151
एहसास-ए-आज़ादी
आज़ादी-ए-एहसास है
महज इबारत नहीं
आज़ादी की
जंग-ए-आज़ादी का
पूर्वाभाष है
शोषण-दमन से मुक्त
एक दुनिया का है
सपना
सब होंगे आज़ाद
जिसमें
न होगा कुछ
तेरा न कुछ अपना
[ईमि/१६.०५.२०१३]
152
कल की ही तो बात है
चहक रही थी वह
हो सवार मेरे
कंधे पर
उचक-उचक कर चूम रही
थी गाल
जताने को एक टाफी का
आभार
दिखीं थी अनंत
संभावनाएं
उस छोटी सी जान में
आज ही कैसे हो गया
अनन्त सम्भावनाओं का
अंत?
समा गयी वह काल के
गाल में
छोडकर निर्जीव, क्षत-विक्षत नन्हीं देह
उसका अपराध इतना ही
था
कि जब वह पैदा हुई
लोगों ने कहा था
लडकी है.
[ईमि/१८.०५.२०१३]
153
वक़्त का आइना
गर काफिर को नमाजी बना दे
ख़याल-ए-खुदा को
हकीकी जहां का गाजी बना दे
होती नहीं ऐसे कुफ्र
में परवरदिगार से बगावत
नतीजा होता है ये
दीगर खुदाओं की अदावत
[ईमि/२३.०५.२०१३]
154
सच है आते आते आयेगा
ख़याल उनको
दुनिया के मेहनतकशों
की एकता का
शुरू होगा ही नया
युग
इतिहास के नए नायकों
का
आ रहा है उनको ख़याल
तब से
कायम हुआ सरमाये का
राज जब से
आते आते नहीं आया है
अब तक
आयेगा ही लेकिन
कभी-न-कभी
कह नहीं सकता मगर कब
तक
बेखयाली अभी तक है
बरकरार
धर्म और निजाम-ए-जर
चमकाते रहते हैं नित
उसकी धार
करते रहना है
इसी लिए
बेखयाली के उद्गमों
पर वार
बार बार लगातार
[ईमि/२१.०५.२०१३]
155
काश! मेरी कश्ती में
कोइ और भी होता
मगर सफ़र की तन्हाई
का अपना ही मज़ा है
[ईमि/०३.०६.२०१३]
156
क्या खूब होता
वह अनोखा सफ़र
साथ गर कोइ तुम सा
हमसफ़र होता
[ईमि/०३.०६.२०१३]
157
उन्होंने साथ चलने
की मेरी रज़ा पूछा
बोला उनका मालिक
खड़ा था जो पीछे
परदे के
इजाज़त नहीं है इसकी
और वे हिम्मत की
हिमाकत पर
सिसकती रहीं
नहीं मालुम खुद की
या मालिक की
[ईमि/०३.०६.२०१३]
158
सोना भाता नहीं
मुझको
आता है जो महज
आभूषण के काम
लगता है इसी से उसका
ऊंचा दाम
मुझे तो लुभाती है
गीली मिट्टी
जिस पर हर घटना
कुम्हार बन
कविता निकाल देती है
हो सकता है सोने के
होने में न होना
साक्षात साश्वत
है सुगंध मिट्टी की
मिलाना है मिट्टियों
को दरिया के आर-पार
करो मजबू पकड़ पतवार
पर
बिना डूबे पार करना
है
उम्मीदों की यह
दरिया
[ईमि/०३.०६.२०१३]
159
निगाह-ए- शौक पर
चलता है जब हुक्म बेनियाज़ दिल का
इश्क होता है बेपनाह
और दिमाग शिकार निगाह-ए-कातिल का
[ईमि/०४.०६.२०१३]
160
हर मसले पर बोलता
हूँ तो वाचाल न समझना
साथ चुनौती के देता
हूँ दांव सबके नाप-तौल कर
[ईमि/०४.०६.२०१३]
161
योग-वियोग तो है
कुदरती क़ानून
साथ मिलना-छूटना महज
संयोग भी होता है
पर चिंतित हूँ
तुम्हारे कठपुतली बन जाने से
दिल बैठता है देखकर
रिमोट कंट्रोल से
चलते पाँव
और प्रतिध्वनि के
लिए हिलते होठ
बन जाओगे जिस भी दिन
कठपुतली से इंसान
वापस पाओगे खुद की
अपनी आवाज़
हम फिर साथ बांचेंगे
मसौदे इन्क़िलाब के
मिलकर देखेंगे ख्वाब
दुःख-दर्द से मुक्त
एक नई दुनिया के
[ईमि/.०५.०६.२०१३]
162
निकल चुके हो
ज़िंदगी से
ख्यालों से निकलना
बाक़ी है
भर गए हैं जिस्म के
घाव
मन का घाव बनारना
अभी बाकी है
[ईमि/०४.०६.२०१३]
163
खड़े होकर हिमगिरि
के इस उन्नत शिखर पर
किस नई उड़ान के
ख्यालों में मगन है यह लडकी?
