मेरी 2 बहनों में बड़ी बहन मुझसे 12 साल छोटी है और दूसरी उससे 2 साल छोटी। बच्चों के पास जो नहीं होता उसकी चाहत तेज होती है। मुझे जब पता चला तो मैं घर से 7-8 किमी दूर मिडिल स्कूल में छमाही परीक्षा दे रहा था। जल्दी जल्दी खतम किया दौड़ते हुए घर आया लेकिन दूर से ही देखा क्योंकि उन दिनों बच्चे छट्ठ (छठें दिन) के पहले सौर (प्रसवगृह) से बाहर नहीं आ सकते थे। पूर्वी उप्र के गांवों में रक्षाबंधन का प्रचलन नहीं था, शहरों में था। राखी के आस-पास कोई त्योहार होता था जिसमें घर की लड़कियां कान पर जरई (आंगन के कोने में, तुलसी की क्यारी में उगाया जौ का पौधा) रखती थीं और उपहार पाती थीं। मैं जब हाई स्कूल में शहर (जौनपुर) पढ़ने गया तो राखी के त्योहार का पता चला और बहनों से बंधवाने के लिए राखी और खर्च के पैसे से बचाकर उनके लिए फ्राक लेकर आया। हम-उम्र लड़कों ने मेरे शहरी हो जाने को लेकर काफी मजाक बनाया था
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