जब मजदूर देता है
'आवाज दो हम एक हैं' का नारा
प्रतिध्वनियों से कंपित होता
अल्प्स से हिमालय तक का जहां सारा
जहां भी होता है
सत्ता के हथियारों से अत्याचार
चप्पे-चप्पे में गूंज उठते हैं
इंकिलाबी विचार
जिस दिन समझेगा मेहनतकश
पूंजी के छलावे की असलियत
ये लखटकिए शहंशाह हैं दरअसल
धनपशुओं की जरखरीद मिल्कियत
समझेगा वह गरीब वर्दीवाला भी एक दिन
सोचने के अधिकार के बदले मिवली वर्दी की हकीकत
नहीं बहाना है गरीब का लहू
किसी धनपशु के लिए
दिशा बंदूक की बदल जाएगी
बावर्दी और बेवर्दी मजदूर-एकता के लिए
धनपशुओं में मचेगी खलबली
भागेंगे बचाने जान
क्योंकि छोड़कर हरामखोरी
रोटी के लिए करना पड़ेगा काम
मजदूर-किसान के ऐसे राज्य को
मिला है समाजवाद का नाम
(ईमि: 22.02.2018)
(ईमि: 22.02.2018)
(शुक्रिया नहीद कलम को आवारगी के लिए उकसाने के लिए)
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