Saturday, August 17, 2019

मार्क्सवाद 179 (सामुदायिक संगठन)

Ravindra Patwal पारंपरिक ग्रामीण समाजों में सामूहिक प्रयास की अनिवार्यता/आवश्यकता के तहत पारस्परिक सहायता समूहों की तर्ज पर ही सोवियत रूसी ग्रामीण समाज के पारस्परिक सहायता समूह थे। कहां पढ़ा था, याद नहीं, मार्क्स ने कहा था कि यदि रूस में क्रांति आती है तो सोवियत को कम्यून निर्माण का आधार बनाया जा सकता है। क्रांतिकारी दिनों में पीटर्सबर्ग की सोवियत ऑफ सोल्जर्स एंड वर्कर्स सोविय व्यवस्था का क्रांतिकारी आधुनिकीकरण था। माओ ने चीन में ग्रामीण कम्यूनों का गठन वहां के पारस्परिक सहयोग व्यवस्था को विकसित कर किया था। जन असंतोष के संदर्भ में जमीन-रोटी-शांति के बोलसेविक नारे ने सोवियतों को सक्रिय करने में उत्प्रेरक का काम किया था। सामाजिक-आर्थिक संबंधों के पूंजीवादीकरण (आधुनिकीकरण) के मौजूदा संदर्भ में सोवियत की तर्ज पर सामुदायिक संगठनों का निर्माण अप्रासंगिक सा हो गया है। RWA या पंचायतों के जनवादीकरण के लिए protracted राजनैतिक अभियान की जरूरत है, जिसके भौतिक-बौद्धिक संसाधन फिलहाल दिख नहीं रहे हैं। अपने सीमित संसाधनों में फिलहाल हम एक बौद्धिक समूह बनाकर वैचारिकी का काम कर सकते हैं और प्रचार-प्रसार के सीमित साधन-संसाधनों से सामाजिक चेतना के जनवादीकरण (radicalization) में अपना सीमित योगदान दे सकते हैं। शंकर गुहा नियोगी छत्तीसगढ़ तक अपने आंदोलन के सीमित रहने पर कहते थे कि जिस तरह छोटी-छोटी नदियां मिलकर महा नदी का निर्माण करती हैं उसी तरह छोटे-छोटे सुंदर छत्तीसगढ़ मिलकर सुंदर भारत बनाएंगे। फिलहाल तो वह छोटी नदी भी सूख सी गयी है। फिर से छोटी-छोटी नदियों को सजला बनाने की जरूरत है।

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