aap ने जब सरकार बनाने का उसने फैसला ले ही लिया है तो वह कुछ ऐसे जनपक्षीय फैसलें लें जिनका सार्वजनिक विरोध कांग्रेस या भाजपा के लिए मुश्किल हो. अगर २-३ महीने भी सरकार ढंग से चल गयी और ये लोग घोषणापत्र की घोषणाओं की तरफ पारदर्शिता से आगे बढ़ें तो बाकी पार्टियों में हलचल मचेगी फिर देखा जाएगा.कारपोरेट शक्ति को चुनौती देने के माद्दे की जरूरत है. जब तक कारपोरेटीकरण और साम्राज्यवादी पुछल्लेपन की नीति पर हमला नहीं होगा, तब तक जनसाधारण की समस्याएं बढती जायेगी और उसी अनुपात में भ्रष्टाचार बढ़ेगा जिसकी जड़ ज्यदा-से-ज्यादा मुनाफ़ा और संचय के सिद्धांत पर आधारित कार्पोरेटी उपभोक्ता संस्कृति है और जिस पर प्रहार के बिना "आम आदमी" का भला नहीं हो सकता. भारत को बेनेजुएला से सीख लेना चाहिए जहाँ कारपोरेटों के राष्ट्रीयकरण और मूल्य नियंत्रण के सरकारी अभियान से आम आदमी को काफी राहत मिली है. राष्ट्रीयकरण का फैसला तो दिल्ली सरकार नहीं कर सकती और राज्य के अधिकार में भी निजीकृत इकाइयों से इतनी जल्दी निजीकरण नहीं समाप्त हो सकता ऐसे में इन्हें निजीकृत सेवाओं को जवाबदेह बनाना होगा वह तभी किया जा सकता है जब सरकारी अधिकारियों को भय और अन्य इंसेंटिव से ईमानदार बनाया जा सके. A teacher has to teach by example and a leader has to lead by example.
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