नास्तिकता का दावा करने वाले जो लोग भगवान या भूत जैसी काल्पनिक अवधारणाओं से डरते है ढोंगी हैं, इनका भंडाफोड़ करना चाहिए। मेरी पत्नी अति धार्मिक हैं।रोज 2 घंटे (अतिशयोक्ति) घंटी बजाती हैं। मेरे विवि के आवास में भगवान का घर है लेकिन उस घर में मेरा प्रवेश निषेध। मैंने लाइटर रखना इसलिए शुरू कर दिया कि मंदिर की माचिस इधर-उधर हो गयी तो मेरी शामत कि मैं अपनी अपवित्र काया के साथ मंदिर में घुस गया होऊंगा, चप्पल पहन कर। 25-30 साल पहले गर्दिश के दिनों में किसी पेमेंट के इंतजार की बात बात शेयर किया। उन्होने कहा कि मैं भगवान को न लिर्फ मानता नहीं, उनके बारे में उल्टा-सीधा कहता भी हूं, इसीलिए तुम्हारे साथ गड़बड़ होता है। मैंने कहा कि भगवान इतना चुच्चा है कि मेरे जैसे अदना से आदमी से बदला लेने आ जाए, तो उसकी और ऐसी-की-तैसी करूंगा मेरा जो बिगाड़ा हो बिगाड़ ले। वह तो है ही नहीं तो बिगोड़ेगा क्या, भक्त जरूर झुंड की कायर बहादुरी में बिगाड़ने की नाकाम कोशिस करते रहते हैं। वह शिक्षक ही क्या जो "किसी भी" कारण से किसी भी छात्र के प्रति बदले की भावना रखे? ऐसा करते ही वह शिक्षक की पात्रता खो देता है। यही बात भगवानत्व पर लागू करें। यहां तो कोई भी फरेबी अपने को भगवान घोषित कर देता है, श्रीकृष्ण यदुवंशी से लेकर बाबा रामरहीम तक। मुझे धर्म से आपत्ति नहीं है वह खुशी की खुशफहमी देता है। आप किसी की परिस्थियों की खुशफहमी छोड़ने की मांग तब तक नहीं कर सकते जब तक उन्हें सचमुच की खुशी नहीं मिलती, मिल जाएगी तो खुशफहमी की जरूरत नहीं रहेगी, धर्म और भगवान अपने आप अंतरिक्ष के अनंत में विलीन हो जाएंगे।
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