है नहीं इसके पास
ख्यालों की कडकी
चेहरे पर झलकता
आत्मबल और संकल्प
तलाश रहा हो जैसे
कोइ नया विकल्प
इरादे दिखते बुलंद
अंतरिक्ष के उड़ान की
मानेगी नहीं ये कोई
सीमा किसी आसमान की
खोयेगी नहीं होश
उड़ान के जोश में
धरती को रखेगी सदा
नज़रों के आगोश में
दिखी थी उस दिन
जुलूस में लगाती इन्किलाबी नारे
काँप गए थे ज़ुल्म
के ठेकेदार सारे
रुकेगा नहीं अब इसका
एक नए विहान का अभियान
आते रहें रास्ते में
कितने भी आंधी-तूफ़ान
[ईमि/०८.०६.२०१३]
164
कितना मगन है यह
उल्लसित युगल
करके पार बर्फ की
गुफा लिए हाथों में हाथ
गढ़ रहे हैं मिलकर
जैसे नक़्शे
नई मंजिलों और
रास्तों के
हासिल करना है
जिन्हें दोनों को साथ साथ
[ईमि/०८.०६.२०१३]
165
दिल धडकना तो
ज़िंदगी की फितरत है
यादों की कसक कितनी
भी सिसकती रहें
रुकता नहीं
कारवाने-जूनून
हमराही कितने भी
बदलते रहें
[ईमि/११.०६.२०१३]
166
पूजते हैं जिसको वह
भगवान होता है
पा नहीं सकते उसे
क्योंकि कल्पना का होता नहीं कोई मुकाम
मुहब्बत बन जाती है
जब इबादत
प्रेमी प्रेमी नहीं
रहते
बन जाते हैं भक्त और
भगवान
[ईमि/११.०६.२०१३]
167
उसी तरह बेवजूद हैं
फ़रिश्ते भी जैसे खुदा
खाबों में ही हो
सकती है इनसे मुलाक़ात
[ईमि/१३.०६.२०१३]
168
जग की क्या मज़ाल
लगा सके उस लडकी पर पाबंदी
उड़ान की बुलंदी
जिसकी तोड़ दे आसमान की हदबंदी.
