Friday, December 27, 2013

क्षणिकाएं 1 (1-50)

क्षणिकाएं
ईश मिश्र
1
वियोग की पीडा उतनी ही सघन है
जितना सघन था संयोग का सुख
[ईमि/25.04.2011]
2
प्यार
होते हैं जो रिश्ते जिश्म के जज्बात के
उड जाते हैं वे चक्रवात के आघात से
बनते हैं रिश्ते जो वैचारिक संवाद से
टूट नही सकते कैसे भी कुठाराघात से
जानबूझ कर हार जाना समर्पण का मर्म है
उसको तोडना ही सच्चे प्यार का धर्म है
[ईमि/15.05.2011]
3
बेहतर है क्रांति का नशा भ्रांति के नशे से
चुनना ही है गर कोई एक इन दोनों में से
एक देता है गगनचुंबी उड़ान, तब्दीली के खयालो को
दूजा ढकेलता है रसातल में निरासा के
छोड़ कर पीछे सारे विप्लवी सवालों को
एक देखता है इंक़िलाबी ख्वाब आर-पार की लड़ाई से
दूजा देखता है इंक़िलाब गठजोड़ में सरमायेदारी से
ईमि/02.06.2011]
4
नई सुबह
आएगी ही वह सुबह रात के तिमिर को चीरते हुए
कार्पोरेटी भोपुओ को ललकारते हुए
हो जाएगी असह्य जबगरीब के पेट की ज्वाला
उतर जाएगा जब धर्म-जाति और अंधविश्वास का नशा
चलेंगी जब हर गली हर गाँव में हाथ लहराती लाशें
गाएंगी कोयल और गौरय्या आजादी के नग्मे
आएगा तब सच-मुच का जंतंत्र
खत्म हो जाएगा दुनिया से कार्पोरेटी लूट्तंत्र
[ईमि/11.06.2011]
5
आचार्य
आचार्यों का मामला तो आचार्य ही जानें
पहले तो जैसा कि हम सब हैं, साधारण माने
दर-असल हम सब साधारण इंसान हैं
लेकिन कुछ लोग असाधरणता के लिए परेशान हैं
दिखना चाहते हैं वह जो हैं नहीं वे लोग
पाल लेते हैं ढकोसले और आडंबर का रोग
यही तो सार और प्रारूप का अंतर्विरोध है
ज्ञान की प्रगति का सबसे बड़ा अवरोध है
[ईमि/11.06.2011]
6
अवसाद
सच है निर्वात की असम्भाव्यता की बात
पहले तुम थे अब न होने का अवसाद
जब भी करता हूँ ग़मे-जहाँ की बातें
सिनेमा की रील सी गुजरती हैं तुम्हारे साथ की यादें
थी दोस्ती की खुशी भी काफी सघन
कभी भी नहीं हुई कोई अनबन
चंद दिंनो का ही था अपना साथ
हो गया कुछ ज्यादा ही वियोग का अवसाद
[ईमि/13.06.2011]
7
आजकल खोटी चवनी का चलता है सिक्का
जान कर यह राज मनमोहन हो गया हक्का-बक्का
खारीद लिया सारी खोटी चावान्निया बाज़ार से
रखा किसी का नाम चिदाम्बरम किसी का डी. राजा
बजाया उसने खोते सिक्कों से देश का बाजा.
[ईमि28.06.2011]
8
कहते रहेंगे हम
सुनें-न-सुनें आप
एक-न-एक दिन महसूंसेंगे
इसका गुरुत्व और ताप
बढ़ जाएगा जब चारणों का पाप
खुद-ब-खुद होगा कलम हाथ में
कवि बन जायेंगे आप
निहित है यह खतरा विमर्श में
समझें इसे चाहे तो वरदान या समझें अभिशाप
[ईमि/12.07.2011]
9
जब वर्षा शुरु होती है घास हरी हो जाती है
गर्मी की उमस का एहसास कम हो जाती है
उड़ते है उन्मुक्त चील कौवे आकाश में
मय मिल जाती है प्रेम के मधुमास में
[ईमि/12.07.2011]\
10
अदब
अदब थी यहाँ नज़रें ज़िन्दाँ
जहाँ नहीं पंख मार सकता कोई भी परिंदा
छात्र था यहाँ भौंचक्क और डरा डरा
मुदर्रिस था ३-५ के चक्करों में फंसा बेचारा
छात्रावास दिखे ऐसे
