Saturday, December 28, 2013

क्षणिकाएं 2 (51-100)

51
यह कैसा मातम है कौन मरा
क्यों कोहराम मचा है मातम पर?
52
पास आने का मकसद है संगम दिलों का
करना तिरस्कार बेबातवायवी फासलों का
53
गर तुगलकी चाल चलते हों रहनुमा
जाहिर है हो जाएगा मुल्क खासा बदनुमा
54
तुम्हारी जुदाई के गम में कितना शकून था
तन्हाई की मस्ती न कोई नियम-क़ानून था
आज़ाद था मन निर्बंध विचरण का जूनून था
बाकी वक़्त दिल में तुम्हारी यादों का मजमून था
[02.12.2012]
55
इन आँखों में छिपी है जो प्रज्वलित आग
अलाप रही है वर्जनाओं से विद्रोह के राग

कितनी दुर्लभ है यह आग आज के ज़माने में
इसीलिये तो खास हो इन्किलाबी आशियाने में

बचा कर रखो इसे अपने सीने में
काम आयेगी यह खुद्दारी से जीने में

ये छिपे हुए तीरहैं तुम्हारे इरादों के हरकारे
नेश्त-नाबूद कर देंगे हुश्न के पिंजरे सारे

साधुवाद दुनिया के दुश्मनों से नफ़रत के लिये
और जमीर-ए-ज़िन्दगीमेहनत से मुहब्बत के लिये

