Sunday, December 8, 2013

तुम्हारी तस्वीर

बार बार देखता हूं तुम्हारी तस्वीर
लिख नहीं पा रहा हूं कोई काव्यमय तहरीर
करता हूं कोशिस लिखने की कविता जब भी
काली घटा सी जुल्फों में उलझ जाते शब्द तभी
उनमें घिरे गोरवर्ण मुख की मुस्कान
लगती किसी नवोदित सूरज समान
चकित हिरणी सी अनंत को भेदते नयन
दिखाते हैं जज़बा तलाशने के नये उपवन
उन्नत उरोजों से तालमेल बैठाता गिटार
दे रहा हो जैसे उन्हें एक नया आकार
थिरकती उंगलियां तारों पर गिटार के
गढ़ रही हों राग जैसे किसी सुंदर संसार के
करता है मन करने को असीम सघन प्यार
कर रश्म-ओ-रिवाज़ और उम्र की सीमा पार

हा हा यह तो कविता हो गई

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