विस्थापितों के डेरे हों जैसे
हाकिमों का आना होता है १५ अगस्त या २६ जनवरी को
जैसे कुछ मुल्ले निकले हों नमाज़ी तफरी को.
11
सबाब और शराब  से ऊपर नहीं उठ पाती कविताए  तुम्हारी
इतिहास की रद्दी के टोकरी में समा जायेंगी सारी की सारी
[Monday, September 24, 2012/3:42 PM]
12
मंजिल मिलने पर भी नहीं थमती खाहिशें
तलाश होती है नयी मंजिल और नए रास्तों की
तब तक चलता रहता है सिलसिला
खाहिशोंमंजिलों और रास्तों का
चलती है जब तक दिल की धडकनें
[Monday, September 24, 2012/5:14 PM]
13
तस्वीर १
कुछ कहती हैं ये वाचाल आँखें
क्या कहती हैं?
बदल डालो यह दुनिया
दिखता है जिसमे तकलीफ का
इक उमड़ता हुआ समंदर
Monday, September 24, 2012/१७:५४
14
सीखना-सिखाना है परस्परिक क्रिया
नही कहने की जरूरत किसी को शुक्रिया
[23.09.2012]
15
गुजरे हुए कुछ दुखद हादसे कचोटते तो हैं
लेकिन सुखद यादों के साथ
दुखद-सुखद की द्वद्वात्मक एकता से
बनती है ज़िंदगी की जटिल हकीकत
[२३.०९.२०१२२२.०२]
16
नहीं होंगे चाहत के ये काले बादल
फिर से जी डराने वाले
इस बार ये धरती को सरोबार कर देंगे
नहीं फेरेंगे अरमानों पर पानी
अबकी ये उन्हें गुलज़ार कर देंगे.
[रविवार23 सितम्बर 2012१३:०२ अपराह्न]
17
ऐसे कितने जमाने गुजरे हैं
कितनी बार यह शब्द सुने हैं
सभी याद रहेंगे जीवनभर
जिन किसी ने कभी जानू कहे हैं
[26.09.2012 /5.30 AM]
18
मदरसा-ए-ज़ब्त-ए-गम
चलाती हूँ मदरसा-ए-ज़ब्त-ए-गम
ख्वाहिशमंदों के लिए खुला है हरदम
असीमित नहीं है लेकिन शुरुआती कक्षा
पास करनी होगी एक जटिल प्रवेश-परीक्षा
रूसो की सास्त्र में अरूचि थी
मगर हकीकत तो सीधी बात में ही होती है
ढक दिया है मैंने उन्हें मरहम-ए-गम से
बनता रहे नासूर मगर तुमको न दिखे
है अगर कहीं खुदा तुम्हे महफूज़ रखे
लेकिन खुदा भी है आस्तिको की खुशफहमी
उसी तरह जैसे मुहब्बत थी मेरी
तुम प्यार को निवेश मानती हो
दिल-ए-बेचैनी को बकवास मानती हो
प्यार नहीं है कोइ व्यापारिक निवेश
असुरक्षा के कवच का ढीला परिवेश
[ईमि/१२.०४.२०१३]
19
सिराज्जुद्दौला के भेष में मेरे जाफर हैं सारे
ओबामा के जार-खरीद गुलाम हैं बेचारे
विश्व बैंक के टुकड़ों पर फिरते हैं मारे मारे
ओबामा खुद भी तो गुलाम है जरदारों का
क्या करें इन गुलामों के गुलाम बेचारों का
सो रहा है मिथ्या चेतना में जब तक आवाम
कर देंगे ये गुलाम मुल्क का काम तमाम
मुझको तो है जनता की शक्ति में यकीन
बना देगी एक दिन जर के गुलामों को खाकनशीन
[ईमि/२२.०४.२०१३]
20
[२६.०९.२०१२]
निराला है मकतबे इश्क का दस्तूर
जिसने याद किया उसका खुदा मालिक
समझा मगर जिसने मर्म-ए-इश्क
बावजूद विघ्न-बाधाओं के पास होगा जरूर
[27.09.2012/]
21
कक्षा में धमाचौकड़ी मची है
अध्यापक बता रहा है कि
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है
बाहर निकल भागते है
किसी मरीचिका के पीछे
आगे दिखता बंद राजद्वार
"आम रास्ता नहीं" का इश्तहार