उड़ो इतना ऊंचा कि आसमां भी सीमा न हो
धरती कभी भी लेकिन नज़रों से ओझल न हो
[02.12.2012]
56
तेरी आँखों से टपका जो पानी का कतरा
पैदा हो गया अश्कों के समंदर का ख़तरा
यही है तो है तुम्हे चाहने वालों की अदा
तैरना गहराइयों में उनकी खासी अदा
तूफ़ान में निकलते हैं जब वे परवाज पर
मिजाज़-ए-तूफ़ान बदल जाता इस अंदाज़ पर
[०३.११.२०१२]
57
पढ़ता हूँ जब कोई भी अफ़साना-ए-मुहब्बत की किताब
गम-ए-जहाँ के हिसाब में तुम याद आती हो बेहिसाब
पहले लोग लड़की को समझते थे किताब-ए-सबाब
लिख रही हैं लड़कियां अब जंग-ए-आज़ादी की  किताब
[०४.११.२०१२]
58
चाहत में रंग भारती है पारस्परिकता
मुहब्बत में इबादत है इक बड़ी खता
[0.5.11.2012]
59
कहके भी न कहना
निगाहें चुराना नज़रों से बात करने  की इक अदा है
नज़रों से कहके भी न कहना मेरे यार की सदा है
(ईश/६.१२.२०१२)
60
एक बार मुझे भी हुआ था यह एहसास
मिला था जब प्यार में पागलपन का आभास
61
मुहब्बत बनाती है लोगों को इंसान बेहतरीन
रखती है सदा हाल-ए-मिज़ाज ताजा-तरीन
[08.12.2012]
62
मंजिल तलक तो हम पहुंचेगे ही कभी-न-कभी
लिये हाथों में हाथ साथ गर चलेंगे हम सभी
[08.12.2012]
63
जो महफूज है दिल-ओ-जान में
वो कैसे भूल सकती है सपने में भी
लिख लिया है जो नाम सुर्ख लहू से
याददाश्त से कैसे गायब हो सकती है?
बदलती रहे तारीख रंग-ओ-ढंग-ओ-तर्ज़
भुला नहीं सकता कलम याद का फ़र्ज़
[11.12.2012]
64
करते ही रहना है अदा ये फ़र्ज़
समाज का है ये हम पर ये क़र्ज़
शोषितों के लिये लड़ते हैं इन्किलाबी
दुनिया बदलने के और रास्ते हैं नाकाफी
[12.12.'12]
65
जो दरिया झूम के उट्ठा है/खुद राह बनाता जाएगा
जो भी रोड़े अटकाएगा/सागर में बह जाएगा
[12.12.'12]
66
हैं कितने खुशनसीब वे हैं आप जिनके करीब
चाहता हूँ आपको दिल-ओ-जान से
नहीं मानता फिर भी उन्हें रकीब
[6.15AM/16.12.2012]
67
शब्द
शब्द बेचैन करते हैं
कुछ शब्द तो बहुत बेचैन करते हैं
बेचैनी गवाह है ज़मीर की मौजूदगी की
कराती है एहसास अंतरात्मा की अतल गहराइयों की
बेचैनी अंतरात्मा का गुण है दोष नहीं
वैसे ही जैसे शर्म है एक क्रांतिकारी एहसास
[26.06.05]
68
सीधी सपाट है जिनकी ज़िंदगी
जीवन व्यर्थ हो जाता है उनका
करते हुए खुदा की बंदगी
टेढ़े-मेढे रास्तों पर चलती जो
वही है दर-असल सार्थक ज़िंदगी
[17.12.12]
69
कुछ खास अदा है इन आँखों की
मंद मुस्कान अभिव्यक्ति है
उमडते समंदर सी खुशी के सौगातों की.
[17.12.12]
70
कुछ कहती है यह सुन्दर सरल मुस्कान
करती हैं नज़रें किसी खास संकल्प का ऐलान
[17.12.12]
71
नहीं है यह बात सुक्रिया की या  जर्रानवाजी
यह तो है  हकीकत की सपाट बयानबाजी
72
[17.12.12]
लिखने को कविता इस तस्वीर पर
शब्द ढूढने होंगे नए तजवीज कर
73
मदहोश सल्तनतें गिरती हैं अपने ही भार से
त्वरण की जरूरत हैं जागरूकता के उभार से
[28.12.12]
74
लगा दो आग इस कमज़र्फ जमाने को अभी
रचो  नया ज़माना गज़लगो हों जिसमे सभी
शब्दों में है रवानगी और ताकत इतनी अथाह
थरथराते हैं इनसे सारे के सारे कमीने तानाशाह
बने गर गज़ल जंग-ए-आज़ादी का लाल फरारा
जीत लेंगे हम मेहनतकश संसार सारा का सार
ईमि[27.12.12]
75
तरजीह नहीं मिलती दान में या दुकान पर
कमाई जाती है कर्मों से इज्ज़त की तरह
हुनर है जो गढ़कर शब्द गज़ल रचने की
घी से इसकी धधका दो आग युवा आक्रोष की
बन जाए यह आग ऐसा भीषण दावानल
बुझा न सकें जिसको तोप-टैंकों के दमकल
बना दो गज़ल को एक ऐसा विप्लवी नारा
दहल जाए जालिमों का संसार सारा का सारा
गजल हो हमारी हरकारा इन्किलाब की
महरूमों-ओ-मजलूमों के सिसकते ख़्वाब की
मेरी गज़ल तो गज़ल नहीं एक नारा है
इन्किलाबी जज्बातों की एक अदना हरकारा है.
[ईमि/२७.१२.१२]
76
नहीं है दूर वो दिन इन्किलाब भी होगा
"नहीं है दूर वो दिन इन्किलाब भी होगा"
तब अब्र भी होगा माहताब भी
होगी गज़ल गतिशील और आज़ाद
कहेगी बात इंसानी उसूलों की
77
बहुत सुन्दरलिखते रहो बधाई हो
खत्म लेकिन रकाबत की लड़ाई हो (हा हा )
78
हाथ मिला ले अपने इस रकीब से
रिश्तों की आज़ादी देखो करीब से
लेकर हाथों में हाथ हम चलेंगे साथ साथ
आएगा इन्किलाबहोगा दुनिया में इन्साफ
इमि[27.12.12]
79
सहो मत प्रतिकार करो
मर्दवाद के दुर्ग पर बार बार वार करो
फांसी से बलात्कारी के न खत्म होगा यह सिलिला
खत्म करेगा जड़ से इसे नारीवाद का काफिला
[27.12.12]
80
दोजख कैसा होगा वाइज़ ही जाने
शर्म आती है मनुष्य की दरिंदगी की ख़बरों से
हटती ही नहीं ये ख़बरें मगर कभी नज़रों से
लगता है हम शर्मिस्तान में रहते हैं
हर रोज कई शर्मनाक ख़बरें सहते हैं.
दोजख कैसा होगा वाइज़ ही जाने
खुदा की इस दुनिया से बुरा क्या होगा?
[ईमि/२५.१२.'१२ ]
81
जो किसी खुदा को नहीं मानते
एक नास्तिक थे भगत सिंहजिनका यह कहना है
इन्किलाबी को ज़ुल्म-ओ-सितम से लड़ते ही रहना है
तहे-ज़िंदगी लड़े वे नाइंसाफी के खिलाफ
पा गए जवानी में ही शहीद-ए-आज़म का खिताब

