आर्यों को इंडोयूरोपियन भाषाई समूह की प्रजाति माना जाता है। तिलक ऋगवैदिक आर्यों के पूर्वजों का मुल स्थान उत्तरी ध्रुव मानते हैं। राहुल सांकृत्यायन (वोल्गा से गंगा तक) उनका यात्रापथ वोल्गा घाटी से केंद्रीय एसिया होते हुए इरान-अफगानिस्तान के रास्ते सिंधु घाटी तक पहुंचे। फारसी और संस्कृत भाषाओं तथा इरानी और वैदिक आर्यों के वंशजों के सांस्कृतिक कर्मकांडों में काफी समानता पाई जाती है। अस्थाई गांवों में रहने वाले पशुपालक समूहों के आगमन के समय सिंधु घाटी में शहरी सभ्यता थी, राहुल जी उन्हें पणि कहते हैं। ऋगवैदिक चरवाहे शहरी जीवन को हेय दृष्टि से देखते थे और अपने बच्चों को पणियों से मेलजोल से रोकते थे। आर्य कबीलों (कुटुंबों) के नेता को इंद्र कहा जाता था। इंद्र को पुरंदर (किला तोड़ने वाला) भी कहा जाता था। वैदिक आर्य सिंधु तथा सरस्वती के बीच पंजाब की 5 नदियों की घाटी समेत सप्तसैंधव (सात नदियों का प्रदेश) क्षेत्र में रहते थे। सरस्वती सूखने के बाद वे पूरब बढ़े और गंगा की घाटी के क्षेत्र में बसते बढ़ते गए। यहां के बासिंदे कालांतर में इनमें विलीन हो गए या दुरूह वनक्षेत्रों में चले गए। जनजाति और आदिवासी शब्द अंग्रेजी राज के बाद की उत्पत्ति हैं। बाकी बादमें। (यह किताब 44-45 साल पहले पढ़ा था, दुबारा पढ़ना टलता जा रहा है।
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