एक साथी खैयाम का
सलाम कबूलने में विलंब के लिए
माफी चाहता हूं
और वापस तुम्हारे खैयामी जज़्बे को
खैयामी (लाल) सलाम करता हूं.
फिलहाल
कोष्ठक वाली बात नाकबूल भी कर सकते हो
मगर मेरी आशावादिता असीम और अनंत है
कभी-न-कभी
टूटेगा ही शासक विचारों का वर्चस्व और
करेंगे ही क्रांतिकारी अभिवादन का आदान-प्रदान
क्योंकि
साझी मंज़िल है मानव-मुक्ति और
हम मानवता की सेवा में सहज सहयात्री हैं.
[ईमि/13.12.2013]
संत ? सुनते ही आसारम (राम नहीं ) क्यों दिखा होगा ?
ReplyDeleteउस वक्त तुकबंदी के चक्कर में उतर गई थी जेहन से यह बात. सुधार दूंगा.
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