बार बार देखता हूं तुम्हारी तस्वीर
लिख नहीं पा रहा हूं कोई काव्यमय तहरीर
करता हूं कोशिस लिखने की कविता जब भी
काली घटा सी जुल्फों में उलझ जाते शब्द तभी
उनमें घिरे गोरवर्ण मुख की मुस्कान
लगती किसी नवोदित सूरज समान
चकित हिरणी सी अनंत को भेदते नयन
दिखाते हैं जज़बा तलाशने के नये उपवन
उन्नत उरोजों से तालमेल बैठाता गिटार
दे रहा हो जैसे उन्हें एक नया आकार
थिरकती उंगलियां तारों पर गिटार के
गढ़ रही हों राग जैसे किसी सुंदर संसार के
करता है मन करने को असीम सघन प्यार
कर रश्म-ओ-रिवाज़ और उम्र की सीमा पार
हा हा यह तो कविता हो गई
लिख नहीं पा रहा हूं कोई काव्यमय तहरीर
करता हूं कोशिस लिखने की कविता जब भी
काली घटा सी जुल्फों में उलझ जाते शब्द तभी
उनमें घिरे गोरवर्ण मुख की मुस्कान
लगती किसी नवोदित सूरज समान
चकित हिरणी सी अनंत को भेदते नयन
दिखाते हैं जज़बा तलाशने के नये उपवन
उन्नत उरोजों से तालमेल बैठाता गिटार
दे रहा हो जैसे उन्हें एक नया आकार
थिरकती उंगलियां तारों पर गिटार के
गढ़ रही हों राग जैसे किसी सुंदर संसार के
करता है मन करने को असीम सघन प्यार
कर रश्म-ओ-रिवाज़ और उम्र की सीमा पार
हा हा यह तो कविता हो गई
kahan hai tashveer sir!
ReplyDeletekisi ne inbox men bheja tha
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteईश जी ये कविता नहीं उससे भी ज्यादा हो गई बधाई :)
ReplyDeleteशुक्रिया
ReplyDeleteजावेद रसूल भी आजकल कविता सुना रहा है सुना गया है !
ReplyDeleteवाह
ReplyDelete