[ईमि/१३.०६.२०१३]
169
आओ ख़त्म कर दें
मिलकर ऐसे निजाम
इंसानों की
खरीद-फरोख्त को हो जिसमे इंतज़ाम
सतयुग से ही चलता आ
रहा है यह वीभत्स रिवाज़
बीबी-बेटे के साथ
बिक गए थे जब हरिश्चंद्र महराज
[ईमि/१३.०६.२०१३]
170
लिखती रहोगी दिल पर
इश्का-इश्का
समझेंगे लोग है
दिमाग कुछ खिसका
तुम तो हो ही दूसरी
दूनिया की जब
इस जग की पाबंदी की
चिंता क्या तब
[ईमि/१३.०६.२०१३]
171
नास्तिक हूँ, काफिर नहीं, जज्बा है खुदा के वजूद से बगावत का
कुफ्र है नतीजा दीगर
खुदाओं-नाखुदाओं की आपसी अदावत का
[ईमि/१६.०६.२००१३]
172
खुशियों में ही छिपा
है उदासी का सबब
पतझड़ से सीखती है
बहार गुलशन का अदब
[ईमि/१९.०६.२०१२]
173
यही है
दस्तूर-ए-तारीख जब से सभ्य हुआ समाज
गरीब पर ही गिरती
रही है गम-ए-जहां की गाज
[ईमि/१९.०६.२०१३]
174
खतरनाक हैं लोग
जिन्हें आता नहीं गुस्सा
उनसे भी खतरनाक वे
जो जताते नहीं गुस्सा
मुझे तो हर बुरी बात
पर आता है गुस्सा
इस बात पर भी कि
लोगों को क्यों नहीं आता गुस्सा
[ईमि/२२.०६.२०१३]
175
है ये चेहरे पर
गम-ए-जहां की बेचैनी
समझना इसे घबराहट है
सरासर गलतफहमी
इश्क गर हो जहां से
हमनवां मिलते हैं
कहाँ कहाँ से
सच है कुछ नहीं
मिलता खैरात में
लड़ के लेना पड़ता
है हक और तबदीली हालात में
नहीं है मजबूरी जीने
की ज़िंदगी निज चुनाव है
मत समझो इसे मुह
छिपाना खुशियों से
बस खोखली
उत्सवधर्मिता का अभाव है.
[ईमि/२३.०६.२०१३]
176
दो लाशें जब लडती
हैं
एक शहीद होती है
और एक ख़ाक में मिल
जाती है
[ईमि/०२.०५.२०१३]
177
क्या गगनचुम्बी
इरादे और जज्बे हैं
इस सांवले लडकी के
निकली है जो सपनो को
साकार करने
एक नया इतिहास गढ़ने
178
खुशफहमी-ए-मुहब्बत
में ज़िंदगी बिता दी
मारे गए आखिर बेवफा
दोस्ती की घात से
उठे हैं कब्र से
अबकी जो हम
चौंका देंगे दुनिया
को अनूठे करामात से
उतार फेंका है सर से
बोझ माजी का
बढ़ेंगे आगे अब
बुलंद जूनून-ए-जज्बात से.
[ईमि/०४.०७.२०१३]
179
टपक जाते है गर गलत
शब्द कभी भूल से
चुभते हैं दिल में
दर्दनाक शूल से
[ईमि/०५.०७.२०१३]
180
मुजरिमों क लिए पहले
डूब मरने की कहावत थी
कहते हैं आमजन की
उनसे अदावत थी
डूबते-मरते नहीं
मुजरिम आजकल
काट लेते हैं निराई
के बहाने फसल
कहते हैं होती है
क्यों इससे हैरान अकल
वे तो कर रहे हैं
महज हुक्मरानों की नक़ल
[ईमि/०५.०७.२०१३]
181
सलामती-ए-ज़मीर
मंजिलें और भी हैं
मंजिल-ए-खुदी के सिवा
सलामती-ए-ज़मीर खुद
एक मुकम्मल मंजिल है
दिल की तसल्ली ही
नहीं
उसूलों का उद्गम भी
है ज़मीर की सलामती
लगा देती है
प्रवेश-निषेध की तख्ती अवांछनीय रास्तों पर
ज़िंदगी का होता
नहीं कोइ जीवनेतर मकसद
ज़िंदगी-ए-ज़मीर
खुद-ब-खुद एक मकसद है
तय होती हैं मंजिलें
सफ़र के अनचाहे परिणामों की तरह
हर पड़ाव है एक
मंजिल ऐसे सफ़र की
कोई अंतिम मंजिल
नहीं होती मौत के सिवा.
[ईमि/२१.०७.२०१३]
182
जो जीते हैं ज़मीर
बेचकर
रहते हैं
वहम-ओ-गुमान में
सलामत है ज़मीर
जिनकी
बनाते हैं
कारवानेजूनून.