बंद राजद्वारों  के पीछे के राजपथ
आरक्षित होते हैं चंद असुरक्षित अभिजनों के लिये
और इनके संगमरमरी धरातल
नाम-ओ-निशाँ भी नहीं छोड़ते किसी हलचल के
इसीलिये मुझेभाते हैं टेढ़े-मेढे कच्चे रास्ते
गिरते-फिसलते चलते जाते हैं जिनपर
ताकत से मिट्टी की गंध की
यादें रह जाती हैं और हिचकी आती है
लगता है किसी के बही में मेरा भी नाम दर्ज है
काश पता चल गया होता
'टूलेटकी तख्ती धुंधलाने के पहले
मुझे कक्षा में ऊब होती है
मैं एअस्तू नहीं  समझ सकता.
[२७.०९.२०१२/शाम ६.०५ बजे]
22
तस्वीर २
कुछ कहती है यह अर्थपूर्ण पुस्कान
कुछ कहती हैं वाचाल आँखे भी
संकल्प है इनमें भरने की ऊंची उड़ान
रोक नहीं सकता जिसे कोइ भी आसमान
23
क्या बात है इस बेबाक-सरल  खूबसूरती में
किसी नास्तिक का भी  मन रम जाये इस मूर्ती में
[३०.०९.२०१२/१२.५५]
24
तस्वीर ३
यह जिस्म की दावेदारी और शोख  मुस्कान
दिखाती है संकल्प भरने की नयी  नयी उड़ान
तय करना है नई ऊंचाइयां आयें कितने भी तूफ़ान
टूटेंगी वर्जनाएं सारे नहीं रुकने को अब यह अभियान
[०१.१०.२०१२/०८.३१]
25
ख्वाब
मुट्ठी में समेटने से पिघल जाते हैं ख्वाबहोती हैरानी
देखना नित नएसुन्दर ख्वाब है प्रगति की निशानी
मुट्ठी से फिसल जाते हैं ख्वाब,बाँट दो इन्हें अजीजों में
मिलकर देखने से ख्वाबबेहतर होते हैं नतीजों में.
[०१.१०.२०१२/०९.००]
26
निगाहों की वाचालता है इत्तिफाक
लबों से ही होती है पूरी बात बेबाक
[02.10.2010/05:46]
27
शायरी
शायरी तो महज बहाना है
मकसद तो फिजा बनाना है
आपस में मिलकर रहें लोग जहां
वैमनष्य का न हो रोग वहां
मिल-जुल बनाएं इक ऐसा समाज
हो जिसमें मेहनतकश का राज
[Wednesday, October 03, 2012/5:29 AM]
28
कौन कमबख्त जाना चाहेगा आपसे दूर
छोड़कर दोस्ती का ऐसा अनोखा हूर
साथ छोड़ना ऐसा कतई नामंजूर
तोड़ना पड़े चाहे कितने ही दस्तूर
(एक और तुक बंदीशुक्रिया सुमिता जी! )
[03.10.2012]
29
आज तक याद है
वह सुरमई शाम और उमड़ती लहरों का संगम
दिलों में उठा वह तूफ़ान और
सुलझाना उलझी ज़ुल्फ़ों का
जब मैं और तुम हो गए थे हम
[03.10.2012]
30
तस्वीर ४ (अलोका)
क्या रौनक है और क्या अंदाज़ है
दुनिया बदलने को आँखें बेताब हैं

