Tuesday, August 27, 2019

लल्ला पुराण 266 (बाभन से इंसान)

एक ग्रुप में वामपंथ के भूत से पीड़त एक सज्जन हर बात में वामी-कामी करते रहते हैं, उन्होंने कहा धर्म मजहब से अलग होता है, फर्क पूछने पर कुछ संस्कृत उद्धरण देने लगे। पूछा वामी कौन है बोले जो गाली देता है, वे मुझे माना करने पर विप्रवर संबोधन का इस्तेमाल करते हैं, उनके एक कमेंट पर कमेंटः

मुझे क्या गाली लगती है वह आप नहीं तय करेंगे।मैं आपको बता चुका हूं विप्रवर संबोधन मुझे गाली लगता है, लेकिन आदतन आप गाली-गलोौच से बाज नहीं आते। आपने धर्म और मजहब में अंतर बताने को कहा और संस्कृत में कुछ बताने लगे, जैसे पंडित ग्रामीणों को संस्कृत में कथा सुनाता है। मैं तो आप को पढ़ा-लिखा व्यक्ति समझता था आपमें तो सामान्य शिष्टता ही नहीं है। मैं कई बार बता चुका हूं कि बाभन से इंसान बनना, जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से ऊपर उठकर विवेक सम्मत इंसानी अस्मिता बनाने का मुहावरा है। इसमें भूमिहार, अहीर, चमार ... हिंदू, मुसलमान से इंसान बनना भी शामिल है। आपसे भी आग्रह करूंगा कि बाभन से इंसान बन जाइए क्योंकि विवेक ही इंसान को पशुकुल से अलग करता है इसे निलंबित कर मनुष्य दो पावों पर चलने के बावजूद पशुकुल में वापसी कर लेता है। शुभकामना।

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