Sunday, December 29, 2013

क्षणिकाएं 5 (201-25)

201
जज्बात में भर कर उमंग
चलती जाओ उम्मीदों के संग
कट ही जायेगी राह
हो जब मंजिल की चाह
हो जायेगी सारी थकान दूर
चढ़ेगा जब मजिल का सुरूर.
[ईमि/१५.०८.२०१३]
202
गुजारिश करो गहन आलिनगान की ऐसे
उतनी ही आतुर आलिंगन के सहभागी से !
उसमें प्रभु बेचारे क्या कर सकते हैं?
वो खुद शेषनाग पर सवारआलिंगन को तरसते हैं.
[ईमि/१६.०८.२०१३]
203
गया अब दादी-नानी के किस्सों का ज़माना
गाँव-कुनबों की छोटी दुनिया का फसाना
गाना है अब वसुधैव कुटुम्बकम का तराना
दुनिया को है एक भूमंडलीय गाँव बनाना
करना होगा खत्म छोटे-छोटे गाँव
बनेगी धरती तभी तो विशाल कार्पोरेटी  गाँव
होगा ऐसे गाँव में किसान-कारीगर का क्या काम
बारूदी मशीने बोलेंगी जय श्रीराम
खेतों में  उगेगी डालर और यूरो की फसल
दाल-रोटी हो जायेगी घरों से बेदखल
वाल-मार्ट  होगा  इस गाँव का किरानी
कृपा से उसकी मिलेगा सभी को रोटी-पानी
सम्हालेगा बचपन-बुढापा नदारत जवानी
[ईमि/२१.०८.२०१३]
204
इतिहास पीछे  नहीं जा सकता
नहीं लौट सकता वह गाँव वापस
तोडना पडेगा इस भूमंडल की साम्राज्यवादी पेंच
इन्किलाब के हथौड़े से
और बनाना पडेगा एक इंसानी भूमंडल
उंच-नीच और शोषण-दमन के पार
होगा सब कुछ सबका नहीं कुछ भी हमार-तोहार
[ईमि/22.08.2013]
205
जज्बात में भर कर उमंग
चलते जाओ उम्मीदों के संग
कट ही जायेगी राह
हो जब मंजिल की चाह
हो जायेगी सारी थकान दूर
चढ़ेगा जब मजिल का सुरूर.
[ईमि/20.08.2013]
206
शौक तो नहीँपर मरना तो है ही
क्यों न इश्क की तालीम के साथ मरें
[ईमि/२०.०८.२०१३]
207
बातें विचार-मुक्त तथ्य की
है व्याख्या अर्ध सत्य की
वस्तु से ही निकलते हैं विचार
करता नहीं इससे इंकार
किंतु वस्तु है सच्चाई अधूरी
विचारों से मिलकर होती है पूरी
कला के लिये कला की बात
है महज एक बौद्धिक खुरापात
होते जब भी विचार प्रखर
चलते हैं साथ भाषा-शैली लेकर
द्वंद्वात्मक एकता विचार और कला की
मानदंड है कविता की सार्थकता की
सर्वविदित है अब यह बात
कला के लिये कला है अपराध
[ईमि/२४.०८.२०१३]
208
गीता एक फरेब है सरल मन के साथ
एक अहंकारी स्वघोषित भगवान का
दिखाता है सब्ज-बाग भोगने की ज़न्नत
करता है महिमा-मंडन अचिंतनशील इंसान का
सोचो मत बस कर्म करोमारो या मर जाओ
देता है उपदेश बिन-सोचे कर्म के अरमान का
मारकर भोगोगे धरतीमरकर पाओगे स्वर्ग
है यही मूल मंत्र खुदाई फरमान का
[ईमि/24.08.2013]
209
बैठे रहोगे गर भरोसे किसी फरेबी भगवान् के
पिओगे घूँट घोर अपमान के
करो मजबूत अपना आत्मविश्वास
कर दो दुष्टों का सत्यानाश
[ईमि/२८.०८.२०१३]
210
डरते जो भूत-ओ-भगवानों से
लड़ नही सकते वे सरमाये के हैवानों से
वे कर सकते महज जी-हुजूरी भूमंडलीय नाखुदाओं की
अपने साम्राज्यवादी दलाल आकाओं की
[ईमि/30.08.2013]
211
और भी काम हैं तुम्हारी यादों के सिवा
फेसबुक भी तो है इस आभासी दुनिया में
[ईमि/04.09.2013]
212
नहीं होता कोई रिश्ता निरपेक्ष यादों और कसमों में