कोइ भी बन जाये कवि ,
दिखे ऐसी जब छवि
कविता अक्सर नारा होती है
कभी कभी प्यार का इशारा होती है
[04.10.2012]
31
ईमानदार चोर
यह चोर बहुत ही  ईमानदार है
देश की नीलामी का अहम् किरदार है
बेचता है देश कहता आर्थिक सुधार है
देश को ऐसे ही चोरों की दरकार है
भारत महान की यह ईमानदार सरकार है
[04.10.2012]
32
मजबूरी का प्यार प्यार नहीं होता
प्यार में कोइ ऐसे बेज़ार नहीं होता
33
क्या भाव हैलगती है यह पक्के इरादों की मूरत
संकल्प दिखता है बदलने का दुनिया की सूरत
कैद कर नहीं सकती इसे कोई भी रवायत या वर्जना
विघ्न-बाधा भागते सुन् इसकी बुलंद गर्जना
(हा हा एक और तुकबंदी)
[13.10.2012]
34
खुदा खुदकुशी नहीं करताखुकुशी करता है इंसान
इंसानों की खुदकुशी के हालात बनाता है भगवान
खुदा मरता नहीं हासिल करता है साश्वत शहादत
मरने के बाद भी होती रहे जिससे उसकी इबादत
[खुदा की रूह से माफी के साथ]
35
नामुमकिन है उमडती लहरों का रोक पाना
बेहतर उनके साथ सामंजस्य बैठाना
[23.10.2012/6AM]
36
लहरों को रोकनाहै असाध्य को साधना
है यह उनकी उन्मुक्त प्रकृति की अवमानना
कितने ही जीवों का श्रोत है इनकी आज़ादी
तह में हैं इनके कितने ही  कीमती मोती
साधो निशाना असम्भव पर जरूर
क्योंकि है वह महज एक अमूर्त फितूर
लहरों से मत करो मगर छेड़खानी
ऐसा करना है महज नादानी
37
भूख के एहसास पर लिखता हूँ इसलिए गजल
देखा ही नहीं भोगा है भूख का हमने शगल
जो भूखे हैं वो भी हमारी ही तरह इंसान हैं
लूट के निजाम में अन्न पाने को परेशान हैं
इबादत जिनकी होती है वो बनते भगवान हैं
हकीकत में लेकिन इंसानियत खाने वाले हैवान हैं
38
लोग कहते हैं मेरी गजलें  नारा क्यों होती हैं
मैं कहता हूँ हर गज़ल नारा क्यों नहीं होती
और हर नारा क्यों नहीं होता कोई नज्म?
39
अघाए लोगों को दिखाई देता हैं चाँद एक सुन्दर मुखड़ा
नंगे-भूखों को दिखता है वो सूखी रोटी का एक टुकड़ा
40
बेरुखी
बेरुखी कभी भी बेबात नहीं होती
अश्को की दरिया में किश्ती नहीं चलती.
41
जो बेबात बेरुखी बुरी होती है
वहम-ओ-गुमां से जुड़ी होती है
यह आदत है धनवानों की
तर्कहीन विद्वानों की.
42
राजपथों पर गुजरते हैं इक्का-दुक्का ही काफिले
चिकने धरातल  ऐसे हादसों के गवाह ही नहीं  छोड़ते
चलते हैं इनपर वहम-ओ-गुमाँ वाले
डरते है जो अपने ही पैरों के निशान से
छोड़ना चाहते हैं अपनी छाप
अज्म-ए--जुनूं वाले कारवानेजुनून
और चलते है  कच्ची पगडंडियों पर
बनाते हुए रास्ता  आने वाले राहगीरों के लिए
पहुँचता है कारवाँ जब एक मंजिल पर
दस्तक देती है तेज है हवाएं
दिलाती हैं एहसास अगली मंजिल का
आगे दिखती हैं और भी मंजिलें
दिखते हैं पीछे कारवानेजुनून के कई काफिले.
43
निगाहों की तश्नगी
ईश मिश्र
ढूंढेगी जिसे भी इतने खलूस से निगाहों की तश्नगी
इनमें डूबना हैं अहल-ए-जूनून से इश्क की बंदगी
ये आँखे हैं सघन जज्बातों के उमड़ते हुए समंदर
मिलेगा मोती-ए-ज़िंदगी पैठ गहरे इनके अंदर
44
नयनों के अंदाज़ हों गर उमड़ती लहरों के  समंदर से
जी करता है करने को खुदी इसके ज्वार-भाटा के हवाले
45
होंगे नयना जो सावन-भादों
मन रहेगा उदास
करेगा किसी कृपा की आस
और नहीं बुझेगी प्यास
46
हो नज़रों में इतने तेज का एहसास
कुंएं को भी हो जाए प्यास का आभास
चल कर खुद-ब-खुद आ जाए पास
बुझाने एक दूजे की नैसर्गिक प्यास
47
तस्वीर ५
क्या कहती हैं चकित हिरनी सी ये निगाहें
और साथ में  अर्थपूर्ण मंद मुस्कान?
कर रहा होगा मन तैयारी
भरने को गगनचुम्बी एक नई उड़ान
तल्खी दिखती है जज्बात में कड़वाहट नहीं
करती हैं ये बुलंद इरादों का ऐलान

करता नहीं तारीफ़ बेबातहूँ मुंहफट इंसान
जो होगा सुपात्र करूँगा उसीका गुणगान
बिना चुम्बकीय आकर्षण डोलता नहीं ईमान
किसे नहीं भायेगी ये संकल्पवती मधुर मुस्कान
48
तस्वीर ६
ये भाव कुछ उदास से
व्यापक ना-इन्साफे क्र आभास से
दींन-दुखिया की पीड़ा के एहसास से
समाज के परसंतापी संत्रास से

वह! क्या बात है सुमिता काम्थान की
ख्यालों के परवाज-ए-उड़ान की
[१६. ११. ०१२]
49
जब तक निजाम-ए-ज़र रहेगा
पोंटी चड्ढा बा-असर रहेगा
50
यदि मैं भी ओबामा का गुलाम होता
दुनिया में मेरा कितना नाम होता
सैकड़ों हरम-ओ-हमाम का इमाम होता
हर शहर में फ़ार्म हाउस हर सूबे में मकान होता
राजमाता का आशीर्वाद युवराज का साथ होता
रहमत-ए-विश्वबैंक सर पर वालमार्ट का हाथ होता

जलवे ऐसे होते तो वजीर-ए-आज़म हिन्दुस्तान होता

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