Wednesday, February 14, 2018

देश नहीं है ऩफरत का व्यापार

देश नहीं है ऩफरत का व्यापार
देश है देशवासियों से प्यार
देश है देशवासियों की जिंदगी
रोजगार है जिसकी वंदगी
देश नहीं है अंबानी की सेवा
देश है गरीब-मुफलिस की पीड़ा
देश नहीं है शब्दों की लफ्फाजी
या साहब के लिए सीटियाबाजी
देश है मुल्क का आवाम
जब से आया है मुल्क में यह राज
हर ऐरा-गैरा बन जाता है देश का सरताज
ऐसे जैसे देश में हो महज धर्मांध सियासत
जैसे यह देश है उसके के बाप की विरासत
ये दयनीय भक्त बाभन से इंसान नहीं बन पाते हैं
पंजीरी खाकर आजीवन भजन गाते रह जाते हैं
(ईमि: 15.02.2018)

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