[ईमि/२२.०४.२०१३]
134
दाढ़ी सफ़ेद  धुप में नहीं हुई बल्कि तजुर्बे में
मुखौटे और मुख में फर्क करना आता है हमें
[ईमि/२२.०४.२०१३]
135
यह जन्नत दोजख से बिलकुल कम नहीं

हो आबरू सीने में तो कोइ गम नहीं

क़त्ल करते ऐसा खंजर पर आता ख़म नहीं

कातिल-ए-दिल कोई और है हम नहीं

मत दिखा जन्नत के सब्जबाग ऐ वाइज कहीं

ये तुम्हारे खुदा की दुनिया दोजख से कुछ कम नहीं
136
मिलकर छिटक लेना उनकी फितरत है
एक जुम्बिश से जख्म देना उनकी आदत है
यदि वे न मिलता और मिलकर न छिटकते
ग़मों के एहसास से आप वंचित ही रहते.
[ईमि/२५.०४.२०१३]
137
चढ़ता है जुनून संकीर्ण फिरकापरस्ती का
चाहता है वह अंत सामासिक संस्कृति का
नफरत फैलाता है मासूम लोगों के दिलों में
देख धर्मनिरपेक्षता के तर्क घुस जाता है बिलों में
धर्मनिरपेक्षता एक तर्कसंगत विज्ञान है
इंशानियत की एकता का महत सम्मान है
जो मिलजुल कर रहने का सुंदर आख्यान है
पोंगपंथी तिनको के लिए समुद्री तूफान है
इंशानी तारीख की यही तो जान है
तरक्की की राह इसकी अपनी शान है
यह दुनिया को समझने और बदलने का ज्ञान
इसे जुनून कहना कमीनगी भरा अज्ञान
[२०११]
138
उतरना पड़ेगा मर्दवाद के खिलाफ  सडको पर
नहीं पड़ेगा एक उड़ती कविता का असर
मर्दवाद के शिकार  इन लड़कों पर
रोकना है अगर सचमुच में बलात्कार
करना होगा मर्दवादी सोच पर प्रहार लगातार
[ईमि/२५.०४.२०१३]
139
तोड़ता है उंच नीच की दीवारें मार्क्सवाद
खोदता है  कब्र मर्दवादी शरमायेदारी की लेनिनवाद
जरदारी के वर्चस्व मानव मुक्ति है साम्यवाद
नारी प्रज्ञा और दावेदारी हुआ है जो मुक्तनाद
भयभीत  हो हुजूम में घुसपैठ कर रहा मनुवाद
लगाने लगा बेसुरे नारे  नारी-मुक्ति जिंदाबाद
ये फरेबी है जो पढने-लिखने-सोचने से आज़ाद
चाहते भटकाना मर्दवादी घुसपैठिये रास्ते से नारीवाद
पहचान गया गया है आवाम इनकी फरेबी खुराफात
करना ही होगा लगातार बमबारी मर्दवादी मनुवाद के गढ़ पर
करना पडेगा तगडा प्रहार भारतीय संस्कृति के पाखण्ड पर
खींचती हैं जो नारियों के लिए लक्षमण रेखाएं
आयोजित करती है जो जहालत की अग्नि परीक्षाएं
अब उम्दा है जो समंदर नारीवादी अभियान का
अंत कर देगा नापाक हिन्दुत्ववादी अभिमान का
रोकना है सचमुच अगर बलात्कार
कर दो अग्नि-परीक्षाओं और लक्षण-रेखाओं का  संहार
[२६.०४.२०१३]
140
मैं ऐसे पाखंडियो  की करता नही बात
पाते हैं जो उसूलों की ज़िंदगी से सरल निजात
जो लेकर लाल झंडा करते वाम वाम
और तात है उनका वर्णाश्रमी  राम
होते हैं ऐसे लोग बहुत ही खतरनाक
साथ है ऐसे लोगों का निहायत खतरनाक
विष्णु और लक्ष्मी हैं अवधारणाएँ काल्पनिक
उनके संतानों की बातें करता तर्कविहीन दार्शनिक
[ईमि/२६. ०४.२०१३]
141
ये उन्मुक्त उड़ती तितलियाँ
क्यों बन जाती हैं कठपुतलियाँ?
शायद यह आसान काम है
दिमाग को मिलता इससे आराम है
और आज जब हो चुकी है इलेक्ट्रानिक क्रान्ति
अदृश्य है रिमोट कंट्रोल,देती है सजीव चरित्र भ्रान्ति
सुदूर ध्वनि की प्रतिध्वनि लगती समचुत की आवाज़
कब तक चलेगा दुनिया में कठपुतली का राज?
[ईमि/३०.०४ २०१३]]
142
अंतिम विदा गीत
यह अब अंतिम विदागीत है
पिछले विदागीत का भी यही शीर्षक था
और उससे पिछले का भी
चलता रहता है अनवरत यह सिलसिला
मिलन-गान और विदा गीत का.
[ईमि/३०.०४.२०१३]
143
हम हैं भारतवासी बहुत महान
आदर्श है हमारा दशरथ पुत्र राम
बाहुबल से जो सीता को जीतता है
प्रेम प्रस्ताव जब सूर्पनखा का पता है
नाक-कान उसके काट लेता है
जब  बानरी सेना बनाना चाहता है
कपिराज बाली को बाधक पाता  है
