युद्धोंमाद के अधर्म को छिपाने के लिए एक जुवारी को धर्मराज घोषित कर दिया जाता है, आवारा पूंजी की लम्टता को छिपाने के लिए पूंजीवाद की राजनैतिक विचारधारा का नाम उदारवाद रख दिया जाता है. नैतिकता पसंद रसहीन नहीं होता बल्कि अलग रस का होता है, अनैतिकता से परिपूर्ण समाज में असामान्य/अपवाद होने के नाते उसे नीरस मान लिया जाता है. शराबी के सच बोलने की बात उसी तरह कल्पना है जैसे बच्चों के सच बोलने की बात. ईमानदारी कभी बांझ नहीं होती उसपर स्वार्थ का ग्रहण लग जाता है. क्रांतियां नकारात्मक नहीं होतीं बल्कि क्रांति-पूर्व के निहित स्वार्थ उसे विकृत करने में सफल हो जाते हैं. अल्पायु परिवर्न दूरगामी परिवर्तन की कड़ी होता है. संघर्ष करने वालों को संघर्ष की प्रगति में ही शांति मिलती है.धनवान दयनीय किस्म के अभागे हैं जो धन को जीवन के माध्यम की बजाय उद्देय मान लेते हैं. गरीब अकड़ू नहीं होता, गरीबी के बावजूद उसका स्वाभिमान प्रदर्शन अकड़ लगती है. सन्यासी फरेबी होते हैं इसीलिए क्रोधित हो जाते हैं. नंबर 2 के धंधे ईमानदारी से इसलिए चलते हैं कि आपसी भेद खुलने का भय रहता है. वैचारिक दिवालिए व्यवस्था का विरोध व्यक्ति विरोध में तब्दील कर देते हैं, उसी तरह जैसे नीतिगत मुद्दों की बजाय कारपोरेटी दलाल पार्टियां व्यक्ति के नाम पर चुनाव प्रचार करती हैं. सीधा आदमी इस लिए हाशिए पर रहता है क्योकि सज्जनता के बहुमत का आपराधिक मौन दुर्जनता के अल्पमत की मुखरता को बल प्रदान करता है. बुरे लोग अल्पमत में होते हैं और हितों की समानता उनके संगठित होने में मददगार होती है. देवता-असुर की बातें गल्प कथाएं हैं. ज्ञानी रावण धृष्ट राम से बहन का बदला लेने के लिए उसकी बीबी का अपहरण जरूर करता है लेकिन न तो उसका अंग-भंग करता है न बलात्कार. देवता-असुर एक ही थथैले के चट्टे बट्टे हैं. सर्वत्र दुख उसलिए व्याप्त है कि लोग अज्ञान में समझ नहीं पाते कि सबके सामूहिक सुख में ही निजी सुख के मंत्र छिपे हैं. पर आदमी निजी सुख का प्रयास करता है लेकगल असला सुख सुखी समाज में ही मिल सकता है.
(ये नीचे दिए प्रश्नों के संभावित उत्तर हैं)
क्या बात वाह!
ReplyDeleteअरे! मैं कैसे नहीं हूँ ख़ास?
अब तो तुझे आवाज़ लगाते भी जी डरे
जी सही !
ReplyDeleteनारको टेस्ट में दारू पिलाते तो भी सच बाहर आ जाता ना :)
uske bare mein nahin janta
ReplyDeleteबहुत भोले हैं आप अच्छा है नहीं जानते अभी तक :)
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