[ईमि/२१.०७.२०१३]
183
बीता वक़्त आता नहीं
लौटकर
खींच जाता है मन पर
सुख और अवसाद की
टेढी-मेढ़ी रेखाए
सजा हो जिसे याद
करना
वह याद कुछ ज्यादा
ही आता है
कभी कभी सज़ा में भी
कुछ मज़ा आता है
[ईमि/२३.०७.२०१३]
184
तल्ख़ अलफ़ाज़
हैं मेरे पैगाम के
बहुत ही तल्ख़ है
अफ़साना-ए-हकीकत
बयान-ए-हकीकत
ना-मुमकिन है मृदुभाषिता से
दिखती है मुझे खोट उनकी
नीयत में
रहते हैं जो
अति-विनम्र, अति मृदु-भाषी लिबास में
[26.07.2013]
185
खुदा का जनाजा
शामिल हो कर खुदा के
जनाजे में
लगा दोजख-ओ-जन्नत
मिल गयी
तैरती हवा में दिखीं
जन्नत में हूरें
दोजख में दिखे इंसान
हमारी तरह
खुदा को याद आने लगे
अपने पाप
सताने लगा उसको
खुदाई जुर्मों का ताप
रह गयी हूरें देख यह
अजीब नज़ारा
खुदा ने पकड लिया
रास्ता दोजख का.
क्या खुदाओं में भी
होती है अंतरात्मा?
या पवाड था यह मर
चुका खुदा?
[ईमि/२९.०७.२०१३]
186
मुहब्बत नहीं है
मात्रात्मक इकाई कोई
मुहब्बत है एक
गुणात्मक अवधारणा
जो न नापी जा सकती
है
न ही मिलती
उपहार में
मुहब्बत होती है
अनादि और अनंत
बढ़ती है साझा करने
से ज्ञान की तरह
नष्ट होती है संचय
से ज्ञान की ही तरह.
[ईमि/३०.०७.२०१३]
187
अंतरंग पारस्परिकता
प्यार है नाम अंतरंग
पारस्परिकता का
पारदर्शी समझ और घनिष्ठता का
प्यार करता है पथ प्रशस्त
आपसी प्रगति का
सरोकारों की साझी
संस्कृति का
कर दे जो प्यार
बर्बाद
वह प्यार नहीं, है विशुद्ध अवसरवाद.
[ईमि/३०.०७.२०१३]
188
खुदा किसी का नहीं
होता क्योंकि वो खुद नहीं होता
खुदा खुशफहमी है
खाक़नसीनों का
वर्चस्व का हथियार
है कमीनों का
आत्मा है आत्माविहीन
दुनिया का
जुल्म के मातों को
देता राहत का आभास
जैसा कहा है कार्ल
मार्क्स ने
अफीम का तस्कर है
खुदा
बना देता है धर्म के
नशे का आदी
सीधे-सादे लोगो को
दूर कर देता असली
खुशी जिनसे
देता है खुशी की
भ्रान्ति उन्हें
खुदा का वजूद बनाते
हैं नाखुदा
कर देता है जो लोगों
को हकीकत से जुदा
[ईमि/०३.०८.२०१३]
189
मिटने-मिटाने की बात
क्योंकर कीजिये
होती नहीं सौदेबाजी
दिलों के लेन-देन में
190
मैं जो भी लिखता हूँ, कविता हो जाती है
नारेबाजी भी
करता हूँ तो शायरी हो जाती है
191
इश्क का कोइ मदरसा
नहीं होता
इश्क है दो दिलों की
स्वस्फूर्त अभिव्यक्ति
[०६.०८.२०१३]
192
खुल भी जाए गर
मदरसा-ए-इश्क
कौन लेगा वहाँ पढाने
का रिश्क
दाखले के लिए करो मत
सिफारिश
आशिक बन जायेंगे
सारे मुदर्रिस
[०६.०८.२०१३]
193
बोलना एक जुर्म है
प्रशस्ति गान के सिवा
विप्लवी गीत से हो
सकता है जनतंत्र को खतरा
सोचना ही है करता
