Thursday, August 8, 2019

मॉबलिंचिंग: बुद्धिजीवी की भूमिका का सवाल


समयांतर, अगस्त 2019

मॉबलिंचिंग
बुद्धिजीवी की भूमिका का सवाल
ईश मिश्र

28 जुलाई 2019 को त्तर प्रदेश के चंदौली में एक 17 साल के मुसलमान लड़के को  कुछ लोगों ने मिट्टी का तेल छिड़क कर आग के हवाले कर दिया। 60% जली हालत में उसकी बनारस के कबीर चौरा अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गयी। 27 जुलाई 2019 को उत्तर प्रदेश के ही अमेठी में भारतीय सेना के एक रिटायर्ड मुसलमान अफसर की में घुस कर पीट पीट कर हत्या कर दी गई। सुविदित है कि झारखंड में तबरेज को पकड़कर रात भर पीट पीट कर मार डाला गया था, जिसका वीडियो बनाकर सोसल मीडिया पर वायरल किया गया। मोतीहारी में 2-3 लोगों को भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला। मोदी के नेतृत्व में भाजपा के केंद्र में सत्तासीन होने के बाद 2015 में गोमांस रखने की अफवाह उड़ाकर दादरी में अखलाक की भीड़-हत्या के बाद शुरू हुआ, मुसलमानों और दलितों की मॉब-लिंचिंग का सिलसिला खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। 2019 में मोदी के दुबारा सत्ता में आने के बाद यह सिलसिला और भी आक्रामक रुख अख्तियार करता जा रहा है।  
तेलंगाना के भाजपा विधायक, राजा सिंह ने बयान दिया है कि जब तक गाय को राष्ट्र-माता नहीं घोषित किया जाता, गोरक्षा कार्यक्रम के तहत मॉब लिंचिंग चलता रहेगा। 2015 सितंबर में अखलाक की मॉब लिंचिंग के जांच अधिकारी रहे सौरभ चौहान की बजरंग दल के नेतृत्व में मॉब लिंचिंग कर दी गयी। लिंचिंग के सिलसिले को देखते हुए लगता है भारत में जनतंत्र लिंचतंत्र बन गया है। अखलाक की हत्या को तत्कालीन संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने हादसा बताया था तथा उस हत्या के  जांच अधिकारी सौरभ की हत्या को उप्र के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने हादसा बताया। गौरतलब है कि अखलाक की लिंचिंग के आरोपियों में एक की जब जेल में मौत हो गयी तो भाजपा नेतृत्व के तत्वधान में उसके शव को तिरंगे में लपेट कर अंतिम संस्कार किया गया। कहने का मतलब लिंचिंग कार्यक्रम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सरकार और संघ के संरक्षण में चल रहा है। 2015 से जारी लिंचिंग के आंकड़ों में जाने की गुंजाइश यहां नहीं है, सुविदित है कि झाखंड में पशुव्यापारी की लिंचिंग के आरोपियों के जमानत पर छूटने पर केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने उनका लड्डू और फूल-माला से स्वागत किया था। दादरी से लेकर अलवर तथा उप्र, बिहार, झारखंड, मप्र आदि प्रांतों के विभिन्न जगहों पर लिंचिंग की घटनाओं के अलावा पूरे देश में लिंचिंग का खौफ फैला हुआ है। इस लेख का मकसद लिंचिंग की विभिन्न घटनाओं का वर्णन नहीं है बल्कि इस लिंच तंत्र के विरोधी बुद्धिजीवियों और कलाकारों के विरुद्ध सरकार समर्थक कलाकारों के प्रति-आख्यान (काउंटर नरेटिव) का संज्ञान लेना है। सोसल मीडिया में जैसे ही किसी अपराध या अत्याचार की घटना की बात कीजिए सरकार समर्थक एक प्रति-आख्यान लेकर आ जाएंगे, पाकिस्तान में ऐसा हुआ या कांग्रेस राज में ऐसा होता था उसकी बात क्यों नहीं करते?        
श्याम बेनेगल, अडूर गोपालकृष्णन्, अपर्णा सेन समेत 49 जाने-माने लोगों ने पीएम को लिंचिंग के विरुद्ध समुचित कदम उठाने के आग्रह के साथ पत्र लिखा कि देश में लगातार बढ़ रही 'मॉब लिंचिंग' की घटनाएँ रोकी जानी चाहिए। उन्होंने  इस माहौल पर चिंता जाहिर की कि 'जय श्रीराम' एक उंमादी, हिंसक युद्धघोष बनता जा रहा है। जवाब में 61 तथाकथित कलाकारों का का पत्र आ गया कि यह देश को बदनाम करने की साजिश है। समग्रता की बजाय चुन चुन कर मुद्दे उठाए जा रहे हैं। जिन्हें मॉब लिंचिंग का विरोध साजिश लगता है उन्हें एक सेवा निवृत्त सैन्य अधिकारी की लिंचिंग से कोई परेशानी कैसे हो सकती है? मोदी राज के समर्थक प्रसून जोशी, कंगना रानावत और तमाम हत्या-प्रेमियों को इससे खुशी ही होगी। ये लिंचिंग-प्रेमी लोग इस पशुता में देश का गौरव देख रहे हैं। इन लिंचिंग प्रेमियों ने लिंचिंग विरोधी कलाकार-बुद्धिजीवियों को 'असहिष्णुता गैंग' का सदस्य बताते हुए, प्रधान मंत्री और सरकार की नीतियों का पुरजोर समर्थन किया और पूछा 'तब कहाँ थे जब यह हो रहा था या वह हो रहा था.. ...' !
