कोई बात बेबुनियाद नहीं होती
हक की लड़ा बेबात नहीं होती
नहीं आते अमूर्त विचार किसी निर्वात से
निकलते हैं वे वस्तुगत पर दृष्टिपात से
पाता है यथार्थ संपूर्णता दोनों के द्वंद्वात्मक संवाद से
न देती तुम ग़र एकता की आवाज
लगाता न मैं इंकिलाब जिंदाबाद
(ईमि: 24,02.2018)
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