कोशिस तो की जा सकती है। 13 साल पहले मैं हॉस्टल का वार्डन बना, मेरे पहले वाला वार्डन अक्सर पुलिस बुलाता था, मैं सोच कर आया था कि जिस दिन पुलिस बुलाना हुआ मैं अपना सामान बांधूगा। हमारे बच्चे अपराधी तो हैं नहीं। अगर स्टूडेंट्स के लिए पुलिस बुलाना पड़े तो आप शिक्षक नहीं हैं। मेरी जेएनयू की ट्रेनिंग। हमने कई नई चीजें शुरू की। मेरे पहले वाले वार्डन ने कहा कि गधों को रगड़ रगड़ के घोड़ा नहीं बनाया जा सकता। मैंने कहा मेरा काम है रगड़ना, क्या पता बन ही जाएं। हॉस्टल के बच्चों के साथ 3 साल खूबसूरत साल थे। सब बेहतर इंसान बन कर निकले और प्यार से वे दिन याद करते हैं, मैं भी।
Saturday, August 31, 2019
Friday, August 30, 2019
लल्ला पुराण 268 (वैदिक आर्य)
आर्यों को इंडोयूरोपियन भाषाई समूह की प्रजाति माना जाता है। तिलक ऋगवैदिक आर्यों के पूर्वजों का मुल स्थान उत्तरी ध्रुव मानते हैं। राहुल सांकृत्यायन (वोल्गा से गंगा तक) उनका यात्रापथ वोल्गा घाटी से केंद्रीय एसिया होते हुए इरान-अफगानिस्तान के रास्ते सिंधु घाटी तक पहुंचे। फारसी और संस्कृत भाषाओं तथा इरानी और वैदिक आर्यों के वंशजों के सांस्कृतिक कर्मकांडों में काफी समानता पाई जाती है। अस्थाई गांवों में रहने वाले पशुपालक समूहों के आगमन के समय सिंधु घाटी में शहरी सभ्यता थी, राहुल जी उन्हें पणि कहते हैं। ऋगवैदिक चरवाहे शहरी जीवन को हेय दृष्टि से देखते थे और अपने बच्चों को पणियों से मेलजोल से रोकते थे। आर्य कबीलों (कुटुंबों) के नेता को इंद्र कहा जाता था। इंद्र को पुरंदर (किला तोड़ने वाला) भी कहा जाता था। वैदिक आर्य सिंधु तथा सरस्वती के बीच पंजाब की 5 नदियों की घाटी समेत सप्तसैंधव (सात नदियों का प्रदेश) क्षेत्र में रहते थे। सरस्वती सूखने के बाद वे पूरब बढ़े और गंगा की घाटी के क्षेत्र में बसते बढ़ते गए। यहां के बासिंदे कालांतर में इनमें विलीन हो गए या दुरूह वनक्षेत्रों में चले गए। जनजाति और आदिवासी शब्द अंग्रेजी राज के बाद की उत्पत्ति हैं। बाकी बादमें। (यह किताब 44-45 साल पहले पढ़ा था, दुबारा पढ़ना टलता जा रहा है।
कौन हूड़, कौन कुषाण,
कौन हूड़, कौन कुषाण, कौन मंगोल, कौन मूलनिवासी है
जो भी इस भूखंड पर रहता वह महज एक भारतवासी है
हिंदू-मुस्लिम, बाभन-अहिर-दलित निरा बनावटी पहचान है
इस धरती का हर दोपाया एक संवेदी-विवेकशील इंसान है
(ईमि: 30.08.2019)
मार्क्सवाद 182 (चिंतन का कर्म)
चिंतन एक व्यवहारिक कर्म है, विचार व्यवहार (वस्तु) से उत्पन्न होते हैं, विचार से वस्तु (व्यवहार) नहीं। यथार्थ की संपूर्णता दोनों की द्वंद्वात्मक एकता से बनती है। दोनों अलग-अलग संपूर्णता के अंश हैं। न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम से सेब नहीं गिरने लगे बल्कि सेबों के गिरने की व्यवहारिक क्रिया ने गुरुकृत्वाकर्षण के नियम को जन्म दिया। सेबों के गिरने की व्यवहारिक क्रिया केवल 'क्या?' प्रश्न का उत्तर देती है, क्यों और कैसे, कितना आदि प्रशनों का उत्तर न्यूटन का सिद्धांत देता है। दोनों मिलकर यथार्थ की संपूर्णता का निर्माण करते हैं।
Thursday, August 29, 2019
लल्ला पुराण 267 (भगत सिंह)
