Wednesday, August 7, 2019

मार्क्सवाद 178 (पार्टी और क्रांति)

जी बिना पार्टी के क्रांतिकारी बौद्धिकता संभव है, मार्क्स, एंगेल्स इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। लेकिन वे सदा संगठन बनाने के प्रयास में रहे। संगठन के बिना क्रांतिकारी बौद्धिकता संभव है लेकिन क्रांतिकारी आंदोलनों का यानि बदलाव का हिस्सा बनना नहीं। 1992 मे हम कुछ दलछुट और कुछ बेदल मार्क्सवादियों ने महसूस किया कि किसी पार्टी में हो नहीं सकते, नई पार्टी बनाने की औकात नहीं थी तथा संगठन के बिना कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। हमने एक मानवाधिकार संगठन 'जनहस्तक्षेप' का गठन किया। हम आंदोलन की पहली पार्टी नहीं हैं, दूसरी, औकात होती तो हम पहली पार्टी बनते। हम आंदोलन करते नहीं आंदोलनों की मदद करते हैं। दादरी, कांधला, मुजफ्परनगर, कैमूर, काश्मीर .... पर हमारी रिपोर्ट्स सैकड़ों वेब और प्रिंट मीडिया ने कैरी किया। दादरी की हमारी रिपोर्ट सबने क्रेडिट देके छापा, टाइम्स ऑफ इंडिया ने बिना क्रेडिट के। हम तत्कालीन सरोकार के मुद्दों पर कार्यक्रम करते रहते हैं। 20 अगस्त को गांधी पीस फाउंडेसन में कश्मीर पर हम मीटिंग आयोजित कर रहे हैं। जो साथी दिल्ली में हैं, आमंत्रित हैं। हम जितना कर पा रहे हैं, संतुष्ट नहीं है, लगातार औकात बढ़ाने की को शिस में हैं। तीन सवालों के जवाब पूरे हुए। प्रतिप्रश्न का स्वागत है।

6.08.2018

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