बोझ तो फिर बोझ है
बोझ तो फिर बोझ है
उतार फेंकना चाहिए
चाहे जिंदगी का हो
या परंपराओं के रूप में
पूर्वजों के लाशों की
जिसे हम ढोते आ रहे हैं
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
बोझ से दबा व्यक्ति
दौड़ने की बात क्या?
चलता भी है रेघ-रेघ कर
बोझ हंसकर उठाना नहीं चाहिए
उतार फेंकना चाहिएअट्टहास के साथ
जिंदगी को बोझ बनने से बचाने के लिए।
(ईमि:22.02.2018)
[कलम की यूं ही आवारगी]
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