भगत सिंह ने नास्तिक वाले लेख के अलावा और बहुत से लेख लिखे थे, हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के घोषणा पत्र में सर्वहारा की तानाशाही की बात की है। भगत सिंह के कई संकलन छप चुके हैं कृपया पढ़ लें और गोएबेल्स किस्म की अफवाहें न फैलाएं कि 'मैं नास्तिक क्यों हूं' किसी वामपंथी ने भगत सिंह के नाम से लिख कर छपवा दिया। भगत सिंह एक क्रांतिकारी बुद्धिजीवी थे। 1926 में किरती किसान में छपा अछूत समस्या पर ही उनका लेख पढ़ लें।
Tuesday, August 27, 2019
लल्ला पुराण 266 (बाभन से इंसान)
एक ग्रुप में वामपंथ के भूत से पीड़त एक सज्जन हर बात में वामी-कामी करते रहते हैं, उन्होंने कहा धर्म मजहब से अलग होता है, फर्क पूछने पर कुछ संस्कृत उद्धरण देने लगे। पूछा वामी कौन है बोले जो गाली देता है, वे मुझे माना करने पर विप्रवर संबोधन का इस्तेमाल करते हैं, उनके एक कमेंट पर कमेंटः
मुझे क्या गाली लगती है वह आप नहीं तय करेंगे।मैं आपको बता चुका हूं विप्रवर संबोधन मुझे गाली लगता है, लेकिन आदतन आप गाली-गलोौच से बाज नहीं आते। आपने धर्म और मजहब में अंतर बताने को कहा और संस्कृत में कुछ बताने लगे, जैसे पंडित ग्रामीणों को संस्कृत में कथा सुनाता है। मैं तो आप को पढ़ा-लिखा व्यक्ति समझता था आपमें तो सामान्य शिष्टता ही नहीं है। मैं कई बार बता चुका हूं कि बाभन से इंसान बनना, जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से ऊपर उठकर विवेक सम्मत इंसानी अस्मिता बनाने का मुहावरा है। इसमें भूमिहार, अहीर, चमार ... हिंदू, मुसलमान से इंसान बनना भी शामिल है। आपसे भी आग्रह करूंगा कि बाभन से इंसान बन जाइए क्योंकि विवेक ही इंसान को पशुकुल से अलग करता है इसे निलंबित कर मनुष्य दो पावों पर चलने के बावजूद पशुकुल में वापसी कर लेता है। शुभकामना।
फुटनोट 236 (फासीवाद)
जब बहुसंख्यक के ऊपर अल्पसंख्यक के खतरे का हव्वा खड़ा किया जाता है तो वह फासीवाद होता है. मैंने एक अंग्रेजी में आरयसयस-जमातेइस्लामी पर लेख पोस्ट किया है. सांप्रदायिकता अंग्रेजों ने फैलाई. मुस्लिम आक्रांता के रूप में प्रवेश किए लेकिन वह जमाना था जब तलवार से सलतनतें कायम होती थीं, अशोक-समुद्रगुप्त; गोरी-बाबर; ... . क्या आप समुद्रगुप्त के अफगानिस्तान तक सीमा विस्तार के समर्थक हैं? उतना ही जायज मुस्लिम आक्रांताओं का सीमा विस्तार या राज्य की स्थापना है. अंग्रेजों की तरह लूट कर ले नहीं गये यहीं की सर-जमीं में रहे-खपे. मुगल काल में ही भारत सोने की चिड़िया बना. नए शिल्प आए, तरबूज-खरबूज जैसी तमाम सब्जियो और फल की नई फसलें शुरू हुईं. लेकिन सवाल यह है कि छात्र धर्म वाले इस देश के रणबांकुरे क्या कर रहे थे? क्यों नादिरशाह जैसा कोई चरवाहा 200 घुड़सवारों के साथ पेशावर से बंगाल तक रौंद डालता है? जिस समाज में शस्त्र और शास्त्र का अधिकार एक अति-सूक्ष्म अल्पसंख्यकों तक सीमित हो; जो समाज अपने बहुसंख्यक कामगार समुदाय को जानवरों से भी बदतर मानता हो और शासक वर्ग आसक्त और ऐय्याश हो उस समाज को हर नादिरशाह रौंद सकता था. सांप्रदायिकता की नींव अंग्रेजों ने डाली और उसे हिंदुस्तानी एजेंट मिल गए.
27.08.2016
27.08.2016
आज का फैसला
आज का फैसला
दोस्तों!
