Saturday, February 24, 2018

लल्ला पुराण 189 (सुख-दुख)

Laxman Tiwari Benaam सही कह रहे हैं, हर व्यक्ति के लिए सुख अलग अलग है, किसी को रसगुल्ला खाने में ज्यादा सुख मिलता है किसी को कविता लिखने में। खाओ-पियो-मस्त रहो का आनंद क्षणभंगुर होता है, अपने अंदर की संभावनाओं के सर्जनशील क्रियान्वयन का आनंद और अतीत की मुश्किल समय में भी नतमस्तक न होने के साहस की याद का सुख दूरगामी। कभी सुख-दुख पर अनुभवजन्य लेख लिखूंगा।

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