इंसान को जानवर से अलग
इसी लिए रहता सोचने
से शासक सदा सजग
सोचने की श्रृंखला
से पनपती है साजिश की सदा
सोचने से इशरत जहां
कर सकती थी खुराफात
मचा सकता था
सोहराबुद्दीन मोदी-विरुद्ध उत्पात
सोचो लेकिन उतना ही
जितनी हो अनुमति
ज्यादा सोचोगे तो
होगी इशरत जहां की गति
[ईमि/०७.०८.२०१३]
194
मेरे दिल में बहुत
जगह है सभी इंसानों के लिए
जगह नहीं है कोइ
लेकिन भगवानों के लिए
दिल में हैं हमारे
जज्बात ए-इन्किलाब
मानता नहीं कोइ भी
रोजा-पूजा की बात
ईद मुबारक हो
[ईमि/०९.०८.२०१३]
195
मुहब्बत के नगमे
लिखता हूँ जब मुहब्बत
के भी नगमे
बन जाते हैं वे भी
इन्किलाबी तराने
प्रतिध्वनित होते
हैं जंग-ए-आज़ादी के नारे
लिखना चाहता हूँ जब
आशिकी के चाँद तारे
मिल जाता है
गम-ए-दिल गम-ए-जहान में
बैठता हूँ जब माशूक
की मुहब्ब के इम्तिहान में
देखना चाहूँ जब उसकी
आँखों में नैसर्गिक आकर्षण
दिखती हैं वे तकलीफ
का उमड़ता हुआ समंदर
सभी कर सकें प्रेम
ऐसा माहौल बनना चाहिए
इस दुनिया को जितनी
जल्दी हो बदल देना चाहिए.
[ईमि/०९.०८.२०१३]
196
गुजारिश करो गहन
आलिनगान की ऐसे
उतनी ही आतुर आलिंगन
के सहभागी से !
उसमें प्रभु बेचारे
क्या कर सकते हैं?
वो खुद शेषनाग पर
सवार आलिंगन को तरसते हैं.
[१३.०८.२०१३]
197
अमरीका को चलाता है
वहां का फौजी-औद्योगिक परिसर
इसीलिये वो बेचता
हथियार तीसरी दुनिया के क्षत्रपों को अक्सर
एक तरफ सीमा के
उतरें सैनिक मौत के घाट
पायें दूसरी तरफ के
सैनिक शहादत का खिताब
सिखाती है यही
हमें गीता भी
जीतने पर भोगो धरती
मरने पर है जन्नत खुदा की
खुद के लिए किया है
ईजाद
खतरों से खाली ड्रोन
विमान
मार दे जो पल में
लाखों इंसान
आइये छेड़ें इक जंग
हम आप
होकर एकजुट जन्गखोरी
के खिलाफ
इंसानियत को ताकि
मिल सके इन्साफ.
[ईमि/१२.०८.२०१३]
198
हम तो फ़िदा होते
हैं किरदार पर
न की अदाओं के विचार
पर
[ईमि/१२.०८.२०१३]
199
इश्क पर मुकदमा क्या
बात कही
हुस्न वालों की
फ़रियाद नहीं
आशिकी गढ़ती
है हुस्न की नयी परिभाषा
मत करों किसी मानक
सौन्दर्य की आशा
हुस्न को पकड़ा नहीं
जा सकता
अमूर्त अवधारण को
जकड़ा नहीं जा सकता
आओ करा दें समझौता
इश्क-ओ-हुस्न में
मदमस्त रहें दोनों
अपनी अपनी धुन में
[ईमि/१२.०८.२०१३].
200
इन काली आँखों में
दिखता जो काला जादू है
छिपा हुआ उनमें
तकलीफ का उमडता समंदर है
बहार से दिखती शांत
सी तिलस्मी शीतलता है
पर धधक एक
ज्वालामुखी इनके अंदर है
बनाना है
द्वंद्वात्मक एकता अंदर और बाहर में
आओ बन जाएँ मिलकर हम
अनेकता में एक
[ईमि/१४.०८.२०१३]
No comments:
Post a Comment