हम भी जो किसी खुदा को नहीं मानते
कोई पीर-ओ-पैगम्बर नहीं जानते
न करते है बुत-फरोशीन यकीं अवतार में
असंदिग्ध निष्ठा है जिनकी इंसानी सरोकार में

उठाते ही हैं हाथ वे हर ज़ुल्म के खिलाफ
बुलंद इरादों और ऊंची आवाज़ के साथ
क्योंकि वे नहीं मानते किसी खुदा का इन्साफ
धरती पर ही माँगते हैं धरती के ज़ुल्म का हिसाब
[ईमि/२१.१२.१२]
82
खत्म होगा ज़ुल्मतों का यह दौर भी
हर दौर कभी-न-कभी कभी खत्म होता है
खत्म होगा ज़ुल्मतों का यह दौर भी
देखना है आ जाए न नया दौर  नयी ज़ुल्मतों का
आता रहा है नया ज़ालिम पुराने की जगह
यही तजुर्बा है अभी तक तारीख का
लाखों वर्ष जब तक आदिम इंसान था
न था जर न ज़ुल्म-ओ-सितम का निशान था
लाना है यदि दुनिया में एक उजाला बिहान
खत्म करना होगा जड़ से जर का निजाम
[ईमि/३१.१२.१२]
83
ज़िंदगी जो किसी के काम आये वह इबादत नहीं इंसानियत है
टुकड़ों में बांटना इंसानियत को इबादत की खास फितरत है.
[ईमि/०२.०१.१३ .२०१३]
84
जमीन को ही प्यार से संवारो
चाँद की उपमा को गोली मारो
[ईमि/३.१.१३]
85
माना कि घी टेढी उंगली से ही निकलती है
मगर सच्चाई तो सीधी बात में ही होती है
[ईमि/३.१.१३]
86
क्या बात है?
यह गरिमामय ललाटआँखों की इन्द्रधनुषी तरंग
अर्थ पूर्ण मुस्कान में कुछ कर गुजरने की उमंग
लिखने को करता मन इस तस्वीर पर कविता
काश भाषा समृद्ध होती या मैं भाषाविद होता
[ईमि/३.१.१३]
87
क्या सवाल हैं इस बेटी के हाथों में ?
क्यों दहक रहा है इसकी आँखों में शोला?
क्या संकल्प है स्वाभिमान से लबरेज इन भंगिमाओं में?
क्या कह रहे हैं इसके गगनचुम्बी जज्बात?
[ईमि/०७.०१.१३]
88
चीखों की बमबारी
काफी  नहीं है एक चीख कुम्भकरणों के लिए
निजाम के शातिर चारणों के लिए
तोड़ने के लिए उदासीनता के साज को
सुनाने के लिए इस बहरे समाज को
जरूरत है चीखों की लगातार बमबारी
दुर्गद्वार पर दस्तक का होता नहीं असर
करनी पडेगा बमबारी अब इस दुर्गद्वार पर
चारों दिशाओं से  बार बार लगातार
[ईमि/ ०७..०१.२०१३]
89
कुछ-न्-कुछ होता ही रहेगा जुनून-ए-ज़िंदगी में
अगर्चे असंभव पे होगा निशाना बुलंद इरादों का
बढ़ते रहे गर मंजिल की तरफ आज़ादी की मस्ती में
मंजिल ही चलकर आ जायेगी तुम्हारी अपनी बस्ती में
[ईमि/ २१..०१.२०१३]
90
दहक रही है भीषण ज्वाला
तकलीफ के उमडते समंदर सी इन आँखों में
क्रोध का सुलगता ज्वालामुखी
पहाड़ से भी ऊंचे मंडराते बुलंद इरादों के जज्बातों में
निकली है नहीं देने दस्तक बल्कि तोडने मर्दवाद का दुर्गद्वार
भस्म करने सारे-के-सारे मर्दवादी आचार-विचार
[ईमि/ २३.०१.२०१३]
91
जो हाद्सिल किया उसे संवारो
बेचैनी से सोचो और बिचारो
मत हो संतुष्ट मिल गया जो
बढ़ो तलाश में मंजिल की अगली
इरादे हों बुलंद और सरफरोशी का जज्बा
रास्ता करेगा खुद-ब-खुद तुम्हारा सज़दा
फिर अगली और अगली  मंजिलें