जिस बात के जवाब में जो बातें कही गयीं, उसका मतलब यह निकलता है कि, (i) पहले जो-जो भी हुआ, मॉब लिंचिंग उसी का जवाब है और यह सर्वथा उचित है, (ii) मॉब लिंचिंग का विरोध करना इस सरकार का विरोध करना है और समर्थन करना इस सरकार का समर्थन करना है,(iii) मॉब लिंचिंग सरकार की नीति है, या उसे सरकार का समर्थन प्राप्त है, (iv) मॉब लिंचिंग का समर्थन करना इस सरकार का समर्थक होने के लिए ज़रूरी है I
49 कलाकार-बुद्धिजीवियों का विरोध करने वाले 62  में प्रसून जोशी भी शामिल हैं जो अति-भावुकतापूर्ण रूमानी गाने लिखने के साथ ही देशी-विदेशी कारपोरेट घरानों के लिए जनता को यह भी सन्देश देते रहे हैं कि 'ठंडा मतलब कोकाकोला !' फासीवाद समर्थक कला में एक किस्म का अतार्किक भावावेग होता है, अतिशय रूमानी भावुकता होती है, एक किस्म का अतीत-राग या नौस्टेल्जिया होता है, मेलोड्रामा होता है और ये सारी चीज़ें मध्य वर्ग को बहुत अपील करती हैं I इटली और जर्मनी में भी ऐसे बहुत सारे लेखक-कलाकार थे जो गत शताब्दी के तीसरे-चौथे दशक में फासिस्टों और नात्सियों के अंध-समर्थक और प्रचारक बन गए थे I कुछ ने अपनी चमड़ी बचाने या तात्कालिक लाभ के लिए भी यह सब कुछ किया I इतिहास ने उन्हें अंततः हत्यारों के जुलूस में बत्ती-बाजा लेकर चलने की घृणास्पद हरक़त के लिए सज़ा मुक़र्रर की। आज के इटली और जर्मनी में फासीवाद समर्थक कलाकारों के वंशज अपनी पहचान तक छिपाकर शर्मिन्दगी से जीते हैं। ये लोग समझते हैं कि हिन्दुत्ववादी फासीवाद यह दौर चिर काल तक जारी रहेगा। हिटलर और मुसोलिनी के समर्थक भी ऐसा ही समझते थे। चौराहे पर उल्टा लटका दिए जाने से चन्द वर्षों पहले तक मुसोलिनी, और अपने बंकर में लाल सेना से घिर कर  खुद को गोली मार लेने से दो वर्षों पहले तक हिटलर भी यही सोचते थे कि उनका राज अनंतकाल तक चलेगा। लेकिन बर्बरता का मज़बूत से मज़बूत साम्राज्य भी अल्पायु ही होता है। आज अंधेरा चाहे जितना घटाटोप हो, खत्म ही होगा। जिस दिन ये फासीवादी तख्त से नीचे उतारे जायेंगे, ये सरकारी भांट हिकारत से देखे जाएंगे।
     पहला पत्र जहां सरकार को उसके कानून व्यवस्था बनाए रखने तथा लोगों के जान-माल की सुरक्षा के कर्तव्य की याद दिलाता है तो दूसरा पत्र इनके सजग नागरिक के इस कर्तव्य के विरोध में सरकार का महिमामंडन तथा प्रकारांतर से लिंचतंत्र का समर्थन करता है। गौरतलब है कि 2015-16 में जब दाभोलकर, पंसारे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश जैसे तर्कशील बुद्धिजीवियों की हत्याओं तथा अखलाक की मॉब-लिंचिंग के विरुद्ध लेखकों ने पुरस्कार वापस कर विरोध जाहिर किया था तब भी अनुपम खेर जैसे दरबारी कलाकारों के गिरोह ने जुलूस निकालकर प्रति-आख्यान पेश किया था। श्याम बेनेगल, शोभा मुद्गल, सुमित सरकार आदि 49 जानी-मानी हस्तियों  का पत्र मुसलमानों, दलितों और अन्य अल्पसंख्यकों की लिंचिंग की ओर प्रधानमंत्री का ध्यानाकर्षण करता है और उनसे साम्प्रदायिक-सामुदायिक नफ़रत से प्रेरित अपराधों के ख़िलाफ़ कठोर और निर्णायक क़दम उठाने की अपील करता है। प्रशून जोशी, कंगना रानावत आदि 62 लोगों का प्रति-आख्यान मॉब-लिंचिंग की घटनाओं को झूठा आख्यानकरार देता है और टुकड़े-टुकड़े गैंग किस्म की भाजपा-आरएसएस की भाषा का इस्तेमाल करते हुए इन्हें सरकार विरोधी यानि विकास-विरोधी साबित करने की कोशिस करता है|
हमें 49 जिम्मेदार बुद्धिजीवी-कलाकारों के व्यक्त सरोकारों के पक्ष में जनमत तैयार करना चाहिए और सत्ता के  चरणामृत की चाहत वाले बुद्धिजीवी-कलाकारों के आवरण में हत्या-सत्ता-समर्थकों की पहचान कर निंदा करनी चाहिए।
30.07.2019




3 comments:

  1. Have you ever thought about creating an ebook or guest authoring on other websites?
    I have a blog based upon on the same information you discuss and
    would love to have you share some stories/information. I know my
    subscribers would appreciate your work. If you are even remotely interested, feel free to shoot me
    an email.

    ReplyDelete
  2. I was suggested this web site by way of my cousin.
    I am no longer sure whether or not this post is written by means of him as nobody else realize such distinctive
    approximately my trouble. You are wonderful! Thanks!

    ReplyDelete
  3. Bất động sản 24h: Xu hướng đầu tư du lịch nghỉ …
    Xu hướng mới và cơ hội đầu tư bất động sản nghỉ dưỡng nửa cuối

    ReplyDelete