Saturday, December 28, 2013

लल्ला पुराण 129

संघी अंध आस्था वालों को कोई भी तर्कशील व्यक्ति पागल नज़र आता है, सुकरात को भी तत्कालीन धर्मांधों ने पागल घोषित कर दिया था Hari Prakash Pandey जी.  Markandey Pandey जी, अदालती फैसले अंतिम सत्य नहीं होते अभी तो अदालतें और भी हैं. एहसान जाफरी को किसी ने नहीं मारा था. अदालती फैसले का तकनीकी सहारा भले ले लें लेकिन आप भी जानते हैं कि किसने क्या किया. थोड़े ही दिन पहले उसने कहा था 2002 की हत्याओं का उसे कोई अफसोस नहीं है और अब सदमें की बात कर रहा है, यह दोगलापन क्या बताता है? माया कोडनानी को तो सजा हुई वह किसके आश्रय पर हत्यायें बलात्कार करवा रही थीं, उस सजायाफ्ता को हत्यारिन कहने की हिम्मत है मोदी में. पांडे, बनजारा एवं अन्य पुलिस अधिकारी किसकी शह पर संवैधानिक कर्तव्य को कबाड़े में डालकर निर्दोषों को फर्जी मुठभेड़ों में मार रहे थे? माया कोडनानी को हत्यारन क्यों नहीं कहने की हिम्मत करता मोदी अगर अदालती फैसला ही सत्यमेव जयते है तो. आप एक सम्मानित पत्रकार हैं आप अपने आराध्य मोदी का एक वाक्य या कृत्य बताएं जो उसे युगद्रष्टा साबित करे तो मैं भी आपके साथ नमो नमो स्वाहा के जाप में शरीक हो जाऊंगा. बुतपरस्तों और मुर्दापरस्तों के इस मुल्क में लोग तथ्तय आधारित तर्क की बजाय अंध आस्था का बिगुल बजाते हैं.

Rishu Aaryan Rai मित्र मैं बजरंगी लंपटों की तरह अनर्गल प्रलाप नहीं करता. तथ्यों-तर्कों के आधार पर अपनी बातें रखता हूं और शब्दों के चुनाव में सतर्क रहता हूं. अपनी जागीर समझ जनता की संपदा बलपूर्वक छीनकर औने-पौने दामों में अंबानियों, टाटाओं और वाल-मार्टों को भेंट करने वाले उनके ज़रखरीद गुलामों की भूमिका अदा करने वाले शासकों को कारपोरेटी दलाल कहना न्यूनतम कटु भाषा है. हत्या-बलात्कार के भीषण आयोजन से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जरिए सत्ता हासिल करने वाले को किस अलंकार से नवाजा जाय? मध्ययुगीन सामंतों की तर्ज़ पर किसी लड़की पर दिल आ जाय तो सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग से उसका और उसके मित्रों का पीछा करने के छिछोरेपन के निए किस सम्मानजनक शब्द का इस्तेमाल किया जाय? मोदी अगर इतना जनप्रिय नेता है तो केजरीवाल की तरह बिना सुरक्षा के चले, जनता उसकी रक्षा करेगी, ज़ेड प्लस सुरक्षा क्यों चाहिए?

Chandan Srivastava & Shriniwas Rai Shankar वामपंथ की तो यहां कोई बात ही नहीं हो रही है, विषयांतर जड़बुद्धि संघियों का पुरानी आदत है. वामपंथ मानसिक रोग हा कि नहीं इसपर बहस हो सकती है लेकिन आप जैसे प्रतिगामी लोगों के सिर पर भूत की तरह सवार रहता है, किसी भी चर्चा में अभुआने लगते हैं. दिमाग का उपयोग ही मनुष्य को अन्य जानवरों से अलग करता है, उसे ताक पर रखकर आप उस फर्क को खत्म करके मोदियाने लगते हैं.

Chandan Srivastava  कौन सा खतरनाक बात दिख गयी आपको मेरी प्रोफाइल पिक में? मेरे ब्लाग से कुछ लेख पढ़ लें तो भूमिका भी पढ़े बिना वामपंथ पर फतवालुमा पुस्तक समीक्षा के कुबुद्दिपूर्ण कृत्यों से बच जाएंगे. शुभकामनाएं. पढ़ें-बढ़ें.

Padam Singh  सलाह के लिए धन्यवाद. आपके प्रदूषित संघी संस्कार औऐर तमीज आपकी भाषा में साफ झलक रहे हैं. आपकी गलती नहीं है आपकी जहालत के समाजीकरण और प्रशिक्षण का दोष है. इवि का स्तर लगता है वाकई गिर गया है या हो सकता है आप जैसे विद्वान अपवाद हों.

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