कुछ यादें होती ही ऐसी हैं कि भूलतीं ही नहीं. हा हा
[ईमि/ 07.08.2013]
213
लगातार रहो साधते असंभव पर निशाना
बन जाये जिससे वह एक सैद्धान्तिक संभावना
नहीं कुछ भी असंभव उसी तरह
होता नहीं जैसे कोई अन्तिम सत्य
भगवान और भूत की ही तरह
असंभव भी है महज़
एक सैद्धांतिक अवधारणा
संभव बन जाये असंभव एक बार जब सिद्धांत में
वक़्त फिरते ही बन जायेगी हक़ीक़त व्यवहार में
[ईमि/09.09.2009]
214
कमतर तो हम कत्तई न थे किसी से भी
वो समझते रहे कमतर अपनी नासमझी में
जिसे करार दिया उन्होंने गुनाह
वो जो भी था गुनाह तो कोई न था
क्यों भुगतें हम सज़ा किसी की नासमझी की
हमारी अपनी मर्जी भी तो है.
[ईमि/१२.०९.२०१३]
215
कहाँ हो जाती हो गायब देकर मौजूदगी का एहसास
चाहिए दीदार-ए-दिल नहीं महज आभास. हा हा
[ईमि/१३,०९.२०१३]
216
चलती तो हूँ मैं करते हुए मुनादी-ए-ऐलान
तुम्हारी मशरूफियत मुझे कैसे मालुम
ग़म-ए-जुदाई की है या तलाश-राह की
उसूलों पर जीने या निजी चाह की
[१२.०९.२०१३]
217
सच है कि होगा शक्ल का
कुछ तो एहसास
हो कैसा भी आइना
दिखेगी मगर खंडित तस्वीर
गर टूटा हो आइना
[ईमि/१३.०९.२०१३]
218
है मेरा वजूद तेरे वजूद की बदौलत
है ही नहीं एहसास-ए-ज़िंदगी तुम्हारे एहसास के बगैर
आती है जब भी  याद गम-ए-ज़हाँ की
होती है बहुतायत उनमें यादों की तुम्हारी
याद है है वो दोराहा
इश्क़-ए-माशूक़ और इश्क़-ए-जहाँ का
जहाँ हम पहले मिले थे
किया था वायदा जो हमने लेकर हाथों में हाथ
गम-ए-जहाँ के साथ मिलाकर गम-ए-खुदी को
इन्सानियत के सफर में चलने का साथ साथ
विचल गए तुम खत्म होता जब तक पैमाना
चोर के कोतवाल को डाँटने की तर्ज पर
अब दिखा रहे हो उल्टा आइना
[ईमि/12.09.2013]
219
इन आँखों में छिपा है दर्द गम-ए-जहाँ का
और चेहरे पर जंग-ए-आज़ादी का ज़ज्बा
चलती हैं उन्मुक्त उंगलियां जब गिटार पर
कर देती हैं पैदा इंक़िलाबी स्वर और ताल
हो सवार इसके नग्मों की उफनती लहरों पर
पार कर जाती है तक़लीफ का उमड़ता समन्दर
[ईमि/13.09.2013]
220
कहाँ हो जाती हो गायब देकर मौजूदगी का एहसास
चाहिए दीदार-ए-दिल नहीं महज आभास. हा हा
[ईमि/१३,०९.२०१३]
221
माशूक के जलवे पर दिखाए गर कोइ मालिकाना हक़
उसके प्रेम की प्रामाणिकता पर होता है मुझे शक
[ईमि/१५.०९.२०१३]
222
हर मुस्कराहट खतरनाक नहीं होती
कुछ  दती  हैं दिल को सुकून भी
[ईमि/15.09.2013]
223
कितना ज़ालिम है खुदा,
मिट जाती है हस्ती उसकी
हो जाता है जो उसको प्यारा
[ईमि/१५.०९.२०१३]
224
वो लोग नावाकिफ हैं इश्क की हकीकत से
जो इसे दर्द का दरिया या समंदर कहते हैं
इश्क तो संजीवनी है सभी रोगों की
ईंधन है भावनाओं की गाड़ी के इंजन की
[ईमि/१५.०९.२०१३]
225
नहीं है मकसद हमारा ख़त्म करना कोइ धर्म
देता गरीब को जो खुशियों का भ्रम
मकसद है ख़त्म करना वे हालात
मिलती है धर्म को जिनसे खुराक
मिलेगी लोगों को अगर हकीकी खशी
भ्रम की होगी किसी को जरूरत नहीं.

[ईमि/१६.०९.२०१३]

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