करता है उस पर छिप कर कायराना हमला
हो जाता है पीछेउसके भालू बानर का अमला
जब पाला उसका लंका राज रावण से पड़ता है
बांटो और राज करो की नीति अपनाता है
लोभ दे राज-पाट का विभीषण को तोड़ लेता है
जीतने को लंका अपनाता साम-दाम-भेद-दंड की नीति
चली आयी थी यही रघुकुल की गौरवशाली रीति
फहराता है जबविजय लंका पर विजय पताका
सीता को लेकर चिंतित है हो जाता
करता है आयोजित अग्नि परीक्षा
कहा थी यही रघुकुल नीति की इच्छा
जब राजा अयोध्या का बन जाता है
सीता से निजात का रास्ता खोजता है
मिल ही जाता है उसे एक बहाना
था उसे जब महल से सीता को निकालना
समझता था वह गर्भवती सीता का मर्म
निभाना था उसे लेकिन वर्नाश्रमी राजधर्म
तभी हिल जाता है ब्रह्मांड एक शूद्र संबूक की तपस्या से
ह्त्या कर निहत्थे तपस्वी की निजात पाता इस समस्या से
हम हैं भारतवासी बहुत महान
आदर्श है हमारा दशरथ पुत्र राम
[ईमि/२८.०४.३०१३]
144
हर छोटी फिसलन इंसान की उसूलों से
करती है क़त्ल टुकड़ों में उसके ज़मीर का
और देती है उसे मुक्ति अंतरात्मा के बंधन से
करती है प्रशस्त पथ अंतिम पतन की.
हर फिसलन के साथ
टुकड़ों में गिरता है वह अपनी नज़रों में
घूमता रहता है दयनीय जीव की तरह
कामयाबी की खुशफहमी के वहम-ओ-गुमान में
[ईमि/३०. ०४.२०१३]
145
लाश का स्नान
रोज दिखता था वह जो शख्स
चीथड़ों में फुटपाथ पर
सुना है अभी अभी प्यास से मरा है
कितना दयालु है यह समाज
लाश को नहलाने देखो कैसा उमड़ पडा है
अगर जिंदा जी पानी मिल जाता उस शख्स को
दया का पात्र न बनती उसकी लाश
वंचित रह जाता हमारा समाज
करुण-क्रंदन और दयालुता के भाव से
[ईमि/०५.०५.२०१३]
146
गर तलाशा न होता नए रास्ते
चलते रहते गर घिसे-पिटे पथों पर
न मिलतीं ये रोशन मंजिलें
न होते गर हमले यथास्थिति के मठों पर
घूमते रहते तिमिर के वृत्त में
बैठ परम्परा के जर्जर रथों पर
अन्वेषण न होता असीम शक्ति का अपनी
ऊबड़-खाबड़ रास्तों का होता न यदि तजुर्बा
जीत हार तो माया है जंग-ए- आज़ादी की
जंग-ए-ज़िंदगी का सुख है अद्भुत और अजूबा
मिलता नहीं हक जद्दोजहद के बिना
बिना लड़े मिलता है सिर्फ समझौता
लड़ना पड़ता है हक के एक एक कतरे के लिए
लडे बिना जिल्लत के सिवा कुछ नहीं मिलता
[ईमि/०९.०५.२०१३]
147
इश्क का कोइ बाज़ार नहीं होता
दिल का होता नहीं कोई कारोबार
दिवालिया होता है
वह दिल-ओ-दिमाग से
बाज़ार में ढूँढता है जो इश्क
और करता है कारोबार-ए-दिल
इश्क है पारस्परिक मिलन
दो दिलों का
समानता और पारदर्शिता है
जिसका मूल-मन्त्र
[ईमि/०६.०५.२०१३]
148
जिसको जुस्तजू थी मेरी पाया उसने
पाकर लेकिन खो दिया फिर से मुझे
[ईमि/११.०५.२०१३]
149
बिना चिरागों के हो रोशनी जहां
रहते होंगे रोशन लोग वहां
[ईमि/११.०५.२०१३]
150
वैसे तो हकीकत का था मुकम्मल एहसास
नहीं था किसी रूमानी खुशफहमी में
लेकिन उस दिन सेजो वाकई एक दिन था
किया था हमने जब इज़हार-इश्क
एक तिरता हुआ एहसास
आता था बहुत करीब
तन्हाइयों में अक्सर
छू जाता था
अन्तर्मन के किसी नाज़ुक कोने को
और वह रातजो वाकई एक रात थी
उड़ा ले गया था तुम्हे जब
फ्रायड की हवा का एक हल्का झोंका
आशिकी के चंद दिन बीते उल्लास में
और कुछ गम-ए-जुदाई के विलास में
उतर चुका है खुमार अब
नशे का उल्लास-ओ-विलास के
याद करनी हैं फिर से
नियामतें गम-ए-जहां की
तो इसे विदागीत समझो
वायदा है न दिखने का
फिर से उस राह
साथ न लाये जब तक
जंग-ए-आज़ादी की साझी चाह

[ईमि/१६.०५.२०१३]

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