क्या करना है? इस पर बिंदुवार बहस के लिए जरूरी है कि हम पहले रेखांकित करें कि क्या समस्याएं हैं? पहली समस्या जो कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना से ही है वह है राष्ट्रवाद की। पूंजी का कोई राष्ट्र नहीं होता या यों कहें कि अपने उद्भव से ही पूंजी का चरित्र अंतर्राष्ट्रीय रहा है, आज की शब्दावली में भूमंडलीय रहा है। इसलिए मजदूर का भी कोई राष्ट्र नहीं होता, लेकिन दमन राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय औजारों से होता है इसलिए प्रतिरोध भी राष्ट्र-राज्य की सीमाओं में होना पड़ेगा। 2019 का चुनाव पुलवामा और बालाकोट के प्रायोजन से आरयसयस प्रतिष्ठान ने राष्ट्रवाद के मुद्दे पर लड़ा-जीता। राष्ट्रवाद की स्पष्ट परिभाषा के अभाव में कुछ भी राष्ट्रवाद हो जाता है। जनवरी 2018 का समयांतर राष्ट्रवाद पर है जिसमें इसके विभिन्न पहलुओं पर 14 लेख हैं। मैं नीचे अपने लेख का लिंक दे रहा हूं। एक संवैधानिक लोकतंत्र में संविधान में निष्ठा ही राष्ट्रवाद है, लेकिन सरकार तथा संघ के अनुषांगिक संगठन संविधान की ऐसी-तैसी करते हुए जय श्रीराम राष्ट्रवाद फैला रहे हैं। हमारे सामने एक विकट समस्या है किस तरह लोगों में मिथ्या राष्ट्रवाद की भावना को खत्म कर उन्हें सही राष्ट्रवाद में शिक्षित किया जा सके। इसीसे जुड़ी दूसरी, तीसरी समस्याएं सांप्रदायिकता और जातिवाद की हैं, जिन पर बाद में लिखूंगा।
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