जिंदगी बोझ न बन जाये संभालो यारों
बोझिल समाज का बोझ उतारो यारों
दुनिया बदलने का संकल्प ले लो यारों
एक हो जाओ दुनिया के कामगारों
सत्ता की ताकत कितनी भी हो यारों
तुम्हारी ताकत से कमतर है कामगारों
जरूरी है संख्याबल को जनबल में बदलो
गौर से जालिम की चालों को समझे
छल-फरेब के बिछे जालों को समझो
बिखरी भीड़ को हरावल दल में बदलो
जिंदगी एक सुंदर उपहार है यारों
इसको इंकिलाबी रंगों से निखारो
जिंदगी का मकसद सर्जना यारों
रचो नए नारे जालिम को बेचैन करो
दुनिया को समता के सुख से नवाजो यारों
जिंदगी बोझ न बन जाए संभालो यारों
[यूं ही, कलम की दूसरी तोबड़तोड़ आवारगी, खुद की आवारगी के चलते इसकी आवारगी पर नियंत्रण का नैतिक अधिकार नहीं है]
(ईमि: 22.02.2018)
No comments:
Post a Comment