Saturday, February 24, 2018

लल्ला पुराण 188 (धर्म)

माधवी शर्मा के एक कमेंट पर सेंटिया कर यह लिखा गया:

बेटी, मैं तो अपने लेख और तुकबंदियां पोस्ट ही करता रहता हूं। धर्म से जुड़ी पोस्ट तो किसी के कमेंट पर कमेंट थे जिसे मैंन पोस्ट के रूप में डाल देता हूं। मेरा धर्म से नहीं धर्मोंमाद, धार्मिक अंधविश्वास और धार्मिक कुरीतियों से विरोध है क्योंकि इससे व्यक्ति का बौद्धिक विकास कुंद होता है। मेरी पत्नी बहुत धार्मिक हैं। धर्म पर मैं अपना लेख शेयर कर चुका हूं जिसमें मैंने लिखा है कि धर्म को तब तक नहीं खत्म किया जा सकता है जब तक इसके कारण नहीं खत्म होते। धर्म खुशी की खुशफहमी देता है, किसी को सचमुच की खुशी दिए बिना उसकी खुशफहमी नहीं छीनी जा सकती। हमारी कोशिस ऐसा समाज बनाने की है जिसमें खुशफहमी की जरूरत न रहे। मैं शिक्षक हूं, मेरा काम अपने विद्यार्थियों को विवेकशील इंसान बनाना है। लेकिन आदर्श शिक्षक नहीं हूं, जिसे मैं अपनी कमी मानता हूं। गाली-गलौच करने वाले विद्यार्थियों को पढ़ाने का अनुभव नहीं है इसलिए ऐसे विद्यार्थियों को पढ़ाने में धैर्य खो देता हूं और तैश में भूल जाता हूं कि 42 साल पहले 20 का था। अपनी भाषा भ्रष्ट होने से बचाने के लिए इन्हें अदृश्य कर देता हूं। यह भी मेरी एक कमी है। कुछ लोग इस मंच पर आस्था आहत होने के नाम पर, मुझे नीचा दिखाने के लिए दंगाई लामबंदी करने लगे। आस्था भावना का मामला है और भावनाओं को भड़काना विवेक को जागृत करने से ज्यादा आसान है। मेरी कोशिस विवेक को जगाने की होती है, कई बार रणनीति गलत हो जाती है। इस कमेंट का शुक्रिया। धर्म वाह्य ढांचा है और अर्थ बुनियाद। कभी कभी वाह्य इतना आच्छादित हो जाता है कि बुनियाद को ढक देता है, इसलिए इसकी धुंध हटाना आवश्यक हो जाता है। ध्वनि-सौंदर्य के लिए अपनी कमियों कीअंग्रेजी में स्वीकारोक्ति लिखूं तो I lack the senses of proportion; priority;preservation and patience. कभी असजग हुआ तो कमियां हावी हो जाती हैं। खूब पढ़ो-लड़ो-बढ़ो; बोलने का साहस करो कोई आंख दिखाने की जुर्रत नहीं करेगा। मैं अपने सभी बच्चों को यही सिखाने की कोशिस करता हूं।

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