आज मैंने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है
मानने की हिदायतें उम्र के खयाल की
और नसीहतें बुज़ुर्गियत के लिहाज की
तथा छोड़ने की अक्सर भूल जाने की आदत
कि बीस साल का मैं चालिस साल पहले था
जब भी कुछ भी कहता हूं
इन नसीहत-हिदायतों की हो जाती है भरमार
नसीहत-हिदायतें तब भी मिलती थीं
था जब दाढ़ी पर काला खिजाब
कहा जाता था तब करने को औरों की बुज़ुर्गी का लिहाज
चढ़ना शुरू हुआ दाढ़ी पर जब से सफेद खिजाब
उलट गई नसीहत-हिदायतों की धार
मिलने लगी अपनी बुजुर्गियत के लिहाज की नसीहतें बेहिसाब
नहीं मानता था इन्हें तब
जैसे नहीं माना अबतक अब
लेकिन दोस्तों!
आज मैंने ऐतिहासिक फैसला लिया है
मानने की ये नसीहत-हिदायतें
अब की तुरंत प्रभाव से और तब की बैक-डेट से
नहीं कहूंगा गोरक्षा के नाम पर उत्पातियों को आतंकवादी
आतंकवादी को आतंकवादी कहना किसी को बुरा लग सकता है
नहीं कहूंगा रोहित की खुदकुशी को शहादत
शहीद को शहीद कहना भी तो किसी को बुरा लग सकता है
नहीं कहूंगा बंदेमातरम् की हुंकार के साथ असहमति पर हिंसक हमले को लंपटता
लंपट को लंपट कहना भी तो किसी को बुरा लग सकता है
न ही कहूंगा संविधान की धज्जियां उड़ाने वालों को देशद्रोही
देशद्रोही को देशद्रोही कहना भी तो किसी को बुरा लग सकता है
न ही संविधान के रखवालों को देशभक्त कहूंगा
देशभक्तों को देशभक्त कहना भी तो किसी को बुरा लग सकता है
बुरा को बुरा न कहूंगा न ही अच्छे को अच्छा
अच्छे को अच्छा कहना भी तो
किसी को बुरा लग सकता है
कोई बात नहीं कहूंगा जो किसी को बुरी लगे
अच्छी लगने वाली बात के साथ भी नहीं करूंगा पक्षपात
वह भी तो किसी बुरी लग सकती है
आज मैँ सिर्फ वही कहूंगा
जिससे किसी को कोई फर्क नह पड़े
न ही जिसका कोई मतलब हो
आज मैंने फैसला लिया है
करने का ख्याल उम्र का
और रखने का बुज़ुर्गियत का लिहाज
लेकिन यह फैसला आज का है
कल की कोई गारंटी नहीं
क्योंकि परिवर्तन के सिवा नहीं होता कोई साश्वत सत्य
हो सकता है कल को मुझे फिर से लगने लगे
कि उम्र के चालिस साल के फर्क को भूल जाना
वक्त से पीछे नहीं बल्कि आगे होना हो
और मैं रद्द कर दूं यह फैसला
(बस ऐसे ही एक और बौद्धिक आवारागी)
(ईमिः02.12.2015)
Monday, August 26, 2019
मार्क्सवाद 181 (मंदी)
1930 की मंदी का मुख्य कारण था राज्य के हस्तक्षेप से स्वतंत्र निजी मुनाफे के सिद्धांत पर आधारित एडम स्मिथ के राजनैतिक अर्थशास्त्र के फरेब का पर्दाफास। उसका कहना था कि ज्यादा-से-ज्यादा निजी मुनाफे से ज्याद-से-ज्यादा सार्वजनिक हित होगा। ज्यादा से ज्यादा मुनाफा ज्यादा-से-ज्यादा लूट और धोखा-धड़ी से कमाया जाता है, जन-कल्याण से नहीं। मजदूर मजलूम होता गया, बेरोजगारी बढ़ती गयी, लोगों की क्रयशक्ति घटती गयी, उत्पादन घटता गया बेरोजगारी और बढ़ती गयी....., केंस ने एडमस्मिथ को हटाया और रूजवोल्ट ने न्यूडील लागू किया, सार्वजनिक उपक्रम शुरू हुे राज्य कल्याणकारी बनकर अर्थनीति का नियंता बना और पूंजीवाद धराशायी होने से बच गया।
विस्तार से फिर लिखूंगा। औद्योगिक देशों के 1930 दशक के संकट के सारे लक्षण हमारे मुल्क की आर्थिक हालात में दिख रहे हैं, वह संकट कल्याणकारी रीज्य से दूर किया गया, मौजूदा संकट कल्याणकारी राज्य के विघटन का परिणाम है।
Sunday, August 25, 2019
लल्ला पुराण 265 (परिवार नियोजन)
आबादी की समस्या की एक पोस्ट पर एक पढ़े-लिखे सज्जन ने लिखा परिवार नियोजन हिंदुओं पर लागू होता है, मुसलमानों पर नहीं, उस पर:
मेरे गांव में, मेरे हम उम्र मेरे खानदान के कई हैं जिनके 5 या 6 बच्चे हैं। मेरे चचेरे भाई की 4 बेटियों के बाद 2 बेटे हैं, लखनऊ विवि का एलएलबी पढ़ा है। लालू भी मुसलमान नहीं है, हमारी पिछली पीढ़ी की बात ही छोड़िए, हम 9 भाई-बहन थे।। दिमाग में भरा गोमाता का पवित्र गोबर लहमें हिंदू-मुसलमान से ऊपर उठने नहीं देता, आप अपने गांव में पता की जिए 2 से अधिक बच्चे वाले कितने हिंदू हैं कितने मुसलमान?
