Wednesday, August 7, 2019

लल्ला पुराण 247 (कश्मीरी पंडित)

दुनिया के तमाम अन्य देशों की तरह भारत में भी वामपंथ हाशिए की ताकत बन गया है लेकिन वाम का विचार या वाम शब्द का ही शासक वर्ग के भोंपुओं के लिए दुःस्वप्नबन जाता है। वे बात-बेबात लेनिन, स्टालिन, माओ के भूतों से प्रताड़ित हो अभुआने लगते हैं। सोसल मीडिया में लिखी बात का खंडन-मंडन की बजाय जो नहीं लिखा है, उसका हिसाब मांगने लगते हैं। ऐसे ही एकससज्जन ने बिना संदर्भ किसी और चर्चा में सवाल कर दिया मैं कश्मीरी पंडितों पर क्यों नहीं लिखता, उनका जवाब:

यह भी पुराना रटा-रटाया भजन है। पंडितो पर बहुत लिखा हूं, दूसरों से लेखन का हिसाब मांगने की बजाय खुद भी कभी कुछ लिखा करो, कोशिस से ही लिखना आएगा। हमारी जनहस्तक्षेप की रिपोर्ट (2011) में एक पूरा खंड कश्मीरी पंडितों पर है। घाटी के पंडित संघ (लाल बाग में व्यापारी) संजय काचरू का लंबा इंटरविव है। बहुत से पंडित मेरे मित्र हैं। रिपोर्ट पहले चुंगी पर शेयर किया था, फिर करूंगा। हमने लिखा है कि पंडितों की समस्या के समाधान के बिना कश्मीर की समस्या का कारगर समाधान नहीं हो सकता। लेकिन तुम पढ़ते तो हो नहीं, मेरा नाम देखते ही वामपंथ के भूत से पीड़ित हो जाते हो। तुमने कितना लिखा है या पंडित पंडित भजन गाने के अलावा क्या किया है? कभी कभी दूसरों से यह सवाल करने की बजाय इस पर क्यों नहीं लिखा? जो लिखा है उसका ही विश्लेषण कर लिया करो। शुभ रात्रि। मैं बुजुर्ग आदमी हूं समय कम है काम ज्यादा, मेरा ज्यादा समय बर्बाद मत किया करो।

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