सफर जारी रहे जब तक धडकनें चलें
[ईमि/ २३.०१.२०१३]
92
मुझे ढूढना ही नहीं पडा भीड़ में अपने "तुमको"
कार्वानेजुनून  में हम थे साथ लिये हाथों में हाथ
लुत्फ़ आता रहा है गम-ए-जहाँ में जीने में इतना
मरने की कभी सपने में भी तमन्ना ही न हुई
[ईमि/२७.१.२०१३]
93
बर्बाद होने का मौक़ा ही नहीं मिला
मजबूरन आबाद ही रह गए
किसी ने चुराया ही नहीं नीद
सोते हैं हाथी-घोड़े सब बेचकर
[ईमि/२७.०१.२०१३]
94
जो होते हैं बर्बाद उन्हें प्यार करना नहीं आता
आग  जो सीने में है उसे दहकाना नहीं आता
प्यार की आग हमसफ़र है इन्किलाब की
प्यार की इक नई दुनिया बसाने के ख्वाब की
[ईमि/२७.०१.२०१३]
95
समझा ही ही नहीं दर्द-ए-गम को दर्द हमने
मशगूल रहे इतने जंग-ए-आज़ादी के  जूनून में
अंधेरों ने की घेरने की कोशिस कई  बार
सीने में धधकती आग से किया उसका प्रतिकार
ज़ुल्मतों का दौर चलता है तब तक
ज़ालिम से लोग डरते हैं जब तक
बंद कर दे ज़ालिम से डरना जो आवाम
ज़ालिम का जीना हो जाए हराम
चलता हूँ हटकर लीक से रास्ते पर नए
तकलीफों का आनंद लेते हुए
मिलती है  ताकत इतनी इससे
डरता नहीं कभी भूत से न भगवान से
[ईमि/27.02.2013]
96
मिला दिया गम-ए-दिल गम-ए-जहाँ से
याद रखा छोटे से साथ को हमसफ़र के
यादें छोटी हमसफारी की इतनी सुहानी
गम-ए-तन्हाई लगती बिलकुल बेमानी
हा हा [ईमि/२७.०१.२०१३]
97
क्यों मरने की जल्दी में हैंमौत महज निर्वात है
जिंदादिली से ज़िंदगी का अलग अनूठा अंदाज़ है
है अगर निष्ठा और सरोकारों में नीयत साफ़
मिलेगा स्वजनों का जिगरी लंबा साथ
[ईमि/२७.०१.२०१३]
98
जाया हो चुकी ज़िदगी क्या लुफ्त उठाएगी
खो चुकी जो खुद को लुफ्त क्या खाक लायेगी
जीने और जीने के बीच है पल भर का फर्क
जिंदा कौमों की ज़िंदगी मांगे हर पल का तर्क
इसीलिये जीना है क्षण-से-क्षण-तक हरेक क्षण
गुनाह है जाया करना जीवन का एक भी कण
मांगेगी तारीख जब एक-एक पल का हिसाब
खोलोगे जाया वक़्त के लिये कौन सी किताब?
[ईमि/२८.०१.२०१३]
99
इस पार प्रिये तुम हो मधु है
इस पार प्रिये तुम हो मधु है
देखूं उस पार नज़ारा क्या है
अनजाने के अन्वेषण में ही
जीवन का गतिविज्ञान रचा है
होता क्यों  मन डगमग तट की हिलकोरों से
कश्ती उतारो ले प्रेरणा इन मचलती लहरों से
करो पकड़ मजबूत पतवारों पर
हो जाओ सवार तम सागर के मंझधारों  पर
लिए हाथों में हाथ हम साथ जो होंगे
तूफानों से कश्ती चुटकी में निकाल लेंगे
निकलेंगे चीर कर जब तमसागर के तूफ़ान
उस पार दिखेगा जगमगाता एक नया बिहान
छोडनी होगी आदत मगर हिलकोरों से डरने की
जुटानी होगी हिम्मत अनजाने खारों से लड़ने की.
[ईमि/२८.०१.२०१३]
हा हा
100
मुहब्बत को सबा की तरह आनी चाहिए
आंधी-तूफ़ान की तरह नहीं
आहिस्ता-आहिस्ता लोटे से भिगोना चाहिए
बारिश झोंको की तरह नहीं.

[ईमि/२८.०१.२०१३]

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