Saturday, August 24, 2019
मार्क्सवाद 180 (आरक्षणैैैैैैैैैैैैैैैैैैैैैैैैैैैैै)
अपनी ही एक साल पुरानी पोस्ट पर एक कमेंट पर कमेंट, सोचा दुबारा पोस्ट करूं:
अारक्षण शिक्षा के जनतांत्रिककरण में सकारात्मक भूमिका निभा रहा है जिसका असर प्रशासन-राजनीति पर पडना लाजमी है. शिक्षा में 100 फीसदी सवर्ण अारक्षण का अंत औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली का एक उपपरिणाम था जिसने जन्मना प्रतिभा का मिथक तोड़ दिया. शासक वर्ग की सुधारात्मक कार्रवाइयां ऐतिहासिक कारणों से संचित जनाक्रोष की धार को कुंद करने की रक्षात्मक कार्रवाइयां होती है. शिक्षा तथा शासन-प्रशासन एवं भ्रष्टाचार का लोकतंत्रीकरण और जातीय वर्चस्व की सैद्धांतिक समाप्ति इसके सकारात्मक उपपरिणाम हैं. अारक्षणवाद की राजनीति से वर्गीय लामबंदी में बिघ्न-बाधा इसका नकारात्क उपपरिणाम है. यह सुधार भी भक्तों के गले की हड्डी बना हुआ है. विश्वबैंक की योजना के तहत स्कूली शिक्षा की तरह उच्च शिक्षा को पूर्ण व्यावसायिक बनाने की नई शिक्षा नीति आरक्षण को निष्प्रभावी कर देगी. पैसा फेंको तमाशा देखो. संभावित वर्गीय ध्रुवीकरण इसका संभावित सकारात्मक उपपरिणाम है. आरक्षण को निष्प्रभावी होने से रोकने के लिए इस शिक्षानीति के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी व्यापक लामबंदी की जरूरत है.
Thursday, August 22, 2019
लल्ला पुराण 264 (स्टालिन का भूत)
Arvind Rai भूत-प्रेत मेरे पास नहीं फटकते तुम्हारे ऊपर स्टालिन का या वामपंथ का भूत सवार रहता है, अपना ध्यान दो वरना जिंदगी स्टालिन स्टालिन अभुआने में चली जाएगी, तुम्हारे(गोलवल्कर के) वैचारिक पूर्वज हिटलर ने तो स्टालिन के भूत से घबराकर बंकर में छिपकर खुद को गोली मार ली थी।
लल्ला पुराण 263 (स्टालिन का भूत)
Arvind Rai हर जगह पंजीरी खाकर भजन गाना जारी रखो, स्टालिन का भूत तुम्हें बर्बाद कर देगा। तुम्हारी ही तरह स्टालिन के भूत से प्रताड़ित एक हमारे समकालीन सीनियर हैं, रामाधीन सिंह उन्होंने स्टालिन से उस समय की सोवियत संघ की आबादी के 6 गुना लोगों को मरवा दिया प्रतिवाद करने पर रोजा लक्जंबर्ग को स्टालिन से घसीट घसीट कर मरवा दिया। माना कि विज्ञान के विद्यार्थी होने के नाते इतिहास से अनभिज्ञ हो और समाज की अवैज्ञानिक समझ है, फिर भी इतिहास पर ऐसे ही जो मन में आए मत बोल दिया करो।
लल्ला पुराण 262 (बाभन से इंसान)
Ashutosh Srivastava मैंने नहीं आपने ही कहा कि आपको जहालत बेहतर लगती है, मैंने तो मुबारकबादही दिया। मैं किसी की भावनाएं नहीं आहत करता अंधविश्वास कीआलोचना से किसी की भावना आहत हो तो उसका कुछ नहीं किया जा सकता। बाभन से इंसान बनना एक मुहावरा है जन्म की अस्मिता की प्रवृत्तियों से ऊपर उठकर विवेकशील इंसान की समानुभूतिक अस्मिता की। कौन कहां किस जाति-धर्म में पैदा हो गया वह